"जय महाकाली स्तुति"
छन्द : पञ्चचामर
लिए कटार खड्ग हाथ, लाल लाल नेत्र हैं ।
निकाल जीभ को विशाल,सर्व अस्त्र धारती।।
चली अपार शक्ति श्रोत, पापनाशिनी चली ।
सुकंठ धार मुण्डमाल, क्रोध से पुकारती ।।
मुखारविन्द मुक्तकेश, क्रोध में सनी हुई ।
बलात् शत्रु शीष काट, उग्र रूप धारती ।।
प्रचंड खंड दुष्ट दंड, दाँत पीसती हुई ।
अराति सर्वनाश त्रास, क्लेश को निवारती ।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
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