तू सबसे निराला है,तू तो दिल वाला है ।
भोले मेरे भोले,तू जग का उजाला है ॥
आखें तेरी प्यारी,जो मदहोश है कर जाती ।
तेरे मुखड़े की शोभा,जो दिल मे है बस जाती ॥
तेरी मदमस्त जाटाएं जो,हवा मे लहराती ।
तेरी जटा से गंगे की, निकली तो धारा है ॥
तू सबसे निराला है......
हे आदि-अनादि प्रभो,तू घट-घट का वासी ।
तू सब जगह रमा करता,कैलाष या हो काशी ॥
कटि मे बाघम्बर है और,हाथ मे है डमरू ।
जो सोते हुओं के तो,किस्मत को जगाता है ॥
तू सबसे निराला है......
हम तुझको निहारा करें,सब सुध-बुध को खोकर ।
हम तुमको पुकारा करें,ऊँ नमः शिवाय जपकर ॥
अंग-अंग मे भभुति रमा,है गले मे तो बिषधर ।
मन-मोहिनी सूरत से,सारे जग को लजाया है ॥
तू सबसे निराला है......
हे काशी-कैलाषी,तुम सब जगह रमा करते ।
भक्तों की विपदा को,पल भर में हरा करते ॥
विष्णू भगवान के तो,तुम दिल मे हो रहते ।
हे शांत-चित्त भगवन,तुम्हे दिल मे बसाया है ॥
तू सबसे निराला है,तू तो दिल वाला है ।
भोले मेरे भोले,तू जग का उजाला है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.in
16-01-2014,Thursday,11:00PM,(830),
Pune,M.H.
No comments:
Post a Comment