Tuesday 6 August 2013

यदि चूड़ियां पहन के, हम बैठे रहे तो


चुप-चाप बैठना, नहीं हमें,
उन देश द्रोहियों को, सबक सिखाना है ।
उन निर्दोषों के, प्राण का बदला,
उनसे गिन-गिन कर, हमें चुकाना है ॥

हम कब तक, ऐसे ही मरते रहेगें,
उन कायरों की, चलती गोली से ।
जिनके अन्दर, ईंषानियत नहीं भरा,
ऐसे शैतानों की, बिष भरी बोली से ॥

ऐसे खुनियों को, पकड़-पकड़ के,
उन्हें तुरंत खत्म, किया जाये ।
जिसे देख औरों के, दिल भी कांप उठे,
उन्हें ऐसी कठोर, सजाएं दिया जाये ॥

शान्ती की बातें, करते-करते,
कहीं हम क्रान्ति की, आग मे न जल जायें ।
यदि चूड़ियां पहन के, हम बैठे रहे तो,
कहीं हम नर से नारी, मे न बदल जायें ॥

मोहन श्रीवस्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com,


यह कैसा दुर्भाग्य है

चाहे हो कोई राजा,
या चाहे हो कोई मंत्री
पर हम तो जब भी काम हैं करते,
तभी हमें रोटी मिलती

मेहनत,मजूरी करके हम,
जब पैसा को कमाते हैं
तब मुश्किल से दो जून की रोटी,
हम सब खा पाते हैं

यह कैसा दुर्भाग्य है कि,
हम सब ऊंचे ओहदे को पा जाते
पर नेता,मंत्री के चक्कर में,
हम कठपुतली से रह जाते

कानून आज बस है हम सबके लिये,
इनके लिये कोई कानून नहीं
पर अगर ये पकड़े भी गये,
तो जेलों में होती इनकी पूंछ बड़ी

ये  कुछ नेता जो उस योग्य नही,
पर बन जाते हैं मंत्री
इनकी सेवा में लगे हैं सब,
बन के एक बस संत्री
बन के एक बस संत्री ......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
01-08-2013,thursday,7.30pm,

pune,m.h.