साहित्यकार "बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी" को समर्पित रचना"
साहित्य फूल इक ऐसा है,
जो कभी नहीं मुरझाता है ।
और साहित्य कार कभी मरता है नहीं,
वह मरकर के भी अमर हो जाता है ।।
इन्हीं साहित्य कारों में बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी,
जो साहित्य के बड़े पुजारी थे ।
दैनिक जीवन में भी थे उदार,
और बहुत मृदुल -ब्यवहारी थे ।।
2 फरवरी 1894 को फिंगेश्वर (राजिम)में,
बाबू जी का था जन्म हुआ ।
तब छत्तीसगढ़ के साथ साथ,
हिंदी साहित्य भी था धन्य हुआ ।।
3 मार्च सन 1903 में बाबू जी ने,
प्राइमरी परीक्षा था उत्तीर्ण किया ।
सन 1915 में प्रयाग विश्वविद्यालय से,
उनका मैट्रिकुलेशन भी था पूर्ण हुआ ।।
शिक्षण -संपादन में रहते हुए,
वे साहित्य कर्म को अपनाये ।
पंडित माधव राव सप्रे के सानिध्य में रहकर,
वे राष्ट्र सेवा को गले लगाये ।।
निबंध -लेख में सिद्धहस्त,
व अनुवाद कला में पारंगत थे ।
कई कहानी-रचनाओँ के साथ -साथ,
वे साहित्य के श्रेष्ठ उपासक थे ।।
अपने जीवन के साथ-साथ,
वे औरों के लिये भी जीते थे ।
वे एक ऐसे माली थे,
जिनके फूलों के कई बगीचे थे ।।
कई पुरष्कारों से सम्मानित वो,
उन्हें कभी भी था अभिमान नहीं ।
बस चाह सदा रहती थी उनकी,
साहित्य को मिले सम्मान सही ।।
साहित्य क्षेत्र का एक और सूर्य,
उस दिन था अस्त हुआ ।
जब 21 अगस्त सन् 1974 को,
बाबू जी का था निधन हुआ ।।
उनके विचारों व आदर्शो के सम्मान हेतु,
शंकर प्रसाद श्रीवास्तव जी ने वीणा उठाया है ।
जो बाबू जी के साहित्य पुत्र भी हैं,
जिन्होंने उनके यश को फैलाया है ।।
आइये हम सब मिलकर के,
उनके सपनों को साकार करें ।
बाबू जी के साहित्य को पढ़कर,
हम निजी जीवन में भी वैसा व्यवहार करें ।।
उनके बिषय में जानने के लिये ,
हमें इंटरनेट से जुड़ना है ।
www.maawli.com में जाकर के,
उनके विचारों को पढ़ना है ।।
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Mob.No. 9009791406
(917)
01-02-2015 ,01:30 p.m,
Sunday, Mahaveer Nagar,
Raipur(C.G)
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