तुम चंद्रमुखी, चंदन सा वदन,
मै तेरा आशिक आवारा हूं !
तुम कली महकते फ़ूलों की,
मै भंवरा तेरा मतवारा हूं !!
तुम मूरत हो संगमर्मर की,
मै तुम्हे तरासने वाला हूं !
तेरी हुश्न से ,छलकती मदिरा का,
मै तो बस इक प्याला हूं !!
तुम बहती कोई नदी सी हो,
मै झरना बन के समा जाता !
तुम नील गगन की परी ही हो,
जो तुझे देख के पागल मै हो जाता !!
तुम चांद सी दिखती पूनम की,
और धरती की हरियाली हो !
खुशबू सी भरी तेरी गुलशन का,
मै अनजान सा माली हूं !!
तुम गुलवदन-नशेमन-जानेमन,
तुम प्यार का कोई नज़राना हो !
तेरी फ़ूलों से हसते होठों का,
मै तो पागल दीवाना हूं !!
तुम चंद्रमुखी, चंदन सा वदन,
मै तेरा आशिक आवारा हूं !
तुम कली महकते फ़ूलों की,
मै भंवरा तेरा मतवारा हूं !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-०१/०३/२००१, बृहस्पतिवार, सुबह ९ बजे,
केरला एक्सप्रेस,सेलम ं. से बल्लारशह जं. के बीच मे,
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