यह कैसा पापी पेट
राजा-रंक या हो सेठ
इसका भूख कभी नही मिटता
दिन-रात भूख से ये है सिसकता
कभी यह प्यास से है व्याकुल
कभी यह भूख से है आकुल
कभी इसे दौलत की भूख
कभी इसे औरत की भूख
देखो ए कैसा स्वारथी
क्षण भर के लिए बने परमारथी
उचित-अनुचित का इसे नही विचार
सुख के लिए तजे यह सदाचार
इससे परेशान सारा संसार
ए सभी दुखों का सार
मै भी इससे ऊबा हूं
इसकी माया मे डूबा हूं
हाय-हाय है चारों ओर
यह खुश होता सुन के शोर
ऐसे मे ए अपनी शान समझता
बहुतों की ये खाल नोचता
इस पापी के अनेकों रूप
जाड़ा-गर्मी-सर्दी-धूप
माता-पिता-भाई-बहन
इसके लिए सभी जैसे ग्रहण
देखो यह कैसे है खड़ा
इसके लिए होता नित झगड़ा
यह सब सुखों की आशा है
भाई-भाई-खून का प्यासा है
इसके लिये छोड़ गांव देश
हरा-भरा सुन्दर प्रदेश
जाते है सब दूर देश
सहते ईर्ष्या-राग द्वेश
कभी-कभी ऐसा हो जाता
इसका भूख सहा नही जाता
यह कथनी कितनी सही है
पेट नही तो भेट नही है
इसकी कैसी नीच हरकतें
भूख से कई व्याकुल हो मरते
आज इससे सभी दुखी
इससे कोई नही सुखी
इससे सभी हुए नर्वश
इस पर चलता नही किसी का बस
हाय यह कैसा पापी पेट
जलचर-थलचर या नभचर शेष
हाय यह कैसा पापी पेट .......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१२/०४/१९९१,
एन.टी.पी.सी दादरी ,गाजियाबाद(उ.प्र.)
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