Friday 18 November 2011

महगाई(हाय यह कैसी महंगाई)

हाय यह कैसी महंगाई
जैसे सभी की शामत आई

गरीब-अमिर-सेठ किसान
सभी हुए इससे परेशान

व्यापारी हो गए मालामाल
खरीददार हो गए कंगाल

सब परेशान हो करते बात
महंगाई कर रही बज्राघात

रोटी-कपड़ा और मकान।
यही नारा देते हैं नेता

यदि हम कुर्सी पा जाएंगे
ये तिनो चीजे दिलवाएंगे

वे सब अपने पेट को भरते
नही किसी की बातो को सुनते॥

अमिरों की बात निराली।
उनके होठों पर है लाली॥

सबसे दुखी है मध्यमवर्ग।
बाम्बे-दिल्ली या गुलमर्ग॥

गरीबों का तो बुरा हाल।
भूखा पेट और पिचका गाल

वस्तुओं के नित बढ़ते दाम।
खरीददारी मे याद आते राम

राशन पानी या हो तेल
सबके बजट हो जाते फ़ेल

यदि कोई जाता मेहमान
तब याद आता केवल भगवान

हे प्रभु हम सब की लाज बचावो
 महंगाई से हमे उबारो ......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-२८//१९९१, रविवार, दोपहर .५० बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी गाजियाबाद (.प्र.)



प्यारी कुर्सी

ये कैसा चुनाव का जोर
चारों तरफ़ उठ रहा शोर

सफ़ेद कुर्ता और धोती
खादी के जाकेट और टोपी

बिक्री बढ़ गई है इनकी
बनिए बेचे भरपूर जोर

कई बने है नेता
जो थे कल तक और

इनको नही देश की चिन्ता
नही गरीबी का है ध्यान

कैसे बन जाए हम मन्त्री
मेरे पूरे हों कब अरमान

इनके दिल होते है काले
उपर से ये भोले-भाले

ये नित नए-नए करते वादे
इनके नही नेक इरादे

ये वोटों के लिए करते अर्ज
जैसे मांगते हो ये कर्ज

इन्हे चाहिए शोहरत-दौलत
और साथ मे सुन्दर औरत

इन्हे लगती किसी कि आह
इन्हे नही देश की परवाह

वोटो के लिए ये करवाते झगड़े
हिन्दू-मुस्लिम प्राय: लड़ते

इनके एक ही अरमान
चाहे देश बने श्मशान

मेरी कुर्सी सदा रहे आबाद
जाड़ा-गर्मी या हो बरसात

इन सब की एक ही मांग
हमे जीतावो अब की बार...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२५//१९९१, रात्रि -.३० बजे,

एन.टी.पी.सी. दादरी गाजियाबाद (.प्र.)