Monday 12 March 2012

सूनामी

गूंज रहा था चीत्कार दिशाओं में,
जहां काल ने गाल फैलाए थे
उस प्रलयंकारी दैवी उफान ने,
अपने लहरों का कफन पहनाए थे

छ्ब्बीस दिसम्बर की वो सुबह,
जो बर्बादी लेकर के आया
पल भर में उन मासूमों पर,
कुदरत ने कहर है बरसाया

जहां कई हजार जानें हैं गई,
और कितनों का घर तबाह हुआ
कितने-कितने लापता हुए,
और कितनों का बुरा हाल हुआ

संयोग से जो बच गये थे उसमें,
वे अपनों-अपनों को ढूढ़ रहे
पर उनका मिल पाना मुश्किल था,
जो समुद्री लहरों में ही थे बहे

वह उफान नही शैतान था वह,
जहां मौत ने नंगा नाच किया
उन गरीब बेकसुरों का,
सब कुछ तो है बर्बाद किया

वहां के दर्दनाक दृश्यों को देख-देख कर,
पत्थर सा कलेजा कांप उठता है
अनायास आंसू निकल जाते,
करुणा दिल मे है भर उठता

उनके घावों को भरने के लिये,
हमें प्यार का मरहम लगाने होंगे
जिस तरह से उनके दुःख कम हों,
हमें वही काम करने होंगे

वैग्यानिक चमत्कार सारे धरे रह गये,
जहां प्रकृति ने प्रहार है कर डाला
नये साल में जाने का सपना,
उन मासूमों का ध्वस्त है कर डाला

खुद को आगे हम कितना बढ़ा लें,
पर कुदरत के आगे कमजोर हैं हम
आए हैं तो जाना ही पड़ेगा,
किसी विग्यान से नहीं बच सकते हैं हम
आए हैं तो जाना ही पड़ेगा,
किसी विग्यान से नहीं बच सकते हैं हम.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
27-12-2004,Monday,08:40Pm,(543),
ChinchBhuvan,Khapri,Nagpur(M.H)