इन जुल्फों के लहराने से ,कहीं मैं भटक न जाऊं |
नज़रों का जाम पीके, कहीं मैं बहक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से........
नजदीक जैसे आग के,गलता है कोई मोम |
तेरे हुश्न के शोले से , कहीं मैं धधक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से........
अमराई गुनगुनाती है,कोयल का तरन्नुम |
पाजेब की रुनझुन से, कहीं मैं चहक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से........
बादल में ज्यों बिजली के,चमकने का असर हो |
झुमके के पेंच में तेरे ,कहीं मैं अटक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से........
खुश्बू घुली हवा में ज्यों,फूलों की छुअन से |
नाजुक तेरे अहसास से ,कहीं मैं महक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से........
बहकर बयार बांवरा, छलकाए ज्यों जज्बात |
मुझको संभालो आखों में ,कहीं मैं छलक न जाऊं ||
इन जुल्फों के लहराने से ,कहीं मैं भटक न जाऊं |
नज़रों का जाम पीके, कहीं मैं बहक न जाऊं ||
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक (1066)
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