चाह नही मुझे ऐसी भेंट का,
जब राहों में मैं फेंका जाऊं ।
मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं,
जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥
ईनाम पुरष्कारों की नही चाह,
जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं ।
मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं,
जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥
चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का,
जिनके दिल मैं बस जाऊं ।
चाह मुझे उन सत्य पथिक का,
जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥
चाह मुझे उन हवाओं का,
जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ ।
चाह मुझे भगवान के चरणों का,
जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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