आ गया मधुमास हुलसत ,प्रेम मद से है भरा ।
गा रही बुलबुल तराना, हो रही हर्षित धरा ।
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,
चहचहाते हैं परिंदे ,झुरमुटों और बागों में ।
ले रहे मधुपर्क भँवरे , फूलों और परागों में ।।
झूमकर नाचे मयूरा गुनगुनाती निर्झरा .........
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,
नदियां इठलाती हुई चल , सिंधु में हैं समा रही ।
आशिकी करती लताएं, वृक्षों से लिपटा रही।।
ओढ़े सतरंगी चुन्दरिया , सज रही है स्वयम्बरा
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,
सरसो संग गेहूं की बाली ,मिलके है इतरा रही ।
कहीं कहीं अमृत सी बुँदे ,है घटा बिखरा रही।।
प्रेमी जोड़े हैं मगन पर ,योगियों का मन डरा .........
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,
बह रही है बयार मद्धम , सर अनंग चला रहा।
जइसे बिरहन के हिया को , प्रेम अगन दहका रहा।।
रंग बासंती में रंग जा, आज मोहन तू जरा. .........
आ गया मधुमास हुलसत,,,,,,,,,,
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक ;- (1060 ), jheet ,दुर्ग ,
१८/०२/२०१७
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