Monday, 19 February 2024

"आ गया मधुमास हुलसत"

आ गया मधुमास हुलसत ,प्रेम  मद से है भरा ।
गा रही बुलबुल तराना, हो रही हर्षित धरा ।
 आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,

चहचहाते हैं परिंदे ,झुरमुटों और बागों में । 
ले रहे मधुपर्क भँवरे , फूलों और परागों में ।।
झूमकर नाचे मयूरा गुनगुनाती निर्झरा ......... 
 आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,

नदियां इठलाती हुई चल ,  सिंधु में हैं समा  रही ।
 आशिकी करती लताएं, वृक्षों से लिपटा  रही।।
 ओढ़े सतरंगी चुन्दरिया , सज रही है स्वयम्बरा
  आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,


सरसो संग गेहूं की बाली ,मिलके है इतरा रही । 
कहीं कहीं अमृत सी  बुँदे ,है घटा बिखरा रही।।
प्रेमी जोड़े हैं मगन पर ,योगियों का मन डरा ......... 
 आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,

बह रही है बयार मद्धम , सर अनंग चला रहा। 
जइसे बिरहन के हिया  को , प्रेम अगन दहका रहा।।
रंग  बासंती में रंग जा, आज मोहन  तू जरा. ......... 
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,

मोहन श्रीवास्तव ( कवि )

रचना क्रमांक ;- (1060 ), jheet ,दुर्ग ,
१८/०२/२०१७


 


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