जहां भी देखूँ तुम ही तुम हो,
आती जाती इन श्वाशों में ।
तुम हर पल याद आती हमें ,
तुम अपने सुनहरे वादों में ॥
पायल की झनक जब कभी सुनता हूँ ,
लगता है तुम आ रही हो ।
चूड़ी की खनक जब भी सुनता ,
मानो तुम मुझे बुला रही हो ॥
जब कहीं बोल सुनता हूँ ,तुम जैसा,
मेरे धड़कन हैं बढ़ जाते ।
तश्वीर तुम्हारा जब मैं देखूँ ,
नयनों में नीर हैं आते ॥
ये दोनों अनमोल रत्न ,
मेरे लिए तुम्हारी दो आँखे हैं ।
दोनों ही तुम्हारी तरह हैं ये ,
और इनके मजबूत ईरादे हैं ॥
न आश रहा ,न चाह रहा ,
ना ही कोई तो किनारा है ।
बस यादें तुम्हारी ही हैं हमें ,
जो देती हमें सहारा हैं ॥
बस यादें तुम्हारी ही हैं हमें ,
जो देती हमें सहारा हैं.. . .
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
(912)
7AM,Tuesday,Mahaveer Nagar,
Raipur (C.G) (912)
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