Tuesday 24 January 2023

"दुर्गा स्तोत्र" भावानुवाद "जय जय हे महिषासुर घातिनी जग दुःख नाशिनी शंभु प्रिये"

"दुर्गा स्तोत्र" भवानुवाद 

"जय जय हे महिषासुर घातिनी जग दुःख नाशिनी शंभु प्रिये"



हे गिरिवासिनी दैत्यविनाशिनी ज्ञानप्रकाशिनी चक्र लिये।

हे मृदुभासिनी शंभुविलासिनी विंध्यनिवासिनी शुद्ध हिये।।

सुमधुरहासिनी शंकरदासिनी जगतविकासिनी शंख लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनासिनी शंभुप्रिये।।१।। 


सुरवरदायिनी बुद्धिप्रदायिनी जगसुखदायिनी पाप हरो।

खलभयदायिनी मोक्षप्रदायिनी सतपथधायिनी

ताप हरो।।

शुभफलदाती लाज बचाती सुख बरसाती पद्म लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।२।। 


हरिप्रिय वनवासिनी सुमधुरहासिनी विश्विविलासिनी जय दुर्गे।

मधुकैटभनासिनी घटघटवासिनी भवभयनासिनी रुद्र प्रिये।।

हिमशिखगृहवासिनी मातु सुवासिनी अरिदल नाशिनी खड्ग लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।३।। 


अरिदल गजसूंड करे शतखंड विदारे चंड व मुंड रणे।

रिपुदल गजमस्तक  निज करकंटक केशी काटे युद्ध लड़े।।

कर सिंहसवारी शैलदुलारी शिव की प्यारी शूल लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःख नाशिनी शंभुप्रिये।।४।। 


रण में व्यस्त करे रिपु पस्त असुरदल मैया अस्त करे।

शिव चतुराई जानके माई दूत बना खल त्रस्त करे।।

कुटिल भाव के प्रस्तावों को माता रानी नष्ट करे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।५।। 


धावत आवत बन शरणागत अरिदल पत्नी विनय करे।

सब त्रिय विनती मैया सुनती पाप न गुनती अभय करे।।

सुरगण दुंदुभि दम दम दुमि दुमि सर्व दिशा ध्वनि गूंज किये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।६।। 


धूम्रविलोचन दैत्य धुम्र सम मांँ हुंँकारती भस्म करे।

रक्तबीज के रक्त से जन्में असुर विध्वंसक नष्ट करे।।

शुंभ निशुंभ चढ़ा बलि माता शिवभूतों को तृप्त करे।।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।७।। 


सुरबाला के नृत्य कला में ततथा ततथा नृत्य करे। 

सुमधुर गायन अद्भुत वादन नृत्य हृदय में मोद भरे ।।

सुन कर ढोलक थाप मृदंगा धुधुकुट रव में लिप्त रहे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।८।।



जय जयकार करे तव सुरगण स्तुति करत प्रसन्न करे।

रव पग नुपुर झंकृत उरपुर महादेव को मस्त करे।।

नट नटी नायक अर्धनारीश्वर नृत्य नित्य तल्लीन रहे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।९।। 


अति दीपित आनन अतिसुन्दर मन विधु आभा का हरण करे।

काले भवरों के समान दृग तीनलोक में रमण करे।।

केश लताओं से रिझावने महादेव मनमोद भरे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१०।। 


पुष्प चमेली सम सखियाँ संग युद्धभूमि में घिरी हुई।

झींगुरों के झुण्ड के जैसे घेरी हो कोमल भीलनी।।

लगती पुष्प चमेली जैसी सुघर लतामय प्राणप्रिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जगदुःखनाशिनी शंभु प्रिये।।११।। 


उदित भानु सी लिए लालिमा रक्तपुष्प सम हास्य करे।

त्रिलोकों के आभूषण सम रूप मधुरिमा कांति लिए।।

सकल कलाओं से हो शोभित मंद मंद मुस्कान लिए।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१२।।


कमल पंखुड़ी सममुखमंडल स्वच्छ कांतिमय मस्तक है।

हंसगामिनी रूप दामिनी पल पल सबकी रक्षक है।।

कर कटार ले ढाल व खप्पर रक्तबीज का रक्त पिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१३।। 


बंशी धुन सुन कोयल का मन  गाने लज्जित हो जाती ।

पुष्पघाटियों में विचरण कर गीत मनोहर है गाती।।

शबरी कुलवनिता परमपुनीता शैलकुमारी खेल करे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१४।। 


जिनकी कांति पर चंद्रकिरण भी धूमिल धूमिल सा दिखता।

कटि पर शोभित रेशम के पट पहनी करधन चमकीला।

देवी पगकंटक विधु सम दमकत वक्षस्थल शुभ कलश लगे।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१५।। 


अरि दुष्ट हजारी रण में मारी खल दल छल बल युद्ध किये।

प्रकटी सुरतारक असुर संहारक तारकसुर रिपु प्राण लिये।।

राजा सुरथ समाधि वैश्य ने भक्तिभाव से तुष्ट किये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१६।। 


जो माँ नित सेवत तव कमला पद सब धन वैभव प्राप्त करे।

जो नित्य मनाये शुभगुण गाये खाली झोली आप भरे ।।

हति शुंभ निशुंभ लगे दधिकुंभ बिना अवलंबन नष्ट किये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१७।। 


पावन सरिताजल रंगमहल कल मातुभुवन छिड़काव करे।

पाते वह नर इंद्राणी सम प्यारी नारी भावभरे।।

आये शिव प्यारी शरण तुम्हारी मंगलकारी आस लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१८।। 


शशि समान मुख देत परम सुख दर्शन से सब कष्ट हरे।

शंभुनाम धन ना पाये जन बिना तुम्हारे जाप किये।।

हम मूरख बालक मांँ तुम पालक आये दर्शन प्यास लिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।१९।। 


दीनन हितकारी शंभुपियारी जनसुखकारी दया करो।

सब संकट टारो हमें उबारो माँ भवसागर पार करो।।

काम विनाशिनी पापजारिनी भक्तमालिनी भक्त प्रिये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।२०।। 


माँ शीश मुकुटधर रूप मनोहर जग पीड़ाहर अविकारी।

कवि मोहन ध्याये तुम्हें मनाये शुभफल पाये हितकारी।।

कर धर त्रिशूल सृष्टि समूल खल उड़ा धूल अति कोप किये।

जय जय हे महिषासुरघातिनी जग दुःखनाशिनी शंभुप्रिये।।२१।। 


कवि मोहन श्रीवास्तव

2.1.2023

पाटन दुर्ग 

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र (भावानुवाद)(शार्दूल विक्रिड़ीत छंद)

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र (भावानुवाद)

(शार्दूल विक्रिड़ीत छंद)।


भोले भक्ति प्रदान हेतु प्रकटे, सौराष्ट्र के देश में ।

माथे पे शशि सोहता रतन सा, शोभा सजे केश में।।

आया हूं शिवनाथ के शरण में , माथा झुकाऊँ वहां।

पाऊं दर्शन सोमनाथ शिव का, आनंद छाया महा।।१।।


जो आदर्श पर्वत के शिखर पे, श्री शैल चोटी बसे।

आते हैं सुर रोज रोज चलके, आनंद से वे हंसे।।

जो हैं पार उतारने भव से, भोले बने नाव हैं।

मल्लिकार्जुन लिंग के शरण में, जो भक्त के ठांव हैं।।२।।


जो उज्जैन महान काल प्रगटे, देने यती मोक्ष हैं।

ऐसे शंभु कराल का वंदन करूं, जो मृत्यु के यक्ष हैं।।३।।


जो हैं पार उतारते भगत को, संसार के सिंधु से।

कावेरी अरु नर्मदा मिलन के , भोले किनारे बसे।।

मांधाता पुर नाम नगर का, शंभू विराजे वहां।

ओंकारेश्वर हैं कल्याणमय जो, माथा नवाऊँ तहां।।४।।


पूर्वोत्तर दिशा शंभु प्रकट जो बाबा बैद्यनाथ हैं।

गौरी संग विराजते वह सदा, जो भक्तों के आश हैं।।

पूजे हैं सुर और राक्षस सभी, ऐसे ललाटाक्ष को।

पूजूं मैं उन वैद्यनाथ शिव को, संसार के धाम को।।५।।


"जो दक्षिण सदंग के नगर में, आभूषणों से सजे।

नाना भोग विलास वैभवादि से, जो मीनकेतू लजे।।

देते सद्गति नागनाथ शिव जी, दें मुक्ति संसार से।

ऐसे शंकर से करूं विनय मैं, जो पालते प्यार से।।६।।


पूजे हैं जिनको सभी मुनि यती, राक्षस या देवता।

केदारेश्वर शंभु वास करते, लोकेश के जो पिता।।

ध्याएँ यज्ञ इंद्रादि आदि सब हैं, नाऊ सदा माथ मैं।

जो नागेश पर्वत पे बसत हैं, चाहूं सदा साथ मैं।।७।।


ऊंचे सह्य पर्वत के शिखर पे, गोदावरी तीर पे।

त्रयंबकेश्वर नाथ शोभित हुए, गंगा सदा सीस पे।।

भोले दर्शन मात्र से मन खिले, नाशे सभी ताप हैं।

त्रयंबकेश्वर नाथ के शरण जो, काटें सभी पाप हैं।।८।।


बांधे सागर सेतु राम शर से, जो ताम्र परणी जुड़े।

रामेश्वर शंभु के शरण में, माथा सदा है गड़े।।९।।


जो पूजित सदैव प्रेत गण महा, वो शाकिनि डाकिनी।

भीमा शंकर को प्रणाम करके,गाऊं सदा रागिनी।।१०।।


जो आनंद करें महानगर में, काशी कहाता वही।

सारे पाप जरे सिवा दरस से, है सत्य बातें यही।।

काशीनाथ अनाथ के जनक हैं, बाबा विश्वनाथ जी।

आया मोहन आपके के शरण में, ले लो भोले नाथ जी।।११।।


होके वंदित वे इलापुर बसे, आवास जो दिव्य है।

घृष्णेश्वर उदार को नमन है ,जो विश्व में भव्य हैं।।१२।।


जो भी पाठ करें सुजान क्रम से, द्वादश ज्योतिर्लिंग का।

पाते हैं फल लिंग के दरस का, संसार में ख्याति पा।।१३।।


कवि मोहन श्रीवास्तव

19.1.2023, गुजरा, पाटन दुर्ग

बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान – Tw


रचयिता आदि शंकराचार्य जी 

"चंद्रशेखर अष्टकम" भावानुवाद(आदि शंकराचार्य द्वारा रचित चन्द्रशेखर स्तोत्र)


चंद्रशेखर अष्टकम" भावानुवाद

(आदि शंकराचार्य द्वारा रचित चन्द्रशेखर स्तोत्र)


गीतिका छंद

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गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 


जो बना निज चाप में हर, रत्न पर्वत हैं भरें।

विष्णु को शर जो बनाकर,युद्ध शेखर ने करें।।

वासुकी सुतली बना रण, नाश तीनों पुर किये।

भूतभावन परम पावन, पूज्य हैं सबके लिये ।। १।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




ज्योति निज चमके सदा ही, युग्म पंकज पाद है।

सुर असुर नर यक्ष किन्नर, पाय आशीर्वाद हैं।। 

पूजते नित पंच कल्पक, वृक्ष पुष्प सुगंध से।

बाँधते अनुराग पूरित, प्रेम के अनुबंध से।। २।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




शंभू न्यारे काम जारे, नेत्र अग्नि ललाट है।

भस्म काया विरत माया, विश्व के सम्राट है।।

दिव्यशंकर रूप सुंदर, गृह हिमालय देश है।

व्याघ्र अबंर मस्त कुंजर, चर्म शोभित वेष है।। ३।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




पाद पंकज विष्णु ब्रह्मा, पूजते हैं प्राण से।

दिव्यगंगा गति तुरंगा, सिर धरे सम्मान से।। 

बिन्दु जल के चमक झलके, है जटा के जूट में। 

बूँद झटके दूर छिटके, हिमशिखर के कूट में।। ४।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



यक्षराज सखा कलाधर, नाश भग नैना करे।

सर्पभूषण दिव्य तन तन, वाम अंक उमा भरे।।

गरलपायी नीलकंठी, देह विषधर से घिरे। 

कर कुठार कपाल कंठन, सहचरी है मृग फिरे।।५।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वंदनीय महान हरहर, नारदादि प्रसंशते।

सुमुखमण्डल कर्ण कुण्डल, वीतराग उमापते।।

भूमिवल्लभ अंतकासुर, प्राण अंत तुम्हीं किए।

तरुकल्प बन आप हरहर, भक्त को वर दीजिए।।६।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



कौन बन जग का उजाला, सृष्टि अंधियारा हरे।

कौन भक्तविकार नाशक, कौन पालन जग करे।।

कौन है यमराज नाशक, जगतबंधन जो हने।।

कौन भूतों का सहायक, सिन्धुभव तारक बने।।७।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वैद्य हैं दुःख हेतु हरहर, नष्ट व्याधि सभी करें।

दक्ष यज्ञ विनाशकर्ता, तीन रूप गुणी धरें।।

भक्ति मोक्ष प्रदानकर्ता, नेत्र मस्तक सोहते।

पाप नष्ट करें सभी शिव, भक्त के मन मोहते।।८।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



पूजते सब भक्त वत्सल, भक्त पे करुणा करें।

कौन है निधि नित्यधारक, जो दिशा में रंग भरे।।

मुख्य हैं सब जीव में प्रभु, हर अगम्य अपार हैं।

जो परे सबसे सदा शुचि, वेद के वह सार हैं।।९।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



जो रचे ब्रह्माण्ड सारे, जो उसे फिर रक्षते।

व्यापते हैं वो चराचर, काल बंधन नष्टते।।

हैं सकल ब्रह्माण्ड के हर , जीव में बसते वही।

खेलते हर जीव में वो, भाव से हँसते वही।। १०।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वो सभी जड़जीव नायक, कौन उनके समान हैं।

वो सदा उपकारकारी, प्रथम संत सुजान है।।

रचयिता सुत मृकंडु का, मृत्यु आशंका डरा।

अभय पाया नीलकंठी , भक्तिरस से तब भरा।। ११।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



भक्ति पूर्वक जो पढे़ नित, चन्द्रशेखर पाठ को।

मृत्यु का भय दूर होता, पूर्ण जीवन ठाठ हो।।

धान्यधन परिपूर्ण सुखमय,नाम यश पुरवा बहे। 

अंत में वह मुक्ति पाकर, शंभु लोक सदा रहे।।११।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 


कवि मोहन श्रीवास्तव

गुजरा, पाटन दुर्ग

22.1.2023


"भवानी अष्टकम" हिंदी भावानुवादआदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचितछंद:-"महाभुजंग प्रयात सवैया"

"भवानी अष्टकम" हिंदी भावानुवाद

आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित

(महाभुजंग प्रयात सवैया)


न माता न दाता न पुत्री न धात्री,

न भ्राता न संगी पिता पुत्र दासा,

न विद्या न आजीविका वृत्ति मेरा,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।१।।


रहूं लिप्त कामादि लोभादि में मैं, 

महाक्लेश से मां बड़ा ही डरा हूंI

पड़ा विश्व के सिंधु के बंधनों में,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।२।।



भवानी नहीं जानता दान देना,

नहीं मंत्र स्तोत्र का ही पता है।

नहीं ध्यान पूजा नहीं न्यास जानूं,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।३।।



नहीं जानता पुण्य तीर्थादि मुक्ती,

भवानी अकेले सहारा तुम्हीं हो।

सुरों का नहीं ज्ञान ना त्याग भक्ती,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।४।।


दुराचार दुर्बुद्धि से युक्त हूं मां,

बुरी संगतों का महादास हूं मैं।

सदा क्लेश से युक्त वाणी उचारूं,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।५।।


नहीं जानता ब्रम्ह या विष्णु शंभू,

नहीं सूर्य राकेश इंद्रादि को मैं।

भवानी सदा दास हूं आपका मैं,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।६।।


बचा हे शरण्ये विवादादि से तूं ,

वनों पर्वतों आग पानी दुखों से।

सदा रक्षिणी शत्रु से त्राण देना , 

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।७।।


जरा जीर्ण रोगी महादीन गूंगा,

सदा ही सदा मातु मै बेसहारा।

क्लेशादिकों संकटों से घिरा मैं,

तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।८।।




कवि मोहन श्रीवास्तव

16.1.2023, सेमरी पाटन दुर्ग

श्री भवानी अष्टकम  का  जाप करने के फायदे हिंदी में -Shri Bhawani Ashtak Paath benifits in hindi 

"वेदसार शिवस्तव स्तोत्रम" भावानुवाद (महाभुजंग प्रयात छंद)

"वेदसार शिवस्तव स्तोत्रम" भावानुवाद 

(महाभुजंग प्रयात छंद) 

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महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



करे शंभु रक्षा सभी प्राणियों की, करें पाप का नाश मेरे विधाता।

करी चर्म धारे महादेव श्रेष्ठा, जटाजूट में खेलती गंग माता।।

सदा ध्यान धारूं वही मात्र स्वामी, ललाटाक्ष से मीनकेतू लजाए।

सदा लाज राखो महानागधारी, कृपालू दयालू दुखों को मिटाए।।1।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



महादेव के तीन नैना लुभाते, कलानाथ आदित्य ज्वाला कहाए।।

विरूपाक्ष देवेश वृषांक भोले, महाशूल नाशी तुम्हीं हो सहाए।।

विभूती मुखी पंच आनंदकारी , करूं वंदना प्रार्थना मैं पुरारी।

लगा आसनी बैल पे नीलकंठी, उमा संग मोहे महारूपधारी।।2।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



महाकाल बाबा प्रभो नीलकंठी, गणाधीस कैलाशवासी पुरारी।

धरे रूप जो भिन्न संसार में हैं, लपेटे हुए गात में भस्म भारी।।

प्रभा रूप हैं आप ही गंगधारी,उमा नाथ अर्द्धांगिनी प्राण प्यारी।।

मुखी पंच वाले भजूं नागधारी,करूं नित्य पूजा पिनाकी पुरारी।।3।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



उमा प्राणस्वामी जटाजूट धारी, कपाली महादेव त्रिशूल धारी ।

प्रभो इंदुधारी सदा विश्वरूपा, तुम्हीं मात्र हो नाथ कल्याणकारी।।

प्रभो आप हो पूर्ण ब्रह्मांड धारी, हरो क्लेश सारे महादेव मेरे।

महाकाल ध्याऊं रिझाऊं मनाऊं, त्रियामा दिवा और संध्या सवेरे।।4।।


महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।


बिना लालसा जानने योग्य स्वामी,विधाता निराकार हो आदिकारी ।

प्रभो सृष्टि उत्पत्ति पालो तुम्हीं ही,विनाशी करूं प्रार्थना मैं तुम्हारी।।5।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



प्रभो जो न पृथ्वी नहीं अग्नि पानी, नहीं वायु आकाश ना शीत गर्मी।

न तंद्रा न निद्रा नहीं देश कोई, बिना मूर्ति त्रिमूर्ति 

हो ठोस नर्मी।।6

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



अजन्मा सदा नित्य हो शूलपाणी , परे हो निमित्तादि के गंगधारी।।

प्रकाशादि के हो उजाला पुरारी, सदा आपका रूप कल्याणकारी।।

परे आप अज्ञान से हो कपाली, नहीं आदि या अंत की जानकारी।।

पवित्रा पुराराति अद्वैतरूपा, करूं वन्दना आपका व्यालधारी।।7

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



नमस्कार है वेदवेदव्य शंभू, नमस्कार हे सच्चिदानंदमूर्ते।

तपोयोग से प्राप्त कैलाशवासी, नमस्कार हे आपको विश्वमूर्ते।।8।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



त्रिशूलपाणी विभो विश्वनाथा,पुरारी हे कामारि हे विश्वभूपा।

 महादेव शंभो महेशा त्रिनेत्रा,उमा प्राणवल्लभ हे शांत रूपा।।

नहीं श्रेष्ठ कोई तुम्हारे सिवा है,सती के पती तो निराले पिया हैं।

करे नित्य पूजा महामात्रि गौरी,महादेव की प्राण प्यारी प्रिया है।।9।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



प्रभो शूलधारी सती के पती हे,ललाटाक्ष शम्भू  नंदी सवारी।

प्रभो सृष्टि उत्पत्ति पालो तुम्हीं ही,विनाशी करूं प्रार्थना मैं तुम्हारी।।10।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे पुरारी हमारी।।



महादेव कंदर्प नाशी पिनाकी, तुम्हीं लिंग रूपेश संसार में हो।

समाए हुए विश्व राकेशधारी, तुम्हीं विश्व का नाश आधार भी हो।।11।।

महादेव हो आप लोकाधिराजा, करूं अर्चना वंदना मैं तुम्हारी।

नहीं जानता ध्यान पूजा कपाली, सुनो प्रार्थना हे 

पुरारी हमारी।।



कवि मोहन श्रीवास्तव