"कृष्ण विरह" (दोहे )
जय श्री राधे कृष्ण
जब से ब्रज को छोड़ के, आया मथुरा धाम।
राधा तेरी याद में, तरसूं आठों याम।।
जब देखूं जोड़े कहीं,हस मिलके बतियाय।
तब तब मेरे नैन में,आंसू भरि भरि जाय।।
प्रिया विरह में रात दिन,भूख लगे ना प्यास।
नैना आंसू पी रहे,मन है बहुत उदास।।
जैसे तैसे दिन कटे मगर,कटे नहि रात।
कण्ठ रूआंसा मन भरा,मुख निकसे नहि बात।।
ऋतु बसंत देता मुझे, बैरी बन संताप।
फगुनाई बहती हवा, भरती उर में ताप।।
चंद्र उजाले में तुझे,ढूंढे नैन चकोर।
विरह वेदना विकल हो,पिया बावरा तोर।।
बिना तुम्हारे राधिका,जीवन बज्र समान।
हर पल तेरी याद में,बुझा बुझा तन प्राण।।
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