हाय यह कैसी महंगाई ।
जैसे सभी की शामत आई ॥
गरीब-अमिर-सेठ किसान ।
सभी हुए इससे परेशान ॥
व्यापारी हो गए मालामाल ।
खरीददार हो गए कंगाल ॥
सब परेशान हो करते बात ।
महंगाई कर रही बज्राघात ॥
रोटी-कपड़ा और मकान।
यही नारा देते हैं नेता ॥
यदि हम कुर्सी पा जाएंगे ।
ये तिनो चीजे दिलवाएंगे ॥
वे सब अपने पेट को भरते ।
नही किसी की बातो को सुनते॥
अमिरों की बात निराली।
उनके होठों पर है लाली॥
सबसे दुखी है मध्यमवर्ग।
बाम्बे-दिल्ली या गुलमर्ग॥
गरीबों का तो बुरा हाल।
भूखा पेट और पिचका गाल ॥
वस्तुओं के नित बढ़ते दाम।
खरीददारी मे याद आते राम ॥
राशन पानी या हो तेल ।
सबके बजट हो जाते फ़ेल ॥
यदि कोई आ जाता मेहमान ।
तब याद आता केवल भगवान ॥
हे प्रभु हम सब की लाज बचावो ।
महंगाई से हमे उबारो ......॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-२८/४/१९९१, रविवार, दोपहर २.५० बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी गाजियाबाद (उ.प्र.)