Saturday 1 October 2011

कभि हम भी तो होंगे बूढे़

कभी हम भी तो होंगे बूढे़,
जब कमर झुकेगी हमारी !
हाथों मे छड़ी एक होगी,
और हालत एक जुआरी !!

जब बाल पके होंगे मेरे,
आंखों मे होगी अंधियारी !
गरदन हिलते होंगे मेरे,
और बात हठिली जैसी नारी !!

कभी हम बच्चों के बनेंगे दादा,
और संग मे करेंगे किलकारी !
ढ़ेरों हम करेंगे हम उनसे वादा,
और बनेंगे उनकी सवारी !!

कुछ लोग करेंगे हमसे नफ़रत,
जब घेरेगी हमे बिमारी !
कुछ प्यार की दवा तो देंगे,
जब देखेंगे हमारी लाचारी !!

जब यम आएंगे हमे लेने,
तुम देना हमें एक चिंगारी !
खुश रहना जहां के लोगों,
होगी ये आशिश हमारी !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक- १८/०७/२०००, मंगलवार, दोपहर  .२० बजे

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

 

दुर्घटना से देर भली


जीवन को सुखमय बनाना है तो,
सुरक्षा को अपनाना है!
सेफ़्टी हेल्मेट पहन के पहले,
फ़िर आगे कदम बढ़ाना है!!

सेफ़्टी जूते पैरों मे पहनो,
और सेफ़्टी गागल आंखो में!
सेफ़्टी बेल्ट पहन के उपर चढ़ना,
और दस्तानें पहनो हाथों में!!

देश को तुमसे ढ़ेरों आशा,
और परिवार को तुम्हारा सहारा है!
रह तुम्हारी तकते बच्चे,
जिनका बस आश तुम्हारा है!!

जल्दबाजी काम मे ठीक नही,
संभल- संभल के काम करो!
दुर्घटना से देर भली,
यह अपने दिल मे सदा धरो!!

कदम-कदम पे खतरा है,
और जीवन अपना प्यारा है!
सवधानी पुर्वक काम करो,
यह संदेश हमारा है!!

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-२०/७/२०००, मंगलवार, शाम - ५.४५ बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

ए वर्दी वाले होते ही हैं ऐसे


ए वर्दी वाले होते है ऐसे,
जिन्हे देख माथे पे पसीना आ जाता है!
डाक्टर, वकिल या पुलिस कोई,
इनसे दूर से ही मन घबराता है!!

होते हैं बड़े काम के ए,
जब कई संकटों से हमे बचाते हैं!
पर कुछ -कुछ वर्दी वाले तो ,
हमारे उपर आतंक मचाते हैं!!

पैसों की लालच मे कई डाक्टर,
ईंषान की ज़िंदगी से खेलते हैं!
अपनी ज़ेबें भरने के लिए,
वे उन्हें मौत के मुंह में ढकेलते हैं!!

कुछ वकील होते ऐसे हैं
जो तुम्हे करोण पति से कंगाल बना देते!
तुम्हे महलों से झोपड़ी मे ला करके
वे अपनी उंची हवेली बना देते!!

कई पुलिस वालों का कहना ही क्या,
जो हमे ईंषान से अपराधी बना देते!
पुलिसिया बेंत का भय दिखलाकर,
वे अपनी बातें मनवा लेते!!

ए वर्दी वाले होते ही हैं ऐसे........
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-  १६/५/२०००, मंगलवार ,दोपहर-२.४५ बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

गुटखा खाना बंद करो

गुटखा खा-खा कर आप सब यारों,
क्यूं अपने तन को घटाते हो !
स्वस्थ शरीर को अपने प्यारों,
क्यूं मौत का दीमक लगाते हो !!

अमॄत नही ज़हर है यह,
जिसके खाने से कैंसर रोग हो जाता है !
मुंह छोटे हो जाते हैं इससे,
कई भयंकर रोग लग जाता हैं !!

अपने पैसे की बर्बादी कर,
क्यूं अपनी मौत बुला रहे हो !
अपने अच्छे गालों को सड़ाकर,
क्यूं अपने पेट को जला रहे हो !!

ज़वानी बुढ़ापा मे बदल जाएगी,
और बिन दातों के गाल बजावोगे !
ढीले-ढाले हो कर के,फ़िर,
घुट -घुट कर मर जावोगे !!

यदि बुरी मौत से बचना है तो,
गुटखा खाना बंद करो !
अपने परिवार के संग मे, खुश  होकर,
जिंदगी भर आंनद करो !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-//२००० ,रविवार,दो-पहर -.४५ बजे

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)