Friday 23 February 2024

छंद:- बरवै" (पुनः विराजे रघुवर, अपने धाम)

बरवै एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके विषम चरण (प्रथम, तृतीय) में बारह-बारह तथा सम चरण ( द्वितीय, चतुर्थ) में सात- सात मात्राएँ रखने का विधान है। सम चरणों के अन्त में जगण (जभान = लघु गुरु लघु) होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है। बरवै को अवधी का मूल छंद माना जाता है किंतु यह बाध्यकारी नहीं है।6 Jan 2023

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बरवै रामायण से लिया गया छंद:

चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।

जानि परै सिय हियरे ,जब कुंभिलाय।।

प्रेम प्रीति को बिरवा ,चले लगाय।

सियाहि की सुधि लीजो ,सुखी न जाय।।

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श्री राम स्तुति 

"बरवै"
पुन: विराजे रघुवर, अपने धाम।
मूरत सुंदर लाजे, कोटिन्ह काम।।१।।

जनक दुलारी प्यारी, रघुवर साथ।
खड़े लखन धर धनु शर ,लेके हाथ।।२।।

गदा हाथ में धारे , श्री हनुमान।
राम चरण का करते, हैं प्रभु ध्यान।।३।।

बाल रूप सांवल है, सियपति गात।
लगें मनोहर राघव, दिन या रात।।४।।

पीताम्बर धारी हैं, श्री भगवान।
भक्त मंडली करते, हैं गुणगान।।५।।

कौशल्या सुत दशरथ, नंदन राम।
कृपा सिंधु हितकारी, सुख के धाम।।६।।

सकल सृष्टि अधिनायक, हो महराज।
सदा बचाते भक्तों, की हो लाज।।७।।

दुष्टों को लगते हो, जैसे काल।
संत हेतु रहते हो, बनकर ढाल।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
२१.०१.२०२४, रविवार, सायं ७ बजे
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

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