Friday 23 February 2024

कनकधारा स्तोत्र हिन्दी भावानुवाद"





कनकधारा स्तोत्र 


धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है। 


कनकधारा स्तोत्रम श्री बल्लभाचार्य द्वारा लिखा गया माँ लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली स्तोत्र है। कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तथा कनकधारा यन्त्र को धारण करने से धन सम्बंधित परेशानियां शीघ्र ही दुर हो जाती हैं। कनकधारा स्तोत्र धन प्राप्त करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है।


“कनकधारा स्तोत्र हिन्दी भावानुवाद"

छन्द - “बसंत तिलका”

लाला ललाल ललला, ललला ललाला 


जैसे प्रवास करती, मदमस्त आली।

फूले तमाल तरु की, लचकी डँगाली।।

वैसे सदैव कमला , हरि वाम राजे।

श्री अंग अंग दमके, शुचि रूप साजे।। १।। 


रोमांच श्रीहरि रमे, रमणीय माया।

ऐश्वर्य आदि सब है, तुममे समाया।

संपूर्ण मंगलमयी, धनधान्य देवी। 

लक्ष्मी महाभगवती, हरिधाम सेवी

।।२।।

माता दयालु महिमा, सब लोग गाते।

संतुष्टि लाभ मिलता,यश कीर्ति पाते।।

देवी दयालु महती, ममता लुटाओ।

ले लो मुझे शरण में, बिगड़ी बनाओ।।३।।


आली सरोजदल पे, मड़राय जैसे ।

देखे स्वरूप छबि माँ, इतराय वैसे ।।

लज्जा भरे नयन से, हरि को निहारे।

लौटे सप्रेम पुनि माँ, छवि देख न्यारे।।४।। 


होके कृपालु मुझको, भव से उबारो।

हे सिन्धु पुत्रि चपला, दुख ताप टारो।।

ध्याऊँ समेत हरि के , दिन रात पद्मा ।

झोली सुभक्त भर दो, धन धान्य से माँ।। ५।। 


माँ इंद्र तुल्य पदवी, धन धान्य देती।

होके समर्थ सबसे, जग नाव खेती ।।

आनंद भोग वह जो, हरि को सुहाते।

देती मुरारि हरि को, सुख सिद्ध माते ।।६।। 


नीलाब्ज तुल्य जननी, हरि की ललामा।

स्वामी कृपालु हरि की,प्रिय आप भामा ।।

आधे खुले नयन से, निज दृष्टि डालो।

लक्ष्मी दयालु महती, सुत को सँभालो।। ७।। 


भार्या अनंतजित हो, प्रिय शेषशायी।

ऐश्वर्य धान्य धन दो, बनके सहाई।।

प्रेमातिरेक वश हो, पलकें झुकी है।

नैना सुमध्य पुतली, ठिठकी रुकी है।।८।। 


माँ किन्तु एकटक ही, हरि को निहारें।

आनंद संग चपला, सुख से विहारें।।

वो देख पास हरि को, नयना झुकाती।

है प्रीत की विवशता, प्रिय से लजाती।। ९।।


श्रीविष्णु देवमणि को, निज वक्ष धारें।

हारावली हृदय को, हरि के सिंगारे।।

संचार प्रीत प्रिय के, हिय में कराती।

आनंद प्रेम हरि पे, विपुला लुटाती।।१०।। 


राजीव कुंजदल की, बनके निवासी।

मालाकटाक्ष कमला, हरती उदासी।।

कल्याण देवि कर दो, विनती हमारी।

बाधा समस्त हर लो, हरि प्राण प्यारी।।११।। 


जैसे घने जलद में, चमके शया है।

वैसे कृपालु हरि की, महती दया है ।।

गोविंद वक्ष पर है, मधुमेघमाला।

फैला सुदिव्य जिससे, मणि सा उजाला ।।१२।। 


आनंद नेह भरती, भृगु वंश में माँ।

माता समस्त भुवि की, हरि की ललामा ।।

कल्याण आप कर दो, निज भक्त माता।

हे पूज्य मूर्ति वरदा, महनीय दाता ।१३।।


आधे खुले नयन से, करना कृपा माँ ।

हे सिन्धुपुत्रि मुझपे, करना दया माँ।।

हो मंद मंद हँसती, चपला ललामा।

पाते प्रभाव तुमसे, हिय विष्णु कामा।।१४।। 


पाया अनंग हरि से, हिय मान भारी।

लक्ष्मी महान जननी, सरला उदारी।।

डालो सुदृष्टि मइया , भव से उबारो ।

माता सदैव विनती, दुःख क्लेश टारो।। १५।। 


नारायणी हरिप्रिया, घनरूप नैना ।

दाती दयालु सुन लो, तुम पुत्र बैना।।

ज्यों ताप नाश करती, बहती हवायें।

त्यों क्लेश आदि हर लो, विनती लगायें।।१६।। 


हो दीन मैं पपिहरा, तुमको पुकारा।

वर्षा करो सदय माँ, धनधान्यधारा।।

माता दयालु रहना, तलवार धारी।

टालो समस्त विपदा, हरि प्राण प्यारी।। १७।। 


ज्ञानी मनुष्य जननी, प्रिय पात्र होते।

वे स्वर्ग पा सरलता, निज पाप धोते।।

सौभाग्य वैभव सभी, धन धान्य पाते।

लक्ष्मीकृपा लहर से, सुख शांति छाते ।।१८।। 


जैसे सरोज खिलता, नवगर्भ माता।

आता प्रकाश उसमें , शुचिदर्भ दाता।।

वैसी सुदृष्टि कर दो, जय विष्णु प्यारी ।

संपूर्ण सिद्धि वर दो, विनती हमारी। ।१९।।


संसार के सृजन को, तुम ही रचाती ।

माँ ब्रम्ह शक्ति बनके , सबको बनाती।।

माँ विष्णु शक्ति बनके, सबको खिलाती।।

माँ पाल पोष जग को, तुम ही जिलाती।।२०।। 


हो रुद्र शक्ति बनके, भव में विराजे।

देवी तुम्ही प्रलय में, सब काम साजे।।

माँ एकमात्र हरि की, तरुणी प्रिया हो।

लक्ष्मी प्रणाम् महती, करती क्रिया हो।।२१।।



माता प्रणाम् तुमको, शुभ लाभ देना।

दे वेद ज्ञान हमको, भव नाव खेना ।।

है रूप सिन्धु रति सी, रमणीय माता।

हे माँ प्रणाम् कर मैं, यशगीत गाता।।२२।। 


लक्ष्मी सरोज वन की, तुम हो निवासी ।

आधारभूत जगती, हरि श्री विलासी।।

गोविंद शक्ति तुम ही, रमणीय माया।

देवी प्रणाम् करने, हरिधाम आया।।२३।।


अम्भोज देह कमला, तुमको नमामी।

हे क्षीरसिन्धु रमणी, तुमको नमामी। ।

राकेश सोम भगिनी, तुमको नमामी।

नारायणी हरिप्रिया, तुमको नमामी ।।२४।। 


अम्भोज तुल्य नयना, हरि प्राणप्यारी ।

जो वंदना चरण की, करते तुम्हारी।।

देती अपार उनको, धन धान्य माता।

साम्राज्य हर्ष सुखदा, श्रुति ज्ञानदाता ।।२५।। 


सम्पूर्ण क्लेश हर के, व्यवधान काटे।

देवी कृपा कर सदा, निज नेह बाँटे।।

दाती सदा चरण की, मृत्तिका बनाना।

माँ स्नेह आप मुझपे, नित ही लुटाना।।२६।। 


जो भी उपास रखते, चपला तुम्हारी।

पाते कृपा अटल वो, प्रभु प्राणप्यारी।।

हो कामना सफल जो, मन में विचारे।

संपत्ति धान्य बरसे, दुख क्लेश टारे।।२७।। 


ऐसी रमा भगवती, तुमको रिझाऊँ।

वाणी शरीर मन से, गुणगान गाऊँ।।

गोविन्द प्राण प्रिय माँ, विनती हमारी ।

लक्ष्मी दयालु सुत पे, रहना उदारी।।२८।।


देवी सरोज वन की, रमणीय वासी।

नीलाब्ज हस्त कमला, हर लो उदासी ।।

दैदीप्यमान छवि है, शुभ कंठ माला।

शोभायमान तन में, पट हैं निराला।।२९।। 


झाँकी मनोरम लगे, सबसे तुम्हारी।

ऐश्वर्य आदि वर दे, कमला उदारी।।

देवी प्रसन्न रहना, विनती हमारी।

गाऊँ सदैव गुन मैं,मन से तुम्हारी।।३०।। 


ले दिव्य स्वर्ण कलशा, भर गंगधारा।

देवी उपासक सभी, अभिषेक द्वारा।।

श्री अंग स्नान करके, तुमको मनाते।

पूजें रमा चरण वो, सुख शांति पाते।। ३१।। 


संपूर्णलोक मुखिया, हरि प्राण प्यारी।

हे सिन्धुराज बिटिया, जग की अधारी।।

मैं हूँ प्रणाम् करता, नित देवि माया।

लेना मुझे शरण में, बन छत्रछाया ।।३२।।



अम्बोज नेत्र हरि की, कमनीय पद्मा ।

लक्ष्मी तुषारवदना, चपला ललामा।।

मैं दीन हीन कपटी, बलहीन माता। 

पूजा विधान विधि से, करना न आता।।३३।। 


देवी कृपा करुण हो, कर दो उदारी।

सारे विपत्ति हर लो, कमला हमारी।।

माता दयालु महती, दृग ना हटाना।

लक्ष्मी सदैव करुणा, मुझपे लुटाना।।३४।। 


जो नित्य ही स्तुति करे, त्रय वेद रूपा।

लक्ष्मी कृपा प्रबल से, गिरते न कूपा।।

ऐश्वर्य धान्य धन पा, गुणवान होते।

होके महासरल वो, सुख बीज बोते।।३५।। 


विद्वान लोग यश को, सुन पास आते।

ईच्छा धनाढ्य मन की, पहचान जाते।।

लक्ष्मी कृपा बरस के, धन धान्य लाते।

सौभाग्य प्राप्त कर वो, हरि लोक पाते।।३६।। 


कवि मोहन श्रीवास्तव

27.11.2023

खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर, पहांदा,दुर्ग, छत्तीसगढ़ 


॥ इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ




छंद:- "छप्पय " श्री राम स्तुति (हुआ राम मय विश्व, और केसरिया तनमन)

छन्द - छप्पय
छप्पय एक ‘संयुक्त मात्रिक छन्द’ है। इस छंद का निर्माण ‘मात्रिक छन्द’ के ‘रोला छन्द’ और ‘उल्लाला छन्द’ के योग से होता है। छप्पय छन्द में कुल 6 चरण होते है।
इसमें प्रथम 4 चरण ‘रोला छन्द’ के होते है, जबकि अंतिम 2 चरण ‘उल्लाला छन्द’ के होते हैं। प्रथम 4 चरणों में कुल 24 मात्राएँ होती है, जबकि अंतिम 2 चरणों में 26-26 अथवा 28-28 मात्राएँ होती है।

उदाहरण में दिये गये उल्लाला छन्द में उल्लाला के तीसरे प्रकार का प्रयोग हुआ है अर्थात दो लघु या एक गुरु पहले रखें उसके बाद 2+13-13मात्राऐं रखें,
छप्पय छन्द एक बहुत ही सुंदर छन्द है जिसमें भक्तिकालीन कवियों ने ढेरों पद लिखे हैं।
रोला के अंत में चार लघु रखने से बहुत मनोरम लगता है।
"छप्पय" उल्लाला का दूसरा प्रकार।

हुआ राम मय विश्व, और केसरिया तनमन।
झंकृत ढोल मृदंग,और नूपुर ध्वनि छन छन।।
भगवा ध्वज लहराय, रहा छप्पर छत ऊपर।
दर्शन करने देव, स्वर्ग से आए भू पर।।
राम भक्त टोली चली ।गांव गांव नगरी गली ।।
गाते प्रभु गुण गीत हैं। धर्म कर्म से प्रीत है ।।१।।

कितनों के बलिदान बाद, आया यह शुभ दिन।
पांच सदी तक नैन, प्रतीक्षा रत थे दिन गिन।।
आज बना संयोग, पधारे मंदिर रघुवर।
घर घर वंदनवार, द्वार पर कलशा सुंदर।।
हुए वीर बलिदान हैं।यह उनका सम्मान है।।
बात गई अब बीत है।हुई सत्य की जीत है।।२।।

जीव सभी धनभाग, अवध की ओर चले हैं।
दीवाली की भांति, चहूं दिशा दीप जले हैं।।
राम राज्य की भोर, हुई भारत के आंगन।
भारतवासी लोग , मुदित आह्लादित मन मन।।
दुष्ट करें व्यवधान हैं । जिन्हें नहीं कुछ ज्ञान है।
पर सबके हिय राम हैं।सजी अयोध्या धाम है।।३।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
१९.०१.२०२४, शुक्रवार,८ बजे सांय
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़






छंद:- बरवै" (पुनः विराजे रघुवर, अपने धाम)

बरवै एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके विषम चरण (प्रथम, तृतीय) में बारह-बारह तथा सम चरण ( द्वितीय, चतुर्थ) में सात- सात मात्राएँ रखने का विधान है। सम चरणों के अन्त में जगण (जभान = लघु गुरु लघु) होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है। बरवै को अवधी का मूल छंद माना जाता है किंतु यह बाध्यकारी नहीं है।6 Jan 2023

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बरवै रामायण से लिया गया छंद:

चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।

जानि परै सिय हियरे ,जब कुंभिलाय।।

प्रेम प्रीति को बिरवा ,चले लगाय।

सियाहि की सुधि लीजो ,सुखी न जाय।।

........=


श्री राम स्तुति 

"बरवै"
पुन: विराजे रघुवर, अपने धाम।
मूरत सुंदर लाजे, कोटिन्ह काम।।१।।

जनक दुलारी प्यारी, रघुवर साथ।
खड़े लखन धर धनु शर ,लेके हाथ।।२।।

गदा हाथ में धारे , श्री हनुमान।
राम चरण का करते, हैं प्रभु ध्यान।।३।।

बाल रूप सांवल है, सियपति गात।
लगें मनोहर राघव, दिन या रात।।४।।

पीताम्बर धारी हैं, श्री भगवान।
भक्त मंडली करते, हैं गुणगान।।५।।

कौशल्या सुत दशरथ, नंदन राम।
कृपा सिंधु हितकारी, सुख के धाम।।६।।

सकल सृष्टि अधिनायक, हो महराज।
सदा बचाते भक्तों, की हो लाज।।७।।

दुष्टों को लगते हो, जैसे काल।
संत हेतु रहते हो, बनकर ढाल।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
२१.०१.२०२४, रविवार, सायं ७ बजे
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"अष्टपदी" श्रीराम स्तुति (दशरथ लाल हरे)

"दशरथ लाल हरे"
अवध लगत अति सुन्दर, जहॅं रघुवर हैं।
राम लला सुख धाम, दशरथ लाल हरे।।१।।

मूरत अद्भुत स्यामल, पग पायल है।
सरयू चरण पखार, दशरथ लाल हरे।।२।।

रघुवर भवन अलौकिक, सब दैविक है।
अलग अलग श्रंगार, दशरथ लाल हरे।।३।।

अनुपम बालक रूपम, छबि उत्तम है।
मधुर मधुर मुस्कान, दशरथ लाल हरे।।४।।

रतन जड़ित पीताम्बर,कोमल उर हे।
जय जय अवध भुआल, दशरथ लाल हरे।।५।।

सीस मुकुट कर कंगन, तन चन्दन हे।
कटि करधन मणि हार, दशरथ लाल हरे।।६।।

टुकुर-टुकुर सब देखत, निज नयनन हे।
भगतन लखि मुसुकात, दशरथ लाल हरे।।७।।

अखिल जगत जन नायक, सुख दायक हे।
जयति जयति जय राम, दशरथ लाल हरे।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
२५.०१.२०२४, सांय काल ५ बजे, अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान"

सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान"



पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
होते हैं दिन कितने अच्छे , हर त्योहार मनाते हैं।
घृणा द्वेष को दूर भगाकर, प्रेम वहां विखराते हैं।।
चैत्र मास के नए वर्ष में, खुशियां खूब लुटाते हैं।
घर आंगन व गली चौक में,  तोरण ध्वजा लगाते हैं।।
धूम धाम रहती है भारी, माता के नौराते में।
नौ दिन करके ब्रत उपवासा, भजन करें जगराते में।।
जन्मोत्सव हनुमान राम का  , करें मनाकर ध्यान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।1।।
वैशाखी में बल्ले बल्ले, खुशी मनाते संग दादी।
परशुराम जयंती अक्षय तृतिया ,  गुड्डा गुड़िया की शादी।।
जगन्नाथ रथ की यात्रा को , देश मनाता है सारा।
बलराम सुभद्रा संग कृष्ण का, भक्त करे हैं जयकारा।।
पावन श्रावण में भोले का, कावड़ यात्रा बम बम बम।
नागपंचमी  भाई बहना,का पावन रक्षाबंधन ।।
भाद्र महिना तीज व कजरी, करें बेटियां गान ।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।2।।
मथुरा सहित सभी जगहों में, कृष्ण जन्म उत्सव भारी।
नैनों में रख छवि मोहन की, खुशी मनाते नर नारी।।
शारदीय नवरात्रि मनाते, क्वार मास में भक्त सभी।
अम्बे रानी की महिमा को, गाते सुनते लिखें कवी।।
महिषासुर बध कर मां दुर्गा, मोद धरा विखराई थी।
भगवान राम ने रावण बध कर, विजय लंक पर पाई थी।।
अधर्म हारता धर्म जीतता , देत दशहरा  ज्ञान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।3।।
घर आंगन की करें सफाई , कार्तिक मास दिवाली।
गणपति लक्ष्मी पूजा करते , कहीं पूजते मां काली।।
घर घर दीप जलाकर करते , मनमंदिर में उजियारा।
भ्रात दूज गोवर्धन पूजा, कान्हा जी का जयकारा।।
देव उठउनी एकादशी में,हरि का ध्यान लगाते हैं।
तुलसी मइया के विवाह को, हर्षोल्लास मनाते हैं।।
मार्गशीर्ष में देव दिवाली, पुण्य मास में दान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।4।।
पौष मास में मकर संक्रांति , का त्योहार मनाते हैं।
नदियों तीर्थों में लोग नहाकर, श्रद्धा भक्ति बढ़ाते हैं।।
माघ मास का मौनी अमावस,बसन्त पंचमी सतरंगी।
फागुन में होली संग जीवन, होता है रंग विरंगी।।
प्रतिदिन त्योहार अनेकों , मोहन सभी मनाते हैं।
मन में प्रभु का ध्यान लगाकर, करुणा दया लुटाते हैं।।
सभी सनातन संस्कारों को, कहते वेद पुरान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।5।।
पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
6.3.2023
महुदा, झीट पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"अष्टपदी""प्रभु सिय याद करें "(श्री राम स्तुति)

"अष्टपदी"
"प्रभु सिय याद करें "

रघुवर चुप नहि बोलत,बस रोअत हे।
सुधि करि करि हिय आप,  प्रभु सिय याद करें।।१।।
बइठे प्रभु निज कुटिया,बस सोचि रहे।
कहं सिय राम कहां,प्रभु सिय याद करें।।२।।
जब जब सिय पट देखत,अकुलावत हे।
जपन करत अविराम,प्रभु सिय याद करें।।३।।
तितर वितर घर देखत,सब वस्तु पड़े।
प्रभु सब रखत संवारि, प्रभु सिय याद करें।।४।।
जब जब दामिनि दमकत, हिय धड़कत हे।
घन बिच रूप निहार, प्रभु सिय याद करें।।५।।
खग मृग पशु सब ढूढ़त,जिमि पूछत हे।
कंह सीता मम मातु, प्रभु सिय याद करें।।६।।
प्रभु कर सब दुख देखत, अकुलाय रहे।
लछमन करत गलानि, प्रभु सिय याद करें।।७।।
विरह व्यथा अति घेरत,मन वेधत हे।
कहां न कहीं संताप,प्रभु सिय याद करें।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
०९.०१.२०२४, मंगलवार ,
खुश्बू विहार कालोनी, अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

अष्टपदी "श्रीराम स्तुति (वन सिय राम चले)

"वन सिय राम चले"
तजि घर पुर धन वैभव, पितु आज्ञा से।
संग लक्ष्मण लघु भ्रात, वन सिय राम चले।।१।।
दशरथ रहि रहि बिलखत, सिर पटकत हे।
करत प्रघोर विलाप, वन सिय राम चले।।२।।
त्याग दिए पट राजस, पट गेरुआ हे।
सीस नही है किरीट, वन सिय राम चले।।३।।
पुरवासी सब रोअत, दुख पावत हे।
अवध भरा संताप, वन सिय राम चले।।४।।
भीड़ बड़ी रघु द्वारे, सब बोल रहे।
मत जा वन हे राम, वन सिय राम चले।।५।।
सुबकत सब जन मइया, दृग पथराय रहे।
दृग जल अविरल बरसत,वन सिय राम चले।।६।।
खग मृग पशु नहि बोलहिं,तृण त्यागे हे।
नयनन ढरकत अश्रु, वन सिय राम चले।।७।।
विरह व्यथा अति भारी,हिय राम रहें।
दुख कवि नहि लिख पाय, वन सिय राम चले।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
०९.०१.२०२४, मंगलवार, प्रातः ४ बजकर ५० मिनट
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

अष्टापदी "श्री राम स्तुति(जय रघुवीर हरे)

"जय रघुवीर हरे"
झनन झनन पग नूपुर, तन धूसर हे।
ठुमुक ठुमुक प्रभु जात,जय रघुवीर हरे।।१।।

कटि करधन अति सोहत, मन मोहत हे।
चलत महल सब भ्रात , जय रघुवीर हरे।।२।।

चहल-पहल नित होवत , घर आंगन हे ।
दरशन हेतु कतार ,जय रघुवीर हरे।।३।।

मस्तक चन्दन धारत, दुख टारत हे।
भगतन कर जयकार,जय रघुवीर हरे।।४।।

सखियन मंगल गावत , इतरावत हे।
नगर डगर उजियार, जय रघुवीर हरे।।५।।

सुर नर तन धर आवत, सिर नावत हे।
अद्भुत रूप निहार, जय रघुवीर हरे।।६।।

कभि किलकत कभि हुलसत, हंसि रोअत हे।
जननी सब मुसुकाय, जय रघुवीर हरे।।७।।

सीस मुकुट अलि लटकत, जग निरखत हे।
शीतल बहत बयार, जय रघुवीर हरे।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
८.०१.२०२४ सोमवार खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

छंद:- "बसन्त तिलका" सरस्वती वंदना (वागीश्वरी विनय मैं, करता तुम्हारी)

छंद:- बसन्त तिलका
लाला ललाल ललला, ललला ललाला 
वागीश्वरी विनय मैं, करता तुम्हारी।
बैठी मराल पर हो, जननी उदारी।।
हे ब्रह्मदेव गृहणी, गुण ज्ञान धारी।
विद्या तथा विनय दो,शुभ लाभ कारी।।१।।

है कंठ में स्फटिक की, शुचि दिव्य माला।।
हो श्वेत वस्त्र पहनी , मुख में उजाला।।
धारे किताब कर में , शुभ कर्ण बाला।
माथा किरीट मणि है, छवि है निराला।।२।।

लेके सितार कर में, विमला बजाती।
पाजेब साज पग में, करुणा लुटाती।।
भौंहें विशाल दृग के, जग को लुभाए।
दाती पुकार सुनके, झट दौड़ आए।।३।।

दो ज्ञान बुद्धि मुझको, विपदा निवारो।
मां लेखनी सफल हो, दुख क्लेश टारो।।
दाती दयालु रहके,भव से उबारो।
हे शांत चित्त मइया, सब पाप जारो।।४।।

है आश मातु तुमपे, बनना सहारा।
कोई नहीं जगत में, यह बेसहारा।।
जानूं न ध्यान करना, लिखना न आता।
ना ज्ञान राग सुर का, लय में न गाता।।५।।

देवी कृपालु रहना, यह है भिखारी।
दो भक्ति शक्ति अपनी, बनके अधारी।।
मैं गीत नित्य रचके, तुमको सुनाऊं।
मां भक्ति भाव हिय में, रख गीत गाऊं।।६।।
मोहन श्रीवास्तव
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
१७.०२.२०२४, शनिवार, १२.५० दोपहर
रचना क्रमांक १३९९




छंद:- बसन्त तिलका "आया बसंत धरती, मदमस्त भारी"

छंद:- "बसन्त तिलका"
लाला ललाल ललला, ललला ललाला 

आया बसंत धरती, मदमस्त भारी।
फैला सुगंध नभ में , बहती बयारी।।
पीले प्रफुल्ल सरसों , दृग मोद कारी।
गेहूं मिले मटर से, नर संग नारी।।१।।

फूले पलाश तरु के, मन को लुभाए।
धानी सजीव धरती , पर काम आए।।
छाये रसाल पर हैं, शुचि बौर प्यारे।
है सौम्य प्रेम टपके, रसयुक्त न्यारे।।२।।

जोड़े लगे चहकने, ऋतु राज आया।
सारे धरा गगन में, रतिकांत छाया।।
कालापिनी सुरभि के, नवगीत गाए।
बोली सुरम्य लगती, सब जीव भाए।।३।।

प्रेमी लगे संवरने, प्रिय को रिझाएं।
नैना तकें सजन को, जिस राह आए।।
तालाब ताल तरिया, अरु जीव सारे।
व्यापें मनोज सबमें, निज छाप डारे।।४।।

फूले प्रसून क्षिति में, महके कियारी।
चूसें पराग भंवरे, इतराय भारी।।
आमोद भूमि पसरा, मन मोर नाचे।
झूमें लता विटप हैं, कवि गीत बांचे।।५।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
दिनांक १७.०२.२०२४, समय सांयकाल ७ बजे

रचना क्रमांक १४००


अष्टपदी, श्री कृष्ण स्तुति,(हे नंदलाला, हे गोपाला)

हे नंदलाला हे गोपाला, विनती सुनो हमारी।
लीलाधारी हे सुखकारी, आए शरण तिहारी।।१।।

मुरली वाले ब्रज के ग्वाले, यशुदासुत बलिहारी।
हे जीवनधन दे दो दर्शन, हम हैं दीन भिखारी।।२।।

रूप कलेवर तन में जेवर, पट पीताम्बर धारी।
मोर मुकुट कर में मृदु बंशी मूरत है अति प्यारी।।३।।

कटि मणि करधन नूपुर झन झन , अद्भुत रूप बिहारी।
दिव्य वसन भूषण पहने प्रभु ,नन्दलला सुखकारी।।४।।

नाग नथैया धेनु चरैया, मोहन मदन मुरारी।
चंचल चितवन भगत मगन मन, हर्षित ग्वाल गुआरी।।५।।

रास रचइया निधिवन छइंया, राधा रमण बिहारी।
कुंचित लट लटकत घुंघराले, शोभा अनुपम न्यारी।।६।।

राधा प्यारे जगत दुलारे,सहज सरल अविकारी।
बंशी की धुन सुन के सब जन, दृग जल बरसत भारी।।७।।
सब कुछ हारे नाथ सहारे ,कर दो कृपा मुरारी।
शरण पड़ा प्रभु के यह मोहन, चाहे कृपा तुम्हारी।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
दिनांक :- ०५.०२.२०२४, सोमवार
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
रचना क्रमांक १३९८

"अष्टपदी" श्री राम स्तुति (अवध बिहारी जग करतारी)

अष्टपदी"
"श्री राम स्तुति"

अवध बिहारी जग करतारी, रामलला शुभकारी।
दशरथ नंदन असुर निकंदन, कौशल्या महतारी।।१।।

नयन मनोहर चितवन सुन्दर, अद्भुत छबि बलिहारी।
जन मन अलिगन कीर्तन गुंजन, बालरूप अघहारी।।२।।

पग में पैंजन दृग में अंजन, कर कंगन खनकारी।
कटि में करधन बाजत झन झन, कर में शर धनु धारी।।३।।
नाम है पावन जन मन भावन , राम नाम शुचि कारी ।
राम नाम धुन जीव सकल सुन ,हिय में आनंद भारी ।।४।।

बाहु विशाला उर मणि माला , रत्न जड़ित मनहारी।
रघुकुल सूरज चाहूं पदरज, कोटि पाप सब जारी।।५।।

सरयू सरिता परम पुनीता, धोअत कलिमल सारी।
धवल हिलोरें दुहु कर जोरे, स्तुति कर अनुसारी।।६।।

ध्वजा पताका मंगल बाजा, बजे ढोल करतारी।
झांझ मृदंग उमंग भगत जन, जय सियराम उदारी।।७।।

लगी कतारें प्रभु के द्वारे, भीड़ जुटी बड़ भारी।
मोहन शरण पड़ा रघुवर के , करने भजन तुम्हारी।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
गुलमोहर रिजेंसी, महावीर नगर, रायपुर छत्तीसगढ़
दिनांक ०३.०२.२०२४
प्रातः ४ बजे
रचना क्रमांक १३९७