आई हैं नौ कन्या ,नौ दुर्गा के रुपों मे ।
लाई हैं भैरव को ,देखो अपने संग मे ॥
पहली है शैल पुत्री तो,
ब्रह्मचारिणी दुजी ।
तीसरी है चन्द्रघण्टा ,तो कुष्माण्डा चौथी ॥
पांचवी स्कन्दमाता,तो छठी है कात्यायनी ।
सातवीं कालरात्री,तो आठ महागौरी ॥
सिद्धिदात्री है नौवीं ,तो बालक भैरव समान है ।
देखने मे ये छोटे-छोटे, पर महिमा बहुत महान है ॥
सम्मान
इन्हें देकर,हमे भोग
लगाना है ।
जो
कुछ भी चढ़ाते
मां को,हमे इनको
चढ़ाना है ॥
आशिर्वाद हमे इनका,मिल जाना तो अच्छा है ।
इनकी ही दुआवों से, सब सुख तो बरसता है ॥
आई हैं नौ कन्या, नौ दुर्गा के रूपों मे ।
लाई हैं भैरव को,देखो अपने संग मे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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१८-४-२०१३,शाम ५ बजे,गुरुवार,
पुणे, महा.