Monday 18 March 2024

"राधा कृष्ण की होली" दोहे

"राधा कृष्ण की होली"


राधा जी मकरंद हैं, लूटें कृष्ण पराग।
लिपट लिपट कर खेलते, यमुना तीरे फाग।।


श्याम रंग में डूबते, राधा के सब अंग।
गोरी राधा से हुए, मोहन मस्त मलंग।।


बरसाने टोली चली, खेलन होली आज।
ग्वालबाल संग श्याम लखि, राधा आवे लाज।।


मोहन पिचकारी लिए, जाते राधा पास।
भागी जाएं राधिका, मन में है उल्लास।।


लिन्ह पकड़ हैं राधिका, श्याम कसे भुजबंध।
लट कपोल रगड़ें किसन, करें बहुत हुड़दंग।।


कटि बांधे पीताम्बरी, कसे वेणु निज श्याम।
मोर पंख है सीस पर , लगते सुख के धाम।।


श्याम प्रीत के रंग में, राधा जाए डूब।
इक दूजे पे रंग से, होली खेलें खूब।।


पिचकारी की मार से, राधा हुईं बेहाल।
पाकर मोहन प्रेम को, हो गइ मालामाल।।


भीगी चूनर राधिका, पीताम्बर घनश्याम।
रंगों की बौछार से, यमुना हुई ललाम।।


जमुना जल में धो रहे, दोनों अपना रंग।
मोहन राधा रंग से, जमुन हुई सतरंग।।


होली के सब रंग को , धोएं राधा श्याम।
मोद युक्त यमुना हुई, छवि निरखत अभिराम।।


होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
सतरंगी जीवन रहे, बढ़े सभी में प्रीत।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
12.03.2023
Mahuda,jheet,patan durg Chhattisgarh
1367

Wednesday 13 March 2024

वो जाके बसे परदेश

अपने जीवन कुछ शेष।

वो जाके बसे परदेश।।


जनमें बेटा-बेटी थे  जब,

हर्षित बापू माई।

चाचा चाची नाना नानी,

दादा दादी ताई।।

थी खुशियां बडी विशेष।

वो जाके बसे परदेश।।१।।

अपने जीवन कुछ शेष।


हमने जैसे तैसे जीकर,

उनको खूब पढ़ाया।

उनकी सुख सुविधा के खातिर,

अपना मान घटाया।।

उन्हें ना हो दुःख लव लेश।

वो जाके बसे परदेश।।२।।

अपने जीवन कुछ शेष।


पढ़ लिख कर जब योग्य हुए तो,

अपना व्याह रचाए।

दूर देश में जाकर के वे,

अपना गेह बसाए।।

लें मोबाइल सन्देश।

वो जाके बसे परदेश।।३।।

अपने जीवन कुछ शेष।


क्या क्या सोचे थे हम दोनों,

देखे थे सुख सपने।

अपना दुःख किसको बतलाएं,

छोड़ गए जब अपने।।

दिल में दिन रात कलेश।

वो जाके बसे परदेश।।४।।

अपने जीवन कुछ शेष।


सपनों के इस सूने घर में,

हम हैं आज अकेले।

यहीं लगा करते थे जब तब,

सब खुशियों के मेले।।

अब यादों के अवशेष।

वो जाके बसे परदेश।।५।।

अपने जीवन कुछ शेष।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, अम्लेश्वर,दुर्ग,छत्तीसगढ़


दिनांक १३.०३.२०२४






Friday 1 March 2024

छंद - बसन्त तिलका "शिव स्तुति" भोले बजाय डमरू

छंद - बसन्त तिलका
शिव स्तुति


भोले बजाय डमरू, गण साथ में हैं।
गंगा ललाट पर है, जग नाथ में है।।
लेके त्रिशूल चलते, हरि नाम गाते।
बाघंबरी पहनके, शिव ॐ ध्याते।।१।।

हैं साथ वाम गिरिजा, शिव की पियारी।
नन्दी सजे बसह पे, करते सवारी।।
कैलाश लोक हर का, गृह है निराला।
माला भुजंग गर में, मुख पे उजाला।।२।।

राकेश सीस शिव के, अलि कान बाला।
पीते सुधा समझ के, विष रूप प्याला।।
हैं कोटि काम लजते, शिव रूप से है।
भोले सदा सरल हैं , सुर भूप भी हैं।।३।।

माथा त्रिपुण्ड सजता, तन भस्म भारी।
मुस्कान मंद मुख पे, बहु व्याल धारी।।
ब्रह्माण्ड के शिव पिता, सब लोक भर्ता।
पालें विनाश करते, सुख सिद्धि कर्ता।।४।।
लाला ललाल ललला, ललला ललाला
विघ्नेश कार्तिक सदा, सुत संग में हैं।
भोले जपें हरि सदा, अहि अंग में हैं।।
बाबा करूं अरज मैं , बिगड़ी बनाओ।
दो ज्ञान बुद्धि बल को, धन को बढ़ाओ।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
दिनांक:- ०१.०३.२०२४, शुक्रवार,
गुलमोहर रेसीडेंसी, महावीर नगर, रायपुर छत्तीसगढ़





Saturday 24 February 2024

दोहा

राम काज में जो करें, कालनेमि बन रार।
उन सबकी खल कामना,क्षण भर में हो जार।।
दुष्ट सदा हर युग रहें, करें अशुभ व्यवहार।
पर शुभ कारज हो सफल, पड़े दुष्ट को मार।।
धर्म पाप के युद्ध में, सदा यही है रीत।
पाप हारता आप है, मिले धर्म को जीत।।
संतों के सानिध्य में, बढ़ें शांति की ओर।
पर दुष्टों का साथ तो,दुख देता घनघोर।।
धर्म कर्म के काम में, दुष्ट करें विध्वंस।
धर्म सदा है जीतता, मिटे दुष्ट के वंश।।
२०.०१.२०२४

श्री कृष्ण स्तुति " हे मुरली मनोहर श्याम "सुधार हो गया

हे मुरली मनोहर श्याम।


हे मुरली मनोहर श्याम।
प्रभु आओ, प्रभु आओ…

मेरे बिगड़े बनाने काम।। 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…. 

मेरी नैया डोल रही है, बीच भँवर में आओ।
एक भरोसा मुझको तुमपर, आकर लाज बचाओ।।
मुझे जग से नहीं है काम…. 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…. 
हे मुरली मनोहर श्याम
मेरे बिगड़े बनाने काम… 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…

मुझको कोई पंथ ना सूझे, तेरा एक सहारा।
ले चल मुझको दूर यहाँ से, अब नहीं यहाँ गुजारा।।
मैं लूँगा तुम्हारा नाम…. 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…
हे मुरली मनोहर श्याम।
प्रभु आओ प्रभु आओ…. 
मेरे बिगड़े बनाने काम… 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…


सब अपराध क्षमा करके , अपना लो गोकुल वाले।
तेरी लीला बहुत सुना हूँ, तुम हो बड़े निराले।।
मुझे ले जाने निज धाम… 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…
हे मुरली मनोहर श्याम।
प्रभु आओ प्रभु आओ…. 
मेरे बिगड़े बनाने काम… 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…


मेरी बुद्धि थोड़ी सी है, हूँ जन्मों का पापी।
पातक के उद्धारक तुम हो, जग में परम प्रतापी।।
मैं दुनिया में बदनाम….. 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…
हे मुरली मनोहर श्याम।
प्रभु आओ प्रभु आओ…. 
मेरे बिगड़े बनाने काम… 
प्रभु आओ, प्रभु आओ…

कवि मोहन श्रीवास्तव (सुधार हो गया है)
15/04/91

है ठंड गुलाबी,आखें शराबी

है ठंड गुलाबी,आखें शराबी,
मै हूं,तेरा दिवाना ।
जुल्फें हैं सुहानी, तुम मस्तानी,
पागल सा बना,है जमाना ॥
है ठंड गुलाबी..........

तुम्हें करें प्यार,दिल बेकरार,
बाहों मे मे, आ जावो ।
तुम तो हो जाम, रंगीन शाम,
आखों मे नशा,छा जावो ॥
है ठंड गुलाबी..........

तुम जाड़े की धूप,परियों सा रूप,
पूनम की रात,बन जाती ।
नागिन सी चाल, तुम हो सवाल,
फूलों की तरह,हो मुस्काती ॥
है ठंड गुलाबी..........

तुम्हें पाने की आश, तुम हो तलाश,
तुम जिसे मिलो तो,नसीब खुल जाये ।
तुम सागर की लहर, हो सपनों का शहर,
तुम्हे देखे जो वो, सब भूल जाये ॥
है ठंड गुलाबी..........

अब और ना सतावो,मुझे इतना ना तड़पावो,
मेरे सपनों की रानी आवो ।
दिल की धड़कन बढ़ाती,क्युं तुम नही आती,
मेरी सच्ची कहानी आवो ॥

है ठंड गुलाबी,आखें शराबी,
मै हूं तेरा दिवाना ।
जुल्फें हैं सुहानी, तुम मस्तानी,
पागल सा बना है जमाना ॥
है ठंड गुलाबी..........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-11-1999,monday,11.50am,
chandrapur,maharaashtra.



Friday 23 February 2024

कनकधारा स्तोत्र हिन्दी भावानुवाद"





कनकधारा स्तोत्र 


धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है। 


कनकधारा स्तोत्रम श्री बल्लभाचार्य द्वारा लिखा गया माँ लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली स्तोत्र है। कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तथा कनकधारा यन्त्र को धारण करने से धन सम्बंधित परेशानियां शीघ्र ही दुर हो जाती हैं। कनकधारा स्तोत्र धन प्राप्त करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है।


“कनकधारा स्तोत्र हिन्दी भावानुवाद"

छन्द - “बसंत तिलका”

लाला ललाल ललला, ललला ललाला 


जैसे प्रवास करती, मदमस्त आली।

फूले तमाल तरु की, लचकी डँगाली।।

वैसे सदैव कमला , हरि वाम राजे।

श्री अंग अंग दमके, शुचि रूप साजे।। १।। 


रोमांच श्रीहरि रमे, रमणीय माया।

ऐश्वर्य आदि सब है, तुममे समाया।

संपूर्ण मंगलमयी, धनधान्य देवी। 

लक्ष्मी महाभगवती, हरिधाम सेवी

।।२।।

माता दयालु महिमा, सब लोग गाते।

संतुष्टि लाभ मिलता,यश कीर्ति पाते।।

देवी दयालु महती, ममता लुटाओ।

ले लो मुझे शरण में, बिगड़ी बनाओ।।३।।


आली सरोजदल पे, मड़राय जैसे ।

देखे स्वरूप छबि माँ, इतराय वैसे ।।

लज्जा भरे नयन से, हरि को निहारे।

लौटे सप्रेम पुनि माँ, छवि देख न्यारे।।४।। 


होके कृपालु मुझको, भव से उबारो।

हे सिन्धु पुत्रि चपला, दुख ताप टारो।।

ध्याऊँ समेत हरि के , दिन रात पद्मा ।

झोली सुभक्त भर दो, धन धान्य से माँ।। ५।। 


माँ इंद्र तुल्य पदवी, धन धान्य देती।

होके समर्थ सबसे, जग नाव खेती ।।

आनंद भोग वह जो, हरि को सुहाते।

देती मुरारि हरि को, सुख सिद्ध माते ।।६।। 


नीलाब्ज तुल्य जननी, हरि की ललामा।

स्वामी कृपालु हरि की,प्रिय आप भामा ।।

आधे खुले नयन से, निज दृष्टि डालो।

लक्ष्मी दयालु महती, सुत को सँभालो।। ७।। 


भार्या अनंतजित हो, प्रिय शेषशायी।

ऐश्वर्य धान्य धन दो, बनके सहाई।।

प्रेमातिरेक वश हो, पलकें झुकी है।

नैना सुमध्य पुतली, ठिठकी रुकी है।।८।। 


माँ किन्तु एकटक ही, हरि को निहारें।

आनंद संग चपला, सुख से विहारें।।

वो देख पास हरि को, नयना झुकाती।

है प्रीत की विवशता, प्रिय से लजाती।। ९।।


श्रीविष्णु देवमणि को, निज वक्ष धारें।

हारावली हृदय को, हरि के सिंगारे।।

संचार प्रीत प्रिय के, हिय में कराती।

आनंद प्रेम हरि पे, विपुला लुटाती।।१०।। 


राजीव कुंजदल की, बनके निवासी।

मालाकटाक्ष कमला, हरती उदासी।।

कल्याण देवि कर दो, विनती हमारी।

बाधा समस्त हर लो, हरि प्राण प्यारी।।११।। 


जैसे घने जलद में, चमके शया है।

वैसे कृपालु हरि की, महती दया है ।।

गोविंद वक्ष पर है, मधुमेघमाला।

फैला सुदिव्य जिससे, मणि सा उजाला ।।१२।। 


आनंद नेह भरती, भृगु वंश में माँ।

माता समस्त भुवि की, हरि की ललामा ।।

कल्याण आप कर दो, निज भक्त माता।

हे पूज्य मूर्ति वरदा, महनीय दाता ।१३।।


आधे खुले नयन से, करना कृपा माँ ।

हे सिन्धुपुत्रि मुझपे, करना दया माँ।।

हो मंद मंद हँसती, चपला ललामा।

पाते प्रभाव तुमसे, हिय विष्णु कामा।।१४।। 


पाया अनंग हरि से, हिय मान भारी।

लक्ष्मी महान जननी, सरला उदारी।।

डालो सुदृष्टि मइया , भव से उबारो ।

माता सदैव विनती, दुःख क्लेश टारो।। १५।। 


नारायणी हरिप्रिया, घनरूप नैना ।

दाती दयालु सुन लो, तुम पुत्र बैना।।

ज्यों ताप नाश करती, बहती हवायें।

त्यों क्लेश आदि हर लो, विनती लगायें।।१६।। 


हो दीन मैं पपिहरा, तुमको पुकारा।

वर्षा करो सदय माँ, धनधान्यधारा।।

माता दयालु रहना, तलवार धारी।

टालो समस्त विपदा, हरि प्राण प्यारी।। १७।। 


ज्ञानी मनुष्य जननी, प्रिय पात्र होते।

वे स्वर्ग पा सरलता, निज पाप धोते।।

सौभाग्य वैभव सभी, धन धान्य पाते।

लक्ष्मीकृपा लहर से, सुख शांति छाते ।।१८।। 


जैसे सरोज खिलता, नवगर्भ माता।

आता प्रकाश उसमें , शुचिदर्भ दाता।।

वैसी सुदृष्टि कर दो, जय विष्णु प्यारी ।

संपूर्ण सिद्धि वर दो, विनती हमारी। ।१९।।


संसार के सृजन को, तुम ही रचाती ।

माँ ब्रम्ह शक्ति बनके , सबको बनाती।।

माँ विष्णु शक्ति बनके, सबको खिलाती।।

माँ पाल पोष जग को, तुम ही जिलाती।।२०।। 


हो रुद्र शक्ति बनके, भव में विराजे।

देवी तुम्ही प्रलय में, सब काम साजे।।

माँ एकमात्र हरि की, तरुणी प्रिया हो।

लक्ष्मी प्रणाम् महती, करती क्रिया हो।।२१।।



माता प्रणाम् तुमको, शुभ लाभ देना।

दे वेद ज्ञान हमको, भव नाव खेना ।।

है रूप सिन्धु रति सी, रमणीय माता।

हे माँ प्रणाम् कर मैं, यशगीत गाता।।२२।। 


लक्ष्मी सरोज वन की, तुम हो निवासी ।

आधारभूत जगती, हरि श्री विलासी।।

गोविंद शक्ति तुम ही, रमणीय माया।

देवी प्रणाम् करने, हरिधाम आया।।२३।।


अम्भोज देह कमला, तुमको नमामी।

हे क्षीरसिन्धु रमणी, तुमको नमामी। ।

राकेश सोम भगिनी, तुमको नमामी।

नारायणी हरिप्रिया, तुमको नमामी ।।२४।। 


अम्भोज तुल्य नयना, हरि प्राणप्यारी ।

जो वंदना चरण की, करते तुम्हारी।।

देती अपार उनको, धन धान्य माता।

साम्राज्य हर्ष सुखदा, श्रुति ज्ञानदाता ।।२५।। 


सम्पूर्ण क्लेश हर के, व्यवधान काटे।

देवी कृपा कर सदा, निज नेह बाँटे।।

दाती सदा चरण की, मृत्तिका बनाना।

माँ स्नेह आप मुझपे, नित ही लुटाना।।२६।। 


जो भी उपास रखते, चपला तुम्हारी।

पाते कृपा अटल वो, प्रभु प्राणप्यारी।।

हो कामना सफल जो, मन में विचारे।

संपत्ति धान्य बरसे, दुख क्लेश टारे।।२७।। 


ऐसी रमा भगवती, तुमको रिझाऊँ।

वाणी शरीर मन से, गुणगान गाऊँ।।

गोविन्द प्राण प्रिय माँ, विनती हमारी ।

लक्ष्मी दयालु सुत पे, रहना उदारी।।२८।।


देवी सरोज वन की, रमणीय वासी।

नीलाब्ज हस्त कमला, हर लो उदासी ।।

दैदीप्यमान छवि है, शुभ कंठ माला।

शोभायमान तन में, पट हैं निराला।।२९।। 


झाँकी मनोरम लगे, सबसे तुम्हारी।

ऐश्वर्य आदि वर दे, कमला उदारी।।

देवी प्रसन्न रहना, विनती हमारी।

गाऊँ सदैव गुन मैं,मन से तुम्हारी।।३०।। 


ले दिव्य स्वर्ण कलशा, भर गंगधारा।

देवी उपासक सभी, अभिषेक द्वारा।।

श्री अंग स्नान करके, तुमको मनाते।

पूजें रमा चरण वो, सुख शांति पाते।। ३१।। 


संपूर्णलोक मुखिया, हरि प्राण प्यारी।

हे सिन्धुराज बिटिया, जग की अधारी।।

मैं हूँ प्रणाम् करता, नित देवि माया।

लेना मुझे शरण में, बन छत्रछाया ।।३२।।



अम्बोज नेत्र हरि की, कमनीय पद्मा ।

लक्ष्मी तुषारवदना, चपला ललामा।।

मैं दीन हीन कपटी, बलहीन माता। 

पूजा विधान विधि से, करना न आता।।३३।। 


देवी कृपा करुण हो, कर दो उदारी।

सारे विपत्ति हर लो, कमला हमारी।।

माता दयालु महती, दृग ना हटाना।

लक्ष्मी सदैव करुणा, मुझपे लुटाना।।३४।। 


जो नित्य ही स्तुति करे, त्रय वेद रूपा।

लक्ष्मी कृपा प्रबल से, गिरते न कूपा।।

ऐश्वर्य धान्य धन पा, गुणवान होते।

होके महासरल वो, सुख बीज बोते।।३५।। 


विद्वान लोग यश को, सुन पास आते।

ईच्छा धनाढ्य मन की, पहचान जाते।।

लक्ष्मी कृपा बरस के, धन धान्य लाते।

सौभाग्य प्राप्त कर वो, हरि लोक पाते।।३६।। 


कवि मोहन श्रीवास्तव

27.11.2023

खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर, पहांदा,दुर्ग, छत्तीसगढ़ 


॥ इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ




छंद:- "छप्पय " श्री राम स्तुति (हुआ राम मय विश्व, और केसरिया तनमन)

छन्द - छप्पय
छप्पय एक ‘संयुक्त मात्रिक छन्द’ है। इस छंद का निर्माण ‘मात्रिक छन्द’ के ‘रोला छन्द’ और ‘उल्लाला छन्द’ के योग से होता है। छप्पय छन्द में कुल 6 चरण होते है।
इसमें प्रथम 4 चरण ‘रोला छन्द’ के होते है, जबकि अंतिम 2 चरण ‘उल्लाला छन्द’ के होते हैं। प्रथम 4 चरणों में कुल 24 मात्राएँ होती है, जबकि अंतिम 2 चरणों में 26-26 अथवा 28-28 मात्राएँ होती है।

उदाहरण में दिये गये उल्लाला छन्द में उल्लाला के तीसरे प्रकार का प्रयोग हुआ है अर्थात दो लघु या एक गुरु पहले रखें उसके बाद 2+13-13मात्राऐं रखें,
छप्पय छन्द एक बहुत ही सुंदर छन्द है जिसमें भक्तिकालीन कवियों ने ढेरों पद लिखे हैं।
रोला के अंत में चार लघु रखने से बहुत मनोरम लगता है।
"छप्पय" उल्लाला का दूसरा प्रकार।

हुआ राम मय विश्व, और केसरिया तनमन।
झंकृत ढोल मृदंग,और नूपुर ध्वनि छन छन।।
भगवा ध्वज लहराय, रहा छप्पर छत ऊपर।
दर्शन करने देव, स्वर्ग से आए भू पर।।
राम भक्त टोली चली ।गांव गांव नगरी गली ।।
गाते प्रभु गुण गीत हैं। धर्म कर्म से प्रीत है ।।१।।

कितनों के बलिदान बाद, आया यह शुभ दिन।
पांच सदी तक नैन, प्रतीक्षा रत थे दिन गिन।।
आज बना संयोग, पधारे मंदिर रघुवर।
घर घर वंदनवार, द्वार पर कलशा सुंदर।।
हुए वीर बलिदान हैं।यह उनका सम्मान है।।
बात गई अब बीत है।हुई सत्य की जीत है।।२।।

जीव सभी धनभाग, अवध की ओर चले हैं।
दीवाली की भांति, चहूं दिशा दीप जले हैं।।
राम राज्य की भोर, हुई भारत के आंगन।
भारतवासी लोग , मुदित आह्लादित मन मन।।
दुष्ट करें व्यवधान हैं । जिन्हें नहीं कुछ ज्ञान है।
पर सबके हिय राम हैं।सजी अयोध्या धाम है।।३।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
१९.०१.२०२४, शुक्रवार,८ बजे सांय
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़






छंद:- बरवै" (पुनः विराजे रघुवर, अपने धाम)

बरवै एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके विषम चरण (प्रथम, तृतीय) में बारह-बारह तथा सम चरण ( द्वितीय, चतुर्थ) में सात- सात मात्राएँ रखने का विधान है। सम चरणों के अन्त में जगण (जभान = लघु गुरु लघु) होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है। बरवै को अवधी का मूल छंद माना जाता है किंतु यह बाध्यकारी नहीं है।6 Jan 2023

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बरवै रामायण से लिया गया छंद:

चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।

जानि परै सिय हियरे ,जब कुंभिलाय।।

प्रेम प्रीति को बिरवा ,चले लगाय।

सियाहि की सुधि लीजो ,सुखी न जाय।।

........=


श्री राम स्तुति 

"बरवै"
पुन: विराजे रघुवर, अपने धाम।
मूरत सुंदर लाजे, कोटिन्ह काम।।१।।

जनक दुलारी प्यारी, रघुवर साथ।
खड़े लखन धर धनु शर ,लेके हाथ।।२।।

गदा हाथ में धारे , श्री हनुमान।
राम चरण का करते, हैं प्रभु ध्यान।।३।।

बाल रूप सांवल है, सियपति गात।
लगें मनोहर राघव, दिन या रात।।४।।

पीताम्बर धारी हैं, श्री भगवान।
भक्त मंडली करते, हैं गुणगान।।५।।

कौशल्या सुत दशरथ, नंदन राम।
कृपा सिंधु हितकारी, सुख के धाम।।६।।

सकल सृष्टि अधिनायक, हो महराज।
सदा बचाते भक्तों, की हो लाज।।७।।

दुष्टों को लगते हो, जैसे काल।
संत हेतु रहते हो, बनकर ढाल।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
२१.०१.२०२४, रविवार, सायं ७ बजे
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"अष्टपदी" श्रीराम स्तुति (दशरथ लाल हरे)

"दशरथ लाल हरे"
अवध लगत अति सुन्दर, जहॅं रघुवर हैं।
राम लला सुख धाम, दशरथ लाल हरे।।१।।

मूरत अद्भुत स्यामल, पग पायल है।
सरयू चरण पखार, दशरथ लाल हरे।।२।।

रघुवर भवन अलौकिक, सब दैविक है।
अलग अलग श्रंगार, दशरथ लाल हरे।।३।।

अनुपम बालक रूपम, छबि उत्तम है।
मधुर मधुर मुस्कान, दशरथ लाल हरे।।४।।

रतन जड़ित पीताम्बर,कोमल उर हे।
जय जय अवध भुआल, दशरथ लाल हरे।।५।।

सीस मुकुट कर कंगन, तन चन्दन हे।
कटि करधन मणि हार, दशरथ लाल हरे।।६।।

टुकुर-टुकुर सब देखत, निज नयनन हे।
भगतन लखि मुसुकात, दशरथ लाल हरे।।७।।

अखिल जगत जन नायक, सुख दायक हे।
जयति जयति जय राम, दशरथ लाल हरे।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
२५.०१.२०२४, सांय काल ५ बजे, अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान"

सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान"



पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
होते हैं दिन कितने अच्छे , हर त्योहार मनाते हैं।
घृणा द्वेष को दूर भगाकर, प्रेम वहां विखराते हैं।।
चैत्र मास के नए वर्ष में, खुशियां खूब लुटाते हैं।
घर आंगन व गली चौक में,  तोरण ध्वजा लगाते हैं।।
धूम धाम रहती है भारी, माता के नौराते में।
नौ दिन करके ब्रत उपवासा, भजन करें जगराते में।।
जन्मोत्सव हनुमान राम का  , करें मनाकर ध्यान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।1।।
वैशाखी में बल्ले बल्ले, खुशी मनाते संग दादी।
परशुराम जयंती अक्षय तृतिया ,  गुड्डा गुड़िया की शादी।।
जगन्नाथ रथ की यात्रा को , देश मनाता है सारा।
बलराम सुभद्रा संग कृष्ण का, भक्त करे हैं जयकारा।।
पावन श्रावण में भोले का, कावड़ यात्रा बम बम बम।
नागपंचमी  भाई बहना,का पावन रक्षाबंधन ।।
भाद्र महिना तीज व कजरी, करें बेटियां गान ।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।2।।
मथुरा सहित सभी जगहों में, कृष्ण जन्म उत्सव भारी।
नैनों में रख छवि मोहन की, खुशी मनाते नर नारी।।
शारदीय नवरात्रि मनाते, क्वार मास में भक्त सभी।
अम्बे रानी की महिमा को, गाते सुनते लिखें कवी।।
महिषासुर बध कर मां दुर्गा, मोद धरा विखराई थी।
भगवान राम ने रावण बध कर, विजय लंक पर पाई थी।।
अधर्म हारता धर्म जीतता , देत दशहरा  ज्ञान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।3।।
घर आंगन की करें सफाई , कार्तिक मास दिवाली।
गणपति लक्ष्मी पूजा करते , कहीं पूजते मां काली।।
घर घर दीप जलाकर करते , मनमंदिर में उजियारा।
भ्रात दूज गोवर्धन पूजा, कान्हा जी का जयकारा।।
देव उठउनी एकादशी में,हरि का ध्यान लगाते हैं।
तुलसी मइया के विवाह को, हर्षोल्लास मनाते हैं।।
मार्गशीर्ष में देव दिवाली, पुण्य मास में दान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।4।।
पौष मास में मकर संक्रांति , का त्योहार मनाते हैं।
नदियों तीर्थों में लोग नहाकर, श्रद्धा भक्ति बढ़ाते हैं।।
माघ मास का मौनी अमावस,बसन्त पंचमी सतरंगी।
फागुन में होली संग जीवन, होता है रंग विरंगी।।
प्रतिदिन त्योहार अनेकों , मोहन सभी मनाते हैं।
मन में प्रभु का ध्यान लगाकर, करुणा दया लुटाते हैं।।
सभी सनातन संस्कारों को, कहते वेद पुरान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।5।।
पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
6.3.2023
महुदा, झीट पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़ 

"अष्टपदी""प्रभु सिय याद करें "(श्री राम स्तुति)

"अष्टपदी"
"प्रभु सिय याद करें "

रघुवर चुप नहि बोलत,बस रोअत हे।
सुधि करि करि हिय आप,  प्रभु सिय याद करें।।१।।
बइठे प्रभु निज कुटिया,बस सोचि रहे।
कहं सिय राम कहां,प्रभु सिय याद करें।।२।।
जब जब सिय पट देखत,अकुलावत हे।
जपन करत अविराम,प्रभु सिय याद करें।।३।।
तितर वितर घर देखत,सब वस्तु पड़े।
प्रभु सब रखत संवारि, प्रभु सिय याद करें।।४।।
जब जब दामिनि दमकत, हिय धड़कत हे।
घन बिच रूप निहार, प्रभु सिय याद करें।।५।।
खग मृग पशु सब ढूढ़त,जिमि पूछत हे।
कंह सीता मम मातु, प्रभु सिय याद करें।।६।।
प्रभु कर सब दुख देखत, अकुलाय रहे।
लछमन करत गलानि, प्रभु सिय याद करें।।७।।
विरह व्यथा अति घेरत,मन वेधत हे।
कहां न कहीं संताप,प्रभु सिय याद करें।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
०९.०१.२०२४, मंगलवार ,
खुश्बू विहार कालोनी, अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

अष्टपदी "श्रीराम स्तुति (वन सिय राम चले)

"वन सिय राम चले"
तजि घर पुर धन वैभव, पितु आज्ञा से।
संग लक्ष्मण लघु भ्रात, वन सिय राम चले।।१।।
दशरथ रहि रहि बिलखत, सिर पटकत हे।
करत प्रघोर विलाप, वन सिय राम चले।।२।।
त्याग दिए पट राजस, पट गेरुआ हे।
सीस नही है किरीट, वन सिय राम चले।।३।।
पुरवासी सब रोअत, दुख पावत हे।
अवध भरा संताप, वन सिय राम चले।।४।।
भीड़ बड़ी रघु द्वारे, सब बोल रहे।
मत जा वन हे राम, वन सिय राम चले।।५।।
सुबकत सब जन मइया, दृग पथराय रहे।
दृग जल अविरल बरसत,वन सिय राम चले।।६।।
खग मृग पशु नहि बोलहिं,तृण त्यागे हे।
नयनन ढरकत अश्रु, वन सिय राम चले।।७।।
विरह व्यथा अति भारी,हिय राम रहें।
दुख कवि नहि लिख पाय, वन सिय राम चले।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
०९.०१.२०२४, मंगलवार, प्रातः ४ बजकर ५० मिनट
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

अष्टापदी "श्री राम स्तुति(जय रघुवीर हरे)

"जय रघुवीर हरे"
झनन झनन पग नूपुर, तन धूसर हे।
ठुमुक ठुमुक प्रभु जात,जय रघुवीर हरे।।१।।

कटि करधन अति सोहत, मन मोहत हे।
चलत महल सब भ्रात , जय रघुवीर हरे।।२।।

चहल-पहल नित होवत , घर आंगन हे ।
दरशन हेतु कतार ,जय रघुवीर हरे।।३।।

मस्तक चन्दन धारत, दुख टारत हे।
भगतन कर जयकार,जय रघुवीर हरे।।४।।

सखियन मंगल गावत , इतरावत हे।
नगर डगर उजियार, जय रघुवीर हरे।।५।।

सुर नर तन धर आवत, सिर नावत हे।
अद्भुत रूप निहार, जय रघुवीर हरे।।६।।

कभि किलकत कभि हुलसत, हंसि रोअत हे।
जननी सब मुसुकाय, जय रघुवीर हरे।।७।।

सीस मुकुट अलि लटकत, जग निरखत हे।
शीतल बहत बयार, जय रघुवीर हरे।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
८.०१.२०२४ सोमवार खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 

छंद:- "बसन्त तिलका" सरस्वती वंदना (वागीश्वरी विनय मैं, करता तुम्हारी)

छंद:- बसन्त तिलका
लाला ललाल ललला, ललला ललाला 
वागीश्वरी विनय मैं, करता तुम्हारी।
बैठी मराल पर हो, जननी उदारी।।
हे ब्रह्मदेव गृहणी, गुण ज्ञान धारी।
विद्या तथा विनय दो,शुभ लाभ कारी।।१।।

है कंठ में स्फटिक की, शुचि दिव्य माला।।
हो श्वेत वस्त्र पहनी , मुख में उजाला।।
धारे किताब कर में , शुभ कर्ण बाला।
माथा किरीट मणि है, छवि है निराला।।२।।

लेके सितार कर में, विमला बजाती।
पाजेब साज पग में, करुणा लुटाती।।
भौंहें विशाल दृग के, जग को लुभाए।
दाती पुकार सुनके, झट दौड़ आए।।३।।

दो ज्ञान बुद्धि मुझको, विपदा निवारो।
मां लेखनी सफल हो, दुख क्लेश टारो।।
दाती दयालु रहके,भव से उबारो।
हे शांत चित्त मइया, सब पाप जारो।।४।।

है आश मातु तुमपे, बनना सहारा।
कोई नहीं जगत में, यह बेसहारा।।
जानूं न ध्यान करना, लिखना न आता।
ना ज्ञान राग सुर का, लय में न गाता।।५।।

देवी कृपालु रहना, यह है भिखारी।
दो भक्ति शक्ति अपनी, बनके अधारी।।
मैं गीत नित्य रचके, तुमको सुनाऊं।
मां भक्ति भाव हिय में, रख गीत गाऊं।।६।।
मोहन श्रीवास्तव
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
१७.०२.२०२४, शनिवार, १२.५० दोपहर
रचना क्रमांक १३९९




छंद:- बसन्त तिलका "आया बसंत धरती, मदमस्त भारी"

छंद:- "बसन्त तिलका"
लाला ललाल ललला, ललला ललाला 

आया बसंत धरती, मदमस्त भारी।
फैला सुगंध नभ में , बहती बयारी।।
पीले प्रफुल्ल सरसों , दृग मोद कारी।
गेहूं मिले मटर से, नर संग नारी।।१।।

फूले पलाश तरु के, मन को लुभाए।
धानी सजीव धरती , पर काम आए।।
छाये रसाल पर हैं, शुचि बौर प्यारे।
है सौम्य प्रेम टपके, रसयुक्त न्यारे।।२।।

जोड़े लगे चहकने, ऋतु राज आया।
सारे धरा गगन में, रतिकांत छाया।।
कालापिनी सुरभि के, नवगीत गाए।
बोली सुरम्य लगती, सब जीव भाए।।३।।

प्रेमी लगे संवरने, प्रिय को रिझाएं।
नैना तकें सजन को, जिस राह आए।।
तालाब ताल तरिया, अरु जीव सारे।
व्यापें मनोज सबमें, निज छाप डारे।।४।।

फूले प्रसून क्षिति में, महके कियारी।
चूसें पराग भंवरे, इतराय भारी।।
आमोद भूमि पसरा, मन मोर नाचे।
झूमें लता विटप हैं, कवि गीत बांचे।।५।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
दिनांक १७.०२.२०२४, समय सांयकाल ७ बजे

रचना क्रमांक १४००


अष्टपदी, श्री कृष्ण स्तुति,(हे नंदलाला, हे गोपाला)

हे नंदलाला हे गोपाला, विनती सुनो हमारी।
लीलाधारी हे सुखकारी, आए शरण तिहारी।।१।।

मुरली वाले ब्रज के ग्वाले, यशुदासुत बलिहारी।
हे जीवनधन दे दो दर्शन, हम हैं दीन भिखारी।।२।।

रूप कलेवर तन में जेवर, पट पीताम्बर धारी।
मोर मुकुट कर में मृदु बंशी मूरत है अति प्यारी।।३।।

कटि मणि करधन नूपुर झन झन , अद्भुत रूप बिहारी।
दिव्य वसन भूषण पहने प्रभु ,नन्दलला सुखकारी।।४।।

नाग नथैया धेनु चरैया, मोहन मदन मुरारी।
चंचल चितवन भगत मगन मन, हर्षित ग्वाल गुआरी।।५।।

रास रचइया निधिवन छइंया, राधा रमण बिहारी।
कुंचित लट लटकत घुंघराले, शोभा अनुपम न्यारी।।६।।

राधा प्यारे जगत दुलारे,सहज सरल अविकारी।
बंशी की धुन सुन के सब जन, दृग जल बरसत भारी।।७।।
सब कुछ हारे नाथ सहारे ,कर दो कृपा मुरारी।
शरण पड़ा प्रभु के यह मोहन, चाहे कृपा तुम्हारी।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
दिनांक :- ०५.०२.२०२४, सोमवार
खुश्बू विहार कालोनी अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
रचना क्रमांक १३९८

"अष्टपदी" श्री राम स्तुति (अवध बिहारी जग करतारी)

अष्टपदी"
"श्री राम स्तुति"

अवध बिहारी जग करतारी, रामलला शुभकारी।
दशरथ नंदन असुर निकंदन, कौशल्या महतारी।।१।।

नयन मनोहर चितवन सुन्दर, अद्भुत छबि बलिहारी।
जन मन अलिगन कीर्तन गुंजन, बालरूप अघहारी।।२।।

पग में पैंजन दृग में अंजन, कर कंगन खनकारी।
कटि में करधन बाजत झन झन, कर में शर धनु धारी।।३।।
नाम है पावन जन मन भावन , राम नाम शुचि कारी ।
राम नाम धुन जीव सकल सुन ,हिय में आनंद भारी ।।४।।

बाहु विशाला उर मणि माला , रत्न जड़ित मनहारी।
रघुकुल सूरज चाहूं पदरज, कोटि पाप सब जारी।।५।।

सरयू सरिता परम पुनीता, धोअत कलिमल सारी।
धवल हिलोरें दुहु कर जोरे, स्तुति कर अनुसारी।।६।।

ध्वजा पताका मंगल बाजा, बजे ढोल करतारी।
झांझ मृदंग उमंग भगत जन, जय सियराम उदारी।।७।।

लगी कतारें प्रभु के द्वारे, भीड़ जुटी बड़ भारी।
मोहन शरण पड़ा रघुवर के , करने भजन तुम्हारी।।८।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
गुलमोहर रिजेंसी, महावीर नगर, रायपुर छत्तीसगढ़
दिनांक ०३.०२.२०२४
प्रातः ४ बजे
रचना क्रमांक १३९७

Monday 19 February 2024

भजन श्री कृष्ण जी का (आवो नाचे झूमें गाएं)सुधारोपरांत

आवो नाचे झूमें गाएं,चलो खुशियां मनाएं,
कान्हा मेरे घर आये , ब्रजधाम से।
कर के सोलहों सिंगार, सज के बैठी हूं तैयार,
मैं तो श्याम सजन के, ही नाम से॥१।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

धेनु संग लिए आत, मुख मुरली बजात,
लोक तिनहुँ रिझात,ब्रज सांवरा।
तन पे पीत परिधान, कुण्डल रवि के समान,
वो तो बसें मेरे प्रान, मन बांवरा।।२।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

उनके सुंदर सुंदर गाल, घूंघर घूंघर काले बाल,
कंठ मणियों के माल, मन मोहते।
मेरे कबसे प्यासे नैन, करके दर्शन पाते चैन।
प्यारे प्यारे पग में छन छन, पैंजन सोहते।।३।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

केशर चन्दन तिलक भाल, नैन कमल विशाल,
संग लिए गोप ग्वाल , हरि आ गए।
भौहें जैसे हैं कमान, मारे अंखियों से बान 
मांगे प्रेम रस दान, मन भा गए।।४।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

जैसे जंगल में मोर,वैसे नाचे मन मोर , 
सखि देख चित चोर, झूम झूम के।
मेरे अलबेले श्याम, मुझे तुमसे ही काम ,
मैं तो करूं परनाम घूम घूम के।।५।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

बना शुभ संयोग, ऐसा कहते हैं लोग,
मैं बनाई छप्पन भोग, बड़े भाव से।
ऊंचे आसन बइठार, विनती कर बार बार,
मैं तो परसूंगी थार बड़े चाव से।।६।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

जब आएंगे वो पास, संग खेलूँगी मैं रास,
पूरी होगी सब आश, घनश्याम से।
मैं ना मांगू धन धान, मांगू भक्ती वरदान,
जोड़े रखना भगवान, निज धाम से।।७।।

आवो नाचे झूमें गाएं,चलो खुशियां मनाएं,
कान्हा मेरे घर आये , ब्रजधाम से।
कर के सोलहों सिंगार, सज के बैठी हूं तैयार,
मैं तो श्याम सजन के, ही नाम से॥१।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......


सुधार हो गया है दिनाँक १९.०२.२०२४

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,12.10pm,
chandrapur,maharashtra.

भोज पुरी (मत देखो तिरिछी नजरिया से)

मत देखो तिरिछी नजरिया से,नजरिया से..
हम मर-मर जाए, सुरतिया पे, सुरतिया पे....
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

कहां से आई गोरी,कहां पे जावोगी....२
हम पे सितम कब तक, तुम ढहावोगी.....२
जब से देखे हम, दिवाने हुए हैं....२
तुमको हम देख के, परवाने हुए हैं.....२
चमके...२ तूं जैसे बिजुरिया सी, बिजुरिया सी....२
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

पतली कमर, बलखा के चली है.....२
लगती बनारस की, संकरी गली है....२
कानों मे झुमका, बरेली का पहनें....२
सर से पावों तक, हीरे के गहने....२
रात...२ को दिखती अजोरिया सी,..अजोरिया सी
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२


कली कश्मीर की,फूल मे गुलाब हो...२
शीशे की बोतल मे, महंगी शराब हो....२
हम हैं शायर और, तुम तो गजल हो....२
समय की गिनती मे, तुम तो इक पल हो....२
मदिरा...२ छलकाती बदनियां से,बदनिया से
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२

मत देखो तिरिछी, नजरिया से,नजरिया से..
हम मर-मर जाए, सुरतिया पे, सुरतिया पे....
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,12.50pm,
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भ्रष्ट्राचार का बदबू फैला

भ्रष्ट्राचार का, बदबू फैला,
हर शहर व, हर बाजारों में ।
गांव भी अछुते, नही हैं इसमे,
दफ्तर या हो, सरकारों मे ॥

भ्रष्टाचार की, बगिया देखो,
कितनी तेजी से, बढ़ रहा है ।
नए-नए तरिके, ढूढ़-ढूढ़ कर,
सिढ़ी दर सिढ़ी, चढ़ रहा है ॥

अब बेटी की शादी, करने के पहले,
लड़के की पदवी, नही देखी जाती ।
अच्छा इनकम, करता हो बस,
उसकी तश्वीर, नही देखी जाती ॥

भ्रष्टाचार का अंकुर, पनपने लगा है,
अब स्कूलों व, कालेजों मे ।
जहां प्रवेश, कराने से पहले,
दी जाती है रिश्वत, डोनेशन मे ॥

सरकारी नौकरियों मे, बात ही क्या,
जहां लाखों मे, बातें होती हैं ।
पैसे वालों को, नौकरी मिल जाती,
पर निर्धनों की, आत्माएं रोती हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,4.40pm,
chandrapur,maharashtra.

भारत की आत्मा रोती है

भ्रष्टाचार की गर्त मे, डुबा भारत,
आज कितना, मजबुर हुआ है ।
दीमक जैसे, भ्रष्टा चारियों से,
आज कितना, कमजोर हुआ है ॥

राह-जनी तथा, लूट-पाट,
आदमी को, आदमी काट रहे ।
वोटों के लिये ये, राजनीतिक दल,
आपस मे, हमको बांट रहे ॥

विधान सभा से, संसद तक,
नित, हाथा-पाई होती है ।
सत्ता के दलालों को, देख-देख कर,
भारत की, आत्मा रोती है ॥

बे कसुरों को, सजाएं दी जाती,
अपराधी सरे आम, घुमते हैं ।
दिन-दहाड़े, बलात्कार कर के वो,
मस्ती के साथ, झुमते हैं ॥

मजहब के नाम, पर आपस मे,
इक-दूजे के, खून के प्यासे हैं ।
ईश्वर-अल्लाह से, बढ़ कर अपने को,
वे ईन्सानियत का, रहनुमा बताते हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,6.25pm,
chandrapur,maharashtra.

हाय यह कैसा जमाना आया है

हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥

पैसों की ताकत, के बल पर,
वे अपना कानून, चलाते हैं ।
शरीफों का नकाब, पहन कर के,
वे मजबुरों का, खून बहाते हैं ॥

लोगों के चेहरे, देख-देख कर,
ईनाम-पुरष्कार, दिए जाते ।
कभी औपचारिकता, बस ही,
महापुरुषों को याद, किए जाते ॥

अच्छी पढ़ाई, करने पर भी,
उन्हें नौकरी, नही मिलती ।
आरक्षण के जहर, के कारण,
उनकी तकदीर, नही खिलती ॥

महंगाई के, कफन के साए मे,
सब घुट-घुट, कर जीते रहते ।
लाचारी व गरीबी, से तंग आकर,
वे आसुवों के घूंट पिते रहते ॥

हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,7.25pm,
chandrapur,maharashtra.



हम वीर जवान हैं भारत के(राधेश्यामी)



हम भारत के हैं धीर वीर ,
पिछे मुड़ना नहीं आता है ।
मित्रता हमारा मूल मंत्र,
लड़ना भिड़ना नहीं भाता है ॥१।।

हम राम कृष्ण वंशज धनुधर,
हम चक्र सुदर्शन धारी हैं।।
हम एक अकेले रिपुओं के,
झुण्डों पर पड़ते भारी हैं।।२।।

यदि हमें चुनौती दे कोई,
हम उसको धूल चटाते हैं।
दुष्ट आचरण वालों का हम,
पल भर में मान घटाते हैं।।३।।

कोई यदि प्रेम से मांगे तो,
हम कर्ण सरीखे दानी हैं।
ललकारे यदि कोई बैरी,
तब हम उतारते पानी हैं।।४।।

प्यार से मांगे, जाने पर हम,
हर चीज निछावर कर देते ।
दान-वीर हम कर्ण के वंशज,
भिक्षुवों की झोली, भर देते ॥५।।

हम मानवता पोषक प्रहरी,
हम पाप कर्म से डरते हैं।
अपनी क्षमता से बढ़कर हम,
सत्कार अतिथि का करते हैं।।६।।

"सत्यमेव जयते" के पथ पर,
हम युग युग से चलते आए हैं ।
हम भौम सोम के तल पर भी,
भारत का ध्वज लहराए हैं।।७।।

सुधार दिनांक - २०.०२.२०२४

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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25-12-1999,saturday,10:10am,
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बीते इतिहास से तो कुछ सीखो(छंद राधेश्यामी)

छ्न्द:- राधेश्यामी

बीते इतिहास से कुछ सिखो,
आपस मे लड़ना बन्द करो ।
सब भूलो सारे बैर भाव,
मिलजुल कर सब आनन्द करो॥१।।

जब-जब आपस मे सभी लड़े,
तब-तब अरि ने हमला बोला ।
अतिथि रुप में आकर के वे,
हम सब में ढेरों बिष घोला ॥२।।

परिणाम भयंकर था इतना,
मुगलों ने अत्याचार किया।
तलवार दिखा हम हिंदू को,
मुस्लिम बनने लाचार किया।।३।।

हिन्दू बहनों का बलात्कार,
और उनके बाजार लगाते थे।
जो उनकी बात नहीं मानें,
उनपे तो कहर बरपाते थे।।४।।

अंग्रेज दुष्ट सब आकर फिर,
हम सबको खूब लड़ाये थे।
ऊंच नीच और जातीयता,
से हम सब में भेद कराये थे।।५।।

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सभी,
तन मन धन प्राण लगाए थे।
लाखों बलिदानी ने अपने,
भारत पर प्राण लुटाए थे।।६।।

कितने सुहाग बहनों के मिटे,
कितने फांसी पर झूल गए।
कितनी मांओं के लाल छिने,
जो देश हेतु सब भूल गए।।७।।

कितनी बहनें बलिदान हुईं,
जो स्वतंत्रता के लिए लड़ीं।
क्रांतिकारियों के संग संग,
बहनें बेटी थीं सदा खड़ीं।।८।।

बड़े संघर्षों के बाद हमें,
यह हमें मिली है आजादी।
अब हमें सभाले रखना है,
ना होवे फिर से बर्बादी।।९।।

अब जाति पाति को भूलभाल,
हमें देश को आज बचाना है।
हो भारत विश्वगुरू अपना,
जग में भगवा लहराना है।।१०।।

सुधार दिनांक २२.०२.२०२४, गुरुवार 

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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25-12-1999,4:40pm,saturday,
chandrapur,maharashtra. 

आया मौसम प्यार का

आया मौसम, प्यार का,
मै पल-पल तुमको, निहारता,
सुरज छिपता व, निकले चाँद
झिल-मिल करता, नीला आकाश
मिलन हुआ देखो, मेरा तुम्हारा
तुम बढ़कर, मेरी जान से
आया मौसम .........२

आओ मिल कर, प्यार करें,
दिल से दिल की, बात करें 
फूलों मे तुम तो, गुलाब हो
पीने मे तुम तो, शराब हो
रस हो तुम, अंगूर का
कजरारी, आखें जाम से
आया मौसम......२

चलो दूर जहां, कोई न हो
तुम तो मेरी, परी सी हो
माथे पे तेरे, लट बिखरे
नटखटी अदा सी, तेरे नखरे
क्या मैं कह के, तुम्हे बुलाऊं
प्यारी अपनी, जबान से
आया मौसम........२

आग लगी है, तन मे मेरे
प्यास लगी है, मन मे मेरे
बर्फीले बदन से, आग बुझाओ
प्यास मिटाने, तुम आओ
इस चका चौंध मे, मस्त हुए हम
आवो खुशियां, मनाये  नाच के

आया मौसम, प्यार का,
मै पल-पल, तुमको निहारता,
सुरज छिपता व, निकले चाँद
झिल-मिल करता, नीला आकाश
मिलन हुआ देखो, मेरा तुम्हारा
तुम बढ़कर, मेरी जान से
आया मौसम .........२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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26-12-1999,1:45pm,sunday,
chandrapur,maharashtra.

अपनी संस्कृति को, भुला कर के

नये जमाने के, फैशन मे,
हम आज तेजी से, बढ़ रहे हैं ।
अपनी संस्कृति को, भुला कर के,
हम अंग्रेजों का, नकल कर रहे हैं ॥

अम्मा-बाबू जी, भूल-भाल कर,
हम उन्हें, डैडी-मम्मी कहते ।
भजन संगीत से, मुंह को फेर कर,
हम अब डिस्को-पाप, हैं सुनते ॥

दाढ़ी-मूंछें, साफ करा-कर,
हम अपनी सुन्दरता का, नजारा करते हैं ।
बेढंगे कपड़े, पहन-पहन कर,
हाय-बाय से, ईशारा करते हैं ॥

सर पे दुपट्टा, तन पे साड़ी का,
अब जाता, रहा जमाना ।
अंग प्रदर्शन वाले, कपड़े पहनतीं
और बाल कटाती मर्दाना ॥

टी.वी चैनलों की, अश्लीलता देख-देख कर,
बेहयायी, दिन-दिन बढ़ रहा है ।
गंदे चल-चित्रों के, प्रभाव से,
बच्चों का मन भी, सड़ रहा है ॥

यदि इसी राह पे, चलते रहे तो,
हम अपनी पहचान, भुला देंगे ॥
भारतीय संस्कृति पर, हम अपने से,
विदेशी फैशन का, झण्डा फहरा देंगे ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
29-12-1999,11:50am,wednsday,
chandrapur,maharashtra.

आवो प्यार से नव वर्ष मनायें

नये साल की, अनुपम बेला पर,
आवो हम सब, खुशियां मनायें ।
नफरत को जड़ से, मिटा कर के,
हम उन्हें प्यार से, गले लगायें ॥

इक्कीसवीं सदी के, जमाने मे,
व नये साल के, छावों मे ।
प्यार से खुशियां, मनाये हम,
शहर हो या हो, गावों मे ॥

इस नये साल की, प्रिय बेला मे,
दिल से शपथ, यही हम लें ।
बुरे काम को, त्याग के हम सब,
सन्मार्ग के राह, मे सदा चलें ॥

अभिमान को दिल, से मिटा कर के,
आवो खुशियों के, दीप जलायें ।
हिल-मिल कर सब, खुशियां बांटे,
और प्यार से, नव वर्ष मनायें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
29-12-1999,5:20pm,wednsday,
chandrapur,maharashtra.

देवी स्तुति (कभी हमपे भी कृपा तो करेगी)

देवी गीत (चलो मइया के दरबार, प्यारे भक्तों)

सारे जहां मे धूम मचा है,माँ के नाम का देखो ।
जय कारों से गूंज उठा है,हर एक दिशाएं देखो ॥

चलो मइया के दरबार, प्यारे भक्तों.....२

ऊंचे पहाड़ा वाली मां के, लाल ध्वजा फहराये....२
कनक-कंगूरे मां के देखो,जो अपनी छ्टा चमकाये....२
मनोकामना पुरी होती...२,जो माता के द्वारे आये...२
चलो मइया के.......२

ऊंचे-निचे,चौड़े-संकरे,मन्दिर के, रस्ते देखो....२
दूर-दूर से आते सब जन,भक्तों की भीड़ जो देखो....२
श्रद्धा और विश्वाश है जिनको....२, वे ही माता के दरश हैं पाये.....२
चलो मइया के......२

लाल चुंदरी मे माता,हंसती से नजर है आये.....२
चरणों मे उनके शीश नवाकर, वे बिन मांगे सब हैं पाये......२
हम भी दिल से मांगे तो....२, मइया झोली अपनी भर देगी....
चलो मइया के..........२

माता के द्वारे दीप जलाकर,अपने घर मे रोशनी ले लो.....२
कर्पूर आरती माँ का कर के,अपने आंगन को खुशियों से भर लो...२
प्यार से मां को भोग लगाकर..२,अपने घर मे खजाने भर लो....२

चलो मइया के दरबार प्यारे भक्तों.....२

ऊंचे पहाड़ा वाली मां के, लाल ध्वजा फहराये....२
कनक-कंगूरे मां के देखो,जो अपनी छ्टा चमकाये....२
मनोकामना पुरी होती...२,जो माता के द्वारे आये...२
चलो मइया के.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-01-2000,sunday,12:45pm,
chandrapur,maharashtra.

गजल (चेहरा तुम्हारा ऐसा)

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरा गुलाब का या तो, पूनम का चाँद है ।
किसी शायर की है गजल, या तो प्यारा सा जाम है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरे को जो भी देखे, वो देखता रहे ।
अच्छी किताब की जैसे, तुम्हे पढ़ता ही रहे ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

हिरनी सी आखें हैं और, पलकें हैं रात-दिन ।
भौहें जो तुम्हारी, दुइज की चाँद है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

फूलों सा खिलना जैसे, मुस्कान है तुम्हारा ।
गालों का रंग ऐसे जैसे, सुरज का निकलना हो ॥

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-01-2000,sunday,7:45pm,
chandrapur,maharashtra.


आवो हम हर दिन ईद मनायें

आज खुशियों का दिन, ईद का है,
सब के दिल, हो रहे मगन हैं ।
बच्चे भी फूलों से, खिल रहे हैं,
खुश हो रहा देख के, आज गगन है ॥

दुश्मनी को दिल, से भुलाकर,
गले मिलने से पहले, दिल मिलावो ।
ना अंधेरा हो, कोई घर में,
प्यार की ज्योति, सब मे लजावो ॥

जींदगी के सुहाने, सफर मे,
नफरत को आज, जड़ से मिटा दो ।
इस हरे-भरे, गुलशन को,
अपने खुशबू से, महका दो ॥

अब शिकवा-शिकायत, भुलाकर के,
सब को खुश होके, गले लगावो ।
अमन-शंति से, सब रहे सदा,
आवो हम हर दिन, ईद मनायें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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07-01-2000,friday,11:10am,
chandrapur,maharashtra.

मै नशे मे हो गई

बिस्तर पे लेटी थी, अकेली मै,
मेरे वो चुपके से, कब  आ गए...
अरे मुझको तो कस के, उसने पकड़ा..
मै नशे मे हो गई.........२

उसने तो हमपे, कैसा जादू किया...
मेरा चुराया, उसने जिया...
पांव नही, पड़ते हैं मेरे...
मै तो पागल सी, कैसी हो गई....
अरे मुझको, तो कस के.......२

बाहों का हार, पहनाये हमे.....
गालों को मेरे, होठों से चुमें....
उंगली से तन को, बजाये मेरे....
मै तो रंगीन सपनों, मे खो गई...
अरे मुझको, तो कस के......२

अमावश की रात, लगती थी पूर्णिमा....
तारे लगते थे, जलती शमा...
वो तो बने थे, बादल और....
मै तो बिजली सी, उन पर छा गई....
अरे मुझको, तो कस के......२

तन से पसीना, बहने लगा..
मन तो फूलों सा, खिलने लगा...
रात भर मै तो, सिसकती रही....
भोर होते ही मै, तो शरमा गई.....

बिस्तर पे लेटी थी, अकेली मै,
मेरे वो चुपके से, कब  आ गए...
अरे मुझको तो कस के, उसने पकड़ा..
मै नशे मे हो गई.........२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
10-01-2000,monday,6:30pm,
chandrapur,maharashtra.





घायल हो जाता मन

जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥

मुखड़ा तो चाँद सा है,
जुल्फें हैं काली घटा ।
कुदरत से लिया होगा,
मनमोहक रूप छटा ॥

मुस्कान सुबह से तो,
कोयल से लिया बोली ।
परिधान लिया होगा,
ये हरी-भरी धरती ॥

फूलों से लिया होगा,
खुशबू और गहनें।
सीना तो लिया होगा,
सागर की लहरें ॥

मदमस्त चाल देखो,
बलखाती नदियों से ।
पावों के पायल तो,
इतराते झरनों से ॥

आखें मृगनयनी से,
अलसाना लतावों से ।
घायल हो जाता मन,
गोरी की अदावों से ॥

जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-07-2013,monday,3 am,
pune,maharashtra.


माँ

आराधना तुम हो, तुम हो ही मेरी पूजा,
भक्ति के साथ तुम्हें, अपने दिल मे बसाया है ।
शान्त-चित्त तुम हो, मुखड़े की निराली शोभा,
कितने जन्मों के बाद, हमने तुमको पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

इस जहां से न्यारी हो, तु हम सब की दुलारी हो,
ध्यान तो मैने अपना, तेरे चरणों मे लगाया है ।
तुम करुणा की सागर, हमे देती तुम आदर,
जो पा न सका कोई, वो हमने तुमसे पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

कितना भी दुःख आये, पर तुम सब सह लेती,
दुःख मे रह कर तुम तो, सुख हमे दिलाया है ।
रोना होता है तुम्हें, तो तुम दिल मे रो लेती,
रोती रही पर तुम हमको, हंसना तो सिखाया है ॥
आराधना तुम हो.......

कितने भी बुरे हों हम, पर हमे अपना तो बना लेती,
अच्छाई का सदा तुमने, हमे पाठ पढ़ाया है ।
हम सब के लिये तुम तो, श्रृंगार न कर पाती,
दिल के सपने तुमने, हम पर तो लुटाया है ॥
आराधना तुम हो.......

आकाश से ऊंची तुम, सागर सी गहराई,
तेरा भेद तो कोई अब तक, जान न पाया है ।
हर नाम से तुम उपर, हर रिश्ते से ऊंची,
इसलिये दुनिया ने तुम्हें, माँ कह के बुलाया है ॥

आराधना तुम हो, तुम हो ही मेरी पूजा,
भक्ति के साथ तुम्हें, अपने दिल मे बसाया है ।
शान्त-चित्त तुम हो, मुखड़े की निराली शोभा,
कितने जन्मों के बाद, हमने तुमको पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
17-07-2013,wednesday, 4 pm,
pune,maharashtra.

भगवान ने दुनिया को

भगवान ने दुनिया को, कैसा बनाया है ।
हर चीज जरुरत की, यहां पर तो बसाया ॥

रहने के लिये ये जमीन,खाने के लिये भोजन ।
पीने के लिये पानी, हर चीज बनाया है ॥

हर तरह के लोग यहां, अनगिनत जीव जो हैं ।
ये रंग-बिरंगा जीवन, पर दिल एक बनाया है ॥

सागर,नदियां,पर्वत, ये बहते हुए झरनें ।
ये हरे-भरे जंगल, जो मन को लुभाया है ॥

दिन-रात,सुबह और शाम, दुःख-सुख,रोना-हंसना ।
फूल और काटों में, हमे जीना सिखाया है ॥

दिल भरता नही किसी का, हर कोई चाह लिये ।
ये जन्म-मृत्यु के चक्कर मे, सबको उलझाया है ॥

भगवान ने दुनिया को, कैसा बनाया है ।
हर चीज जरुरत की, यहां पर तो बसाया ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
17-07-2013,wednesday,1:30pm,
pune,maharashtra.

भजन हे नाथ दया के हो सागर (प्रभु हमपे कृपा तो करो इतना) सुधार हो गया है

हे नाथ दया के हो सागर,
हम सब अति दीन भिखारी हैं ।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।

प्रभु पीताम्बर धारी तुम हो,
मस्तक चन्दन शोभा देता।
पहने शुभ माल गले में हो,
तव दृग सारा दुख हर लेता॥
प्रभु के मुख मंडल में फैली,
बिजुरी जैसी उजियारी है।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।१।।

प्रभु रूप मनोहर छवि न्यारा,
मुस्कान तुम्हारी निराली है।
कोमल कपोल हैं अति सुन्दर,
अधरन पे चमके लाली है।।
लट मुखड़े पे उलझे लटके,
जिनको लखि जग बलिहारी है।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।२।।

सब आश भरोस हैं छोड़ चुके,
दिखता नहीं नाथ सहारा है।
बस आश हमारे नटवर पर,
प्रभु हमनें तुम्हें पुकारा है।।
अब लाज बचा लो मनमोहन,
हम आए शरण तिहारी हैं।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।३।।


हे नाथ दया के हो सागर,
हम सब अति दीन भिखारी हैं ।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-01-2000,saturday,6.50am,
chandrapur,maharashtra.
सुधार दिनांक ०१.०३.२०२४


प्रभु हमपे कृपा करना इतना,
मेरा जीवन, सफल तो हो जाए ।



मै तो हो गई बीमार


चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२

बदरा बरसा बड़ा जोर,पानी बहे चारों ओर,
दादुर अपनी, आवाज लगाए ।
हुआ धरा-गगन का मिलन,सबके दिल देखो मगन,
मुझे कुछ भी, पिया बिन न भाए ॥
चले पूर्वा.........२

थर-थर कांपे बदन,तन मे सुलगे अगन,
मुझे चैन से, रहा नही जाए ।
कर साज श्रृंगार, मै तो हो गई तैयार,
पर मोर पिया तो, अभी नही आए ॥
चले पूर्वा..........२

मै तो हो गई बीमार,सारी दवा हुई बेकार,
कई बैद भी, शहर से तो आए ।
वे कई बूटी पिलाए, बहुत नुस्खा बताए,
पर वे ईलाज मेरा, नही कर पाए ॥

चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-01-2000,saturday,7.30pm,
chandrapur,maharashtra.

बुझदिल न बनो हिंदुस्तानी

बुझदिल न बनो, हिंदुस्तानी,
दुश्मन कब से हमे, ललकार रहा ।
आतंक वादियों के, वेष मे घुम-घुम कर,
वह हमे मौत की, घाट उतार रहा है ॥

वह हम पे जहर, उगल रहा है,
और हम शान्ती की, बातें करते हैं ।
वह मासूमों की, जींदगी से खेल रहा,
और हम क्रान्ती, की बातें करते हैं ॥

अब बहुत सो, लिये हैं हम सब,
हमें नींद से, जागना जरुरी है ।
दुश्मन को, उसी की भाषा मे,
सबक सिखाना, जरुरी है ॥

गिदड़ नही हम, शेरे दिल हैं,
अपने देश के लिये, शीश कटा देंगे ।
बुरी नजर कोई, डाले हम पर,
हम उनकी आखें, निकाल लेते ॥

बीर शिवा जी,आजाद, भगत सिंह जैसे,
वीरों की हम सब, सन्तानें हैं ।
रानी लक्ष्मी बाई, जैसी माताएं हैं,
और हम वतन के, दीवाने हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-01-2000,tueesday,6.10am,
chandrapur,maharashtra.

अपराधों को बढ़ावा देकर हम

क्या हो गया है, आज हम लोगों को,
जो अपराधियों से, इतना डरते हैं ।
इन्हें जेलों से, छुड़ाने के लिये,
हम सब हड़तालें, करते हैं ॥

इस तरह से उन, अपराधियों का,
दिमाग औ,र चढ़ जाता है ।
वे फिर से, गुनाहें हैं करते,
और उनका हौसला, बढ़ जाता है ॥

इस तरह से उनके, छोड़े जाने पर,
पुलिस का मनोबल, गिर जाता है ।
फिर से अपराधियों, को पकड़ने मे,
उनका मन बहुत, घबराता है ॥

आज वे हम पर, अत्याचार किये तो,
कल तुम पर भी, जुल्म ढहायेंगे ।
अपने निजी, स्वार्थों के लिये,
तुम्हारा भी, खुन बहायेंगे ॥

अपराधों को बढ़ावा, दे कर हम,
फिर सरकार पर, दोष लगाते हैं ।
अपने आप गलतियां, हम करते,
फिर खून के, आंसू बहाते हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-01-2000,wednseday,4:10pm,
chandrapur,maharashtra.

चंद्रपुर का शैर

आओ बच्चों, शैर करायें,
हम तुम्हें चांदा, नगरी का ।
जहां घूम-घूम कर, दिल भरता ही नही,
जैसे नदी मे, मुंह बंद गगरी का ॥

बाबूपेठ मे, महाकाली का मंदिर,
और तुकुम का, मनोरम गुरुद्वारा ।
देखो गंज वार्ड का, प्यारा मस्जिद,
तो बल्लाशाह का, चर्च है प्यारा ॥

चांदा के ये, ऐतिहासिक दरवाजे,
और सोमनाथ तो, अनुपम है ।
भद्रावती मे महावीर, पार्श्व नाथ का  मंदिर,
जहां मिलती है, शान्ति हमे मन मे है ॥

वरोरा मे बाबा आम्टे, का आनंद वन,
जहां कुष्ठ रोगियों, की सेवाएं की जाती ।
राष्ट्रीय अभयारण्य, ताडोबा का,
जहां जानवरों की, रक्षा की जाती ॥

मनोरम रामाला उद्यान,
जिसे देख आजाद पार्क, भी शरमा जाता ।
इरई बांध का भव्य, जलाशय देखो,
और एम.इ.एल मे, इस्पात बनाया जाता ॥

एशिया प्रसिद्ध, पावर हाउस,
जो दुर्गापुर मे, आता है ।
यहां कई छोटे-बड़े, कोयला खदान,
जो जंगल मे, मंगल लाता है ॥

समय है कम,और काम है जादा,
अगली छुट्टियों मे, हम और घुमेंगे ।
चन्द्रपुर के औ,र स्थलों को,
हम देख-देख, कर झुमेंगे ॥

आओ बच्चों, शैर करायें,
हम तुम्हें चांदा, नगरी का ।
जहां घूम-घूम कर, दिल भरता ही नही,
जैसे नदी मे, मुंह बंद गगरी का ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
20-01-2000,3am,thursday,
chandrapur,maharashtra.

देवी गीत (माँ मेरी माँ)

मां मेरी मां, तू छुपी हो कहां.....२
हम कब से तुम्हें, तो बुलाते हैं ।
नयना मेरे कब, से ढूढ़ें तुझे,
हम तेरे दरश, नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां......

भक्तों की भीड़, है तेरे द्वारे |
भोली-भाली मइया, तु आ जा रे ||
रस्ता निहारे कब, से हैं तेरे |
करुणा मई अब, आ जा रे ||
हम दिल से, तुझे बुलाते हैं ....२
मां मेरी मां ........

अष्ट्भुजा धारी, मेरी माता ।
सिंह पे सवार हो, के तू आजा ॥
लाल चोला वाली, मेरी माता ।
भक्तों की खाली, झोली भरने आजा ॥
कष्ट निवारिणी, आ जा रे...
हम तेरे बिन, रह नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां.....

शरण मे आये हैं, तेरे माता ।
लाज बचा लो, मेरी माता ॥
जाये तो जाये, कहां हम माता ।
बस तेरा ही, आश हमे माता ॥
विपदा मिटाने, तू आ जा...
हम तुझे कब, से मनाते हैं .....
मां मेरी मां.....

लक्ष्मी,दुर्गा तु ही काली।
कण-कण मे समाई, हो शेरा वाली ॥
अब तो ना देर, लगावो मइया ।
आके भवंर से, बचा लो नइया ॥
आरती उतारें, सब जन तेरे...
सब जन तेरा, ध्यान लगाते हैं.....

मां मेरी मां, तू छुपी हो कहां.....२
हम कब से तुम्हें, तो बुलाते हैं ।
नयना मेरे, कब से ढूढ़ें तुझे,
हम तेरे दरश, नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
21-01-2000,friday,2.05pm,
chandrapur,maharashtra.

गणतंत्र दिवस की, अनुपम बेला मे

गणतंत्र दिवस की, अनुपम बेला मे’
आवो हम याद, करें उन सब को ।
अपने प्राणों की, आहुति देकर,
जिन्होने आजादी, दिलायी थी हमको ॥

अनगिनत बीर थे, भारत माता के,
जो आजादी के, समर मे कूदे थे ।
अंग्रेजों के छ्क्के, छुड़ा दिए,
और मरते दम तक, उनसे जूझे थे ॥

वीर शिवा जी, आजाद भगत सिंह,
नेहरु,शास्त्री,गांधी ।
झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई,
और सुभाष बोस, की क्रान्ति ॥

टीपू सुल्तान व, तात्या टोपे,
जो दुश्मनों के, खुन बहाये थे ।
फांसी के फंदे पर, झुले थे कई वीर,
और जो आजादी के, गीतों को गाये थे ॥

अश्रु पुर्ण श्रद्धांजलि, देकर हम,
उनके सपनों को, साकार करें ।
प्यारा तिरंगा, लहरा कर,
आओ हम उनका, सम्मान करें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-01-2000,monday,11:15am,
chandrapur,maharashtra.

चन्दा की चांदनी कहूं तुम्हे

चंदा की चाँदनी, कहूं तुम्हें,
या वीणा की, रागिनी तुम्हे कहूं ।
दीपक की ज्योति, कहूं तुमको,
या मणियों की, रोशनी तुम्हे कहूं ॥

सरिता की निर्मल, धारा हो या,
फूलों की खुशबू, तुम्हे कहूं ।
कश्मिर की, सुन्दरता हो या,
चन्दन की खुशबू, तुम्हे कहूं ॥

ऋतुओं मे बसन्त, कहूं तुमको,
या गर्मी मे, ठंडी तुम्हे कहूं ।
बरसात मे रिमझिम, बारिस हो या,
रात मे तारों की, चमक तुम्हे कहूं ॥

मुस्कुराहट का, खजाना तुम्हे कहूं,
दिल को समुन्दर की, गहराई तुम्हे कहूं ।
हंसना है तो, फूलों सा हंसना,
या आमों की, अमराई तुम्हें कहूं ॥

पूनम की चाँद, जैसी हो तुम,
और वाद्यों में, शहनाई तुम्हे कहूं ।
नील गगन की, परी हो या,
हमसे शर्माई, तुम्हे कहूं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-01-2000,monday,12.10pm
chandrapur,maharashtra.

भजन (प्रभु चरणों की धुलि लगा ले)

प्रभु चरणों की, धुलि लगा ले,
तेरा जनम सफल, हो जायेगा ।
श्री चरणों मे, शीश झुका लो,
तेरा किस्मत, संवर तो जायेगा ॥
प्रभु चरणों की.........

तू तो माया के, बाजार मे आके,
सारी ऊमर बिताय, दिया खेल के ।
तु तो चमक-धमक, मे खो गया,
और भुख मिटा के, बस सो गया ॥
तूने महला-दुमहला बनाये ।
पर काम नही, तेरे आये ॥
प्रभु नाम से, सज और संवर ले....
तेरा बिगड़ा हुआ, बन जायेगा....२
प्रभु चरणो की......

सारी आशा को, छोड़ के प्यारे,
प्रभु चरणों मे, आश लगा ले ।
क्युं दर-दर, भटके प्राणी ।
तु तो चंद दिनों, का खिलाड़ी ॥
क्युं अभिमान, करे मेरे भाई ।
तेरी मौत के, साथ है सगाई ॥
वो जब भी आयेगी, चला जायेगा ।
तू चाह के भी, न रह पायेगा ॥
प्रभु चरणों की........

कुछ दिन-कुछ पल, है तेरे लिये,
अब प्यारे प्रभु मे, ध्यान लगा ले ।
कर ले जग मे, काम तु भलाई के,
जिससे सुन्दर, सुयश तू पा ले ॥
कर के तन-मन, धन सब अर्पण।
प्रभु ध्यान मे, रह तू हर क्षण ॥
जब दिल से, पुकारोगे उसको...
तेरे पास वो, दौड़ा चला आयेगा....२

प्रभु चरणों की, धुलि लगा ले,
तेरा जनम सफल, हो जायेगा ।
श्री चरणों मे, शीश झुका लो,
तेरा किस्मत, संवर तो जायेगा ॥
प्रभु चरणों की.........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-01-2000,friday,5pm,
chandrapur,maharashtra.


देवी गीत (अब तो शेरा वाली मइया का सहारा हमको)

अब तो शेरा वाली, मइया का सहारा हमको ।
अब तो जोता वाली, मइया का सहारा हमको ॥

सारी दुनिया घुम-घुम के, थक गये,पांव हमारे....२
लाख जतन करके भी, हम हैं  सभी जगह से हारे.....२
कोई अपना, नजर न आया...सारे जहां मे हमको.....
अब तो शेरा वाली.......

बीच धार मे नाव है मेरी, दे दो इसे किनारा....२
संकट से हम आज घिरे हैं, केवल आश तुम्हारा....२
दुःख निवारिणी, मइया मेरी... हम कब से पुकारें तुझको..
अब तो शेरा वाली...............

लाज जा रही है मेरी मइया, आके लाज बचा लो....२
तकदीर मेरी है रुठी मइया, मेरी तकदीर बना दो....२
पाप नाशिनी, कल्याणी मां.....दया करो मां हमपे.....
अब तो शेरा वाली.......२

दुर्गा ,दुर्गति नाशिनी, मइया, कहां छुपी हो आओ.....२
राह नही सुझे कोई, मइया, आके राह बताओ.....२
सिंह वाहिनी,त्रिशूल धारिणी माँ....आन बचा लो अपना....
अब तो शेरा वाली.......२

हम मूरख और अग्यानी हैं, तेरी महिमा समझ न पाये....२
ठोकर लगा जब हमको मइया, तब तेरी शरण मे आये....२
क्षमा करो अपराध, मेरी मां.....बस तेरा हम आश लगाये...
अब तो शेरा वाली.....२

अब तो शेरा वाली, मइया का सहारा हमको ।
अब तो जोता वाली, मइया का सहारा हमको ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-01-2000,friday,7.20pm,
chandrapur,maharashtra.


मरने पर भी आत्मा रोता है

आज-कल के जमाने को, देख-देख कर,
दर्द दिलों मे, होता है ।
पत्थर दिल भी, कलेजा कांप उठता,
मरने पर भी, आत्मा रोता है ॥

दुर्घटनावों मे, किसी की मौत हुई तो,
दलाल लाशों का, सौदा करते हैं ।
पोस्टमार्टम के लिये, कई डाक्टर,
पैसों की, बातें करते हैं ॥

थानें मे रपट, लिखानी हो तो,
पहले उनकी, जेबें गरम करो ।
मन्दिर मे, दर्शन पाना है तो,
पुजारियों को, दक्षिणा पहले दो ॥

सरकारी दफ्तरों, मे काम कराना है तो,
वहां पे पैसे, पहले दो ।
कोई टेंडर पास, कराना है तो,
पहले साहब की, जेबें गरम करो ॥

कोई गाड़ी पासिंग, कराना है तो,
अधिकारी को, रिश्वत पहले दो ।
ट्रेनों मे आरक्षण, कराना है तो,
पहले टी.टी.ई की, जेबें गरम करो ॥

कोर्ट-कचहरी का, हाल मत पूछो,
लड़ते-लड़ते मुकदमा, थक जावोगे ।
शुरू मे थे यदि, करोण पति,
आखिर मे, कंगाल पति बन जावोगे ॥

यह चंद तश्वीर, है रिश्वतों की,
जो कुछ लोग, लिया करते ।
पैसों से भुख, मिटा कर के अपना,
और सब  को, बदनाम किया करते ॥

आज-कल के जमाने, को देख-देख कर,
दर्द दिलों, मे होता है ।
पत्थर दिल भी कलेजा, कांप उठता,
मरने पर भी, आत्मा रोता है ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-01-2000,friday,9pm,
chandrapur,maharashtra.

हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नहीं

हम वीर जवान हैं, भारत के,
हमे पिछे मुड़ना, नही आता है ।
दुश्मनों के लिए, हम खुंख्वार शेर,
उन्हें कदमों मे, झुकाना आता है ॥

मातृभूमि की, रक्षा मे,
हम अपने प्राण, निछावर कर देते ।
जो हमको, आंख दिखाता है तो,
उन्हें हम अपने, कदमों तले मशल देते ॥

अलग-अलग, मजहब के हैं हम,
और बोली भाषा, अनेक है ।
पर देश पे कोई, खतरा आए तो,
उसके लिये हम, सब एक हैं ॥

प्यार से कोई, देखे हमको,
उनके लिये तो, फूल हैं हम ।
पर नफरत से, जो कोई देखेगा हमें,
उनकी आखों मे, धूल हैं हम ॥

दादागिरी करे, कोई हम पर,
यह हमको, बर्दास्त नही ॥
हम गुरू सदा से, रहते आए हैं,
हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नही है ॥
हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नही है.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
09-02-2000,wednesday,5.35pm,
chandrapur,maharashtra.

अंधेरा सदा कायम रहे

इस अन्तहीन अधिकार में,
कहीं भी प्रकाश की किरण,
नजर नही आती, 
कहीं दूर कोई किरण दिखती,
मगर वो भी,
इस अन्तहीन तिमिर में,
सहमी सी समा जाती,
इस तम कुण्ड में,
चारों तरफ भयानक चीत्कार है,
लाचारों का करुण क्रन्दन,
अन्तर्मन मे उठता,
दुर्बलों की पुकार है,
इस गहन अन्धकार मे,
भुखे भेड़ियों के झुण्ड,
बैठे हैं घात लगाये,
उन कमजोरों का,
खुन पिने के लिये,
जिनके तन मे खुन की जगह,
सिर्फ पानी है,
पर ये भुखे भेड़िये,
उन पर टूट पड़ते,
उनके अस्थि पंजरों को,
अपने दानवी दातों से,
चबा जाते,
और बोल उठते वह,
अपने आप से कि,
अंधेरा सदा कायम रहे .........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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10-02-2000,thursday,9.25am,
chandrapur,maharashtra.

गजल (शक)

दर्द होता है मे,रे दिल मे तब,
जब कोई शक की, नजर से देखे हमें ।
अपनी नाकामियों, के डर से कोई,
गिरती नजरों कोई से देखे हमें ॥
दर्द होता है.....

हम तो उनके लिये जमाने से,
हर तरफ से तो दुश्मनी ली थी ।
इसके बदले मिला अंधेरा मुझे,
जिनकी राहों मे रोशनी की थी ॥
दर्द होता है.....

मैने दी थी गुलाब की खुशबू,
वो तो कांटे बिछाये राहों में ।
हमको देते रहे वो अंगारे,
हम तो उनको सुलाए छावों मे ॥
दर्द होता है.....

मैने उनसे तो दोस्ती की थी,
वो तो दुश्मन हमे समझते रहे ।
हम बहाये थे खुन उनके लिये,
वो तो घावों को और देते रहे ॥
दर्द होता है.....

ये तो तकदीर का करिश्मा है,
जो कि अपने पराए हो जाते ।
हम तो चाहेंगे सलामती उनकी,
वो तो हंसते रहें हम मुस्काएं ॥

दर्द होता है मे,रे दिल मे तब,
जब कोई शक की, नजर से देखे हमें ।
अपनी नाकामियों, के डर से कोई,
गिरती नजरों कोई से देखे हमें ॥
दर्द होता है.....

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11-02-2000,friday,5:30pm,
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नसीब का खेल

ये तो दुनिया की, रीति है ऐसी,
कोई रोता है, कोई हसता है ।
कोई उड़ते हुए, बिमानों मे,
कोई पैदल जमीन, पे चलता है ॥
ये तो दुनिया......

कोई डोली मे, बन के दुल्हन तो,
कोई अपनी, चिता सजाती है ।
कोई जलती रहे, बिरह मे तो,
कोई पिया संग मे, रास रचाती है ॥
ये तो दुनिया.........

कोई रहते हैं, ऊंचे महलों में ,
तो किसी का, झोपड़ी ही प्यारा है ।
कोई रहते अमिरी, में हरदम,
पर किसी को, फकिरी प्यारा है ॥
ये तो दुनिया......

कोई भुखा ही, पेट सो जाये,
कोई रह के भी, खा नही पाता ।
कहीं आंसू भरा है, जीवन तो,
कहीं हंसता सा, आंख मिल जाता ॥
ये तो दुनिया.......

कोई दिन-रात, थक के काम करे,
कोई आराम की, नींद में सोए ।
कहीं हंसता हुआ, सा दिल तो मिले,
कोई दिल ही दिल, मे है रोए ॥
ये तो दुनिया..........

ये तो अपने, नसीब का खेला,
जो भी बिधि ने, लिखा वही होगा ।
इसमें कोई दोष, ना किसी का है,
अपने कर्मों का, फल मिला होगा ॥

ये तो दुनिया की, रीति है ऐसी,
कोई रोता है, कोई हसता है ।
कोई उड़ते हुए, बिमानों मे,
कोई पैदल जमीन, पे चलता है ॥
ये तो दुनिया......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-02-2000,friday,7.05 pm,
chandrapur,maharashtra.