Monday, 19 February 2024

साहित्यकार "बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी" को समर्पित रचना"

साहित्यकार "बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी" को समर्पित रचना"

साहित्य फूल इक ऐसा है,

जो कभी नहीं मुरझाता है ।

और साहित्य कार कभी मरता है नहीं,

वह मरकर के भी अमर हो जाता है ।।
इन्हीं साहित्य कारों में बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी,

जो साहित्य के बड़े पुजारी थे ।

दैनिक जीवन में भी थे उदार,

और बहुत मृदुल -ब्यवहारी थे ।।
2 फरवरी 1894 को फिंगेश्वर (राजिम)में,

बाबू जी का था जन्म हुआ ।

तब छत्तीसगढ़ के साथ साथ,

हिंदी साहित्य भी था धन्य हुआ ।।
3 मार्च सन 1903 में बाबू जी ने,

प्राइमरी परीक्षा था उत्तीर्ण किया ।

सन 1915 में प्रयाग विश्वविद्यालय से,

उनका मैट्रिकुलेशन भी था पूर्ण हुआ ।।
शिक्षण -संपादन में रहते हुए,

वे साहित्य कर्म को अपनाये ।

पंडित माधव राव सप्रे के सानिध्य में रहकर,

वे राष्ट्र सेवा को गले लगाये ।।
निबंध -लेख में सिद्धहस्त,

व अनुवाद कला में पारंगत थे ।

कई कहानी-रचनाओँ के साथ -साथ,

वे साहित्य के श्रेष्ठ उपासक थे ।।
अपने जीवन के साथ-साथ,

वे औरों के लिये भी जीते थे ।

वे एक ऐसे माली थे,

जिनके फूलों के कई बगीचे थे ।।
कई पुरष्कारों से सम्मानित वो,

उन्हें कभी भी था अभिमान नहीं ।

बस चाह सदा रहती थी उनकी,

साहित्य को मिले सम्मान सही ।।
साहित्य क्षेत्र का एक और सूर्य,

उस दिन था अस्त हुआ ।

जब 21 अगस्त सन् 1974 को,

बाबू जी का था निधन हुआ ।।
उनके विचारों व आदर्शो के सम्मान हेतु,

शंकर प्रसाद श्रीवास्तव जी ने वीणा उठाया है ।

जो बाबू जी के साहित्य पुत्र भी हैं,

जिन्होंने उनके यश को फैलाया है ।।
आइये हम सब मिलकर के,


उनके सपनों को साकार करें ।

बाबू जी के साहित्य को पढ़कर,
हम निजी जीवन में भी वैसा व्यवहार करें ।।

उनके बिषय में जानने के लिये ,

हमें इंटरनेट से जुड़ना है ।

www.maawli.com में जाकर के,

उनके विचारों को पढ़ना है ।।
मोहन श्रीवास्तव (कवि)

Mob.No. 9009791406

(917)

01-02-2015 ,01:30 p.m,
Sunday, Mahaveer Nagar,
Raipur(C.G)

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