"विजात छंद"
(शनि स्तुति)
जय जय शनि देव
लिए धनुबाण हाथों में, प्रभो शनिदेव जी प्यारे।
सुसज्जित दिव्य शस्त्रों से, बदन पर नीलपट डारे।।
दमकता कांतिमय मुखड़ा, कलेवर नील रंगी है।
कहाते न्याय के अधिपति, भगत के परम संगी हैं।।
पिता रवि मातु छाया हैं, भगत के कष्ट सब टारें।
लिए धनुबाण हाथों में, प्रभो शनिदेव जी प्यारे।।१।।
सहचरी आठ पत्नी हैं, तुरंगी धामिनी ध्वजिनी।
अजा कंटकी कंकाली, कलहप्रिय देवि है महिषी।।
सवारी गिद्ध है उनकी, सभी के ताप प्रभु जारे।
लिए धनुबाण हाथों में, प्रभो शनिदेव जी प्यारे।।२।।
अराधक कृष्ण के सच्चे, ग्रहों के मुख्य हैं स्वामी।
अचानक रुष्ट होवें तो, बिगाड़े काम जगनामी।।
संँवारे काज भक्तों के, सदा शनिदेव रखवारे।
लिए धनुबाण हाथों में, प्रभो शनिदेव जी प्यारे।।३।।
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