जब बुरा नही करते हो किसी का,
और न ही अन्याय को हम करते हों !
तो ईंषान मात्र कि बात ही क्या,
हम भगवान से भी लड़ सकते हैं !!
जीवों को सताना महापाप,
सभी जीव तो अपने जैसे हैं !
हम उन्हे भी अपनो जैसा प्यार करें,
चाहे वे जीव कोई कैसे है !!
"अहिंसा परमो धर्मः" को,
आवो दिल से अपनाए हम !
बददुआ ना पाए हम उनकी,
सदा दुआएं पाए हम !!
हम किसी आंख के तारे है तो,
वे भी किसी के दुलारे है !
अपने प्राण प्यारे है हमको,
तो उनके भी प्राण तो प्यारे है !!
सदा पाप से बचे रहे,
तो हम दिल से सुख पा सकते हैं !
बस ईंषान मात्र की बात ही क्या,
हम भगवान से भी लड़ सकते हैं !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचना की तारीख- १५/०२/२००१, वॄहस्पतिवार,रात - ८.४० बजे,
थोप्पूर घाट, धर्मपुरी,(तमिलनाडु)
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