याद आती है उसकी बहुत ,कभी होती थी मेरे पास में |
धडकनों में समाई हुई ,वो तो रहती थी हर शांस में ||
याद आती है उसकी बहुत
दिल में रहती थी हर-पल मेरे ,प्यार करता था दिन-रात मै |
माथे को उसके मैं चूमता ,उसकी खुशियों की बस आश में ||
याद आती है उसकी बहुत
जुल्फें थीं रेशमी सुनहरी ,लगती थी जैसे कोई परी |
मेरी बांहों में थी झूलती ,सोती थी मखमली घास में ||
याद आती है उसकी बहुत
जो भी मिलते सभी चाहते ,बातें करते बड़े प्यार से |
नफरतों से बहुत दूर थी ,खिल रही थी अमलताश में ||
याद आती है उसकी बहुत
वो नहीं थी कोई और बस ,मेरी थी नन्ही बेटी -बहन |
गुडिया थी मेरे आंगन की वो ,अब तो रहती है अहसास में ||
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक :- (1050)
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