ये दुनिया हो गई है बेइमानों की,
जहां ईमान नाम की कोई चीज नही !
ईमानदारों के तो बुरे हाल,
उन्हे कही ईज़्ज़त मिलती ही नही !!
ईमानदारी की चाभी लेकर के,
वे बेईमानी का ताला खोलते हैं !
चाभी टूट जाती है मगर,
ताले तो लटकते रहते है !!
गिद्धों कि मंडली मिल कर के,
उसके वारे- न्यारे कर देते !
बेईमानी कि चोचों से मार-मार,
उसे बस अस्थि मात्र ही रहने देते !!
अब चमचों व चापलूसों का,
भरपूर साम्राज्य हो रहा है !
हवाला व घोटाले बाजों को,
खूब मान-सम्मान मिल रहा है !!
ईमानदारी पर चलना है तो,
भीक्षाटन के लिए तैयार रहो !
पीना है मीठा ज़हर बेईमानी का,
तो बेइमानों के आसन को करो !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-१९/०४/२००१,बृहस्पतिवार,सुबह-३.१५ बजे,
थोप्पुर घाट ,धर्मपुरी ,(तमिलनाडु)
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