धन्य हमारी भारत भूमि ,
व धन्य यहां के वासी ।
दुनिया में सबसे न्यारे हैं,
हम सब भारत वासी ।।
जहां जन्म लेने के लिए,
देवता भी सदा तरसा करते ।
समय-समय पर खुश होकर के,
बादल सब जगह है बरसा करते ।।
जंगल-पहाड़-नदियां व झरने,
जो इसके श्रृंगार हैं ।
सारी बसुधा ही भारत का,
अपना प्यारा परिवार है ।।
सत्य-अहिंसा-भाईचारा ,
मूल मंत्र है इसका ।
प्यार मे ये सदा ही झुकता,
पर नफरत में आग उगलता ।।
सभी धर्मो का संगम है यहां,
जो इंसानियत धर्म सिखलाता ।
बिभिन्नता में बसी एकता,
जो दुनिया के लिये परिभाषा ।।
बिभिन्नता में बसी एकता,
जो दुनिया के लिये परिभाषा ।।
मोहन श्रीवास्तव (कवि )
09-09-2014,Tuesday,07:30P.M
Baheri,Sidhi,M.P.(871).
चित्र ; गूगल से साभार लिया गया
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