बच्चों के खेल हैं कैसे ।
जैसे नन्ही रेल हो जैसे ॥
इनमे आपस मे कितना प्यार ।
ए राम-कॄष्ण अवतार ॥
ये आपस मे है भाई ।
नही इनकी किसी से बुराई ॥
इनमे राग-द्वेष नही होता।
इनमे कोई बड़ा न छोटा ॥
ईश्वर ने इनकी प्रीति बनाई।
जैसे मधुर वाद शहनाई॥
ये कैसे भोले-भाले ।
इनके दिल होते नही काले ॥
इनकी ओतली-तोतली भाषा ।
इनसे है बहुत सी आशा ॥
तुम आपस मे हो क्यों लड़ते ।
लड़-लड़ कर क्यों हो मरते ॥
इनसे शीक्षा तुम ले लो ।
तुम इनके साथ हो खेलो ॥
तुम क्यों बनते शैतान ।
इनसे ले लो अब ग्यान ॥
मत बेचो दीन-ईमान ।
बन जाओ नेक ईंषान ॥
इन नन्हे-मुन्नो की दुनिया ।
ढेरों लाती हैं खुशियां ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-१५/४/१९९१
एन.टी.पी.सी. दादरी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
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