रहते हो जहां मैं भी तो वहां,
तुम्हे दिल मे बसा के रखती हूं ।
मै हूं चाँदनी तुम मेरे हो चाँद,
तुम्हें पलकों मे छिपा के रखती हूं ॥
तुम प्यार के सागर हो मेरे,
मै नदी तो बन के समाई हूं ।
तुम सदा बहार हो पेड़ कोई,
मै लता तो बनके उलझाई हूं ॥
मै खिलती कोई कमलिनी सी,
तुम भंवरा बन के समाये हो ।
मै रोशनी तुम्हारी राहों की,
तुम दीपक बन के आये हो ॥
तुम नज़रों से दूर हो फिर क्या हुआ,
पर दिल से हमारे पास हो ।
रब से मांगती हूं मै दुआ,
तुम मेरे जीवन की आश हो ॥
पास आ गये हम दोनों,
अब दूर तो मत जाना साजन ।
कभी दूर हुए यदि तुम मुझसे,
तो रहेगा नही मेरा जीवन ॥
रहते हो जहां मै भी तो वहां,
तुम्हें दिल मे बसा के रखती हूं ।
मै हूं चाँदनी तुम मेरे हो चाँद,
तुम्हें पलकों मे छिपा के रखती हूं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
२१-४-२०१३,रविवार,दोपहर,३.३० बजे,
पुणे, महा.
No comments:
Post a Comment