Saturday 24 February 2018

"ऋतुओं का राजा"

झुकी आम  डाली लगी बौर वाली ,
महुआ का आँगन महकने लगा !
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन ,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है !!

कोयल कुहुँक कर पपिहे से बोली ,
मयूरा का तन-मन नचने लगा है !
मदमस्त सरसों पिली लजीली ,
गुलाबों पे भवंरा भटकने लगा है !!

गदराई टेसू पलासों की डाली ,
पिया रस बसंती के चखने लगा है !
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है !!

फगुनाया मौसम महकी बयारें ,
तन के अगन मन दहकने लगा है !
जिन्हे प्यार वाली छुअन मिल न पाई ,
मन आज उनका कसकने लगा है !!

धानी चुंदरिया धरती ने ओढी ,
गगन मुस्कुरा आज तकने लगा है !
भंवरों की टोली रिझाने गुलों को ,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है !!

खुश्बु लुटाती पवन बह रही है ,
चेहरा सभी का दमकने लगा है !
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन ,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है !!

कवि मोहन श्रीवास्तव
रचना क्रमांक :- ( 995 )