ममता मई मां के पावों मे ।
खिलता है मुर्झाया चेहरा,
मां की आंचल के छावों मे ॥
सहती है कितने दुःखों को,
कि हम सदा खुशहाल रहें ।
वो त्याग है देती अपने सुख को,
कि हर सुख मे मेरा लाल रहे ॥
कभी जब गीले हो जाते बिस्तर,
और जब ठंडी हमे सताती है ।
तब सुखी जगहों पर हमे सुला,
खुद गीले बिस्तर पर सो जाती है ॥
वह त्याग की अनोखी है मिशाल,
व ममता की प्यारी मूरत है ।
हम चाहे जहां कहीं भी रहें ,
हमे उसकी बहुत जरुरत है ॥
मां से बढ़कर दुनिया मे ,
दिखता नही मिशाल है ।
हर जगह यही सब कहते,
मां होती बहुत महान है ॥
मां होती बहुत महान है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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१८-४-२०१३,गुरुवार,शाम ४ बजे,
पुणे महा.
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