कोई भी नशा है ठीक नही,
पर शराब है सबसे बुरा नशा !
कई मंज़रों को ढहते देखा है
हमने,
जिनके दिल मे है शराब बसा
!!
धन की बर्बादी पहले करते,
फ़िर तन की बर्बादी बाद
मे !
चरित्र गिर जाते है उनके,
फ़िर रहते हर-पल पश्चाताप मे !!
ईमान बेचते देखा है हमने,
और सम्मान से समझौता कर
लेते !
देखा है हमने ऐसों को,
जो पत्नी-बेटियों का भी सौदा कर लेते
!!
चंद बातों को लेकर हमने,
अपनों का खून बहाते देखा
है !
लिव्हर सड़ जाने से उनके,
तड़प कर मर जाते हुए देखा
है !!
मदिरा के नशे मे कभी-कभी,
उन्हे अपनी आबरू लुटाते
देखा है !
भीड़ भरे बाज़ारों मे,
उन्हे अश्लीलता दिखाते
देखा है !!
मत पियो शराब को तुम
ऐसी,
जहां नफ़रत ही नफ़रत तुम्हे
मिले !
विष के समान मदिरा पीकर,
जहां झूठी इज्जत तुम्हे
मिले !!
कोइ भी नशा है ठीक नही.......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचना की तारीख-१९/०२/२००१,दोपहर - १२.३५ बजे,
थोप्पूर घाट, धर्मपुरी,(तमिलनाडु)
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