Tuesday 29 November 2011

भजन(चार दिनो के इस जीवन मे)

चार दिनों के इस जीवन मे,रे मन कर ना गुमान !
प्यार से मिल-जुलकर सबसे,जाना तु श्मशान !!
चार दिनो...........

क्रोध को त्याग के प्यार की वाणी,सबसे बोलो प्यारे !
कर ले तु अच्छे कर्मो को, छोड़ के मोह को सारे !!
दुखी जनों को अपना समझ के, सबको गले लगा ले !
जग मे भलाई के कामों को करके,सुन्दर सुयश तु पाले !
चार दिनो के.............

अहंकार-अभिमान को त्याग के ,सब का पर उपकार करो !
अपने काम को करते-करते ,उर मे प्रभु जी का ध्यान धरो !!
भला-बुरा और सुख-दुख मे,तुम सब मे एक समान रहो !
साधु पुरुष की संगति करके,उनसे सुन्दर ग्यान लहो !!
चार दिनो के.............

कितने जनम के पुण्य कर्म कर,यह मानुष तन पाया रे !
पर निन्दा और दु: संगति कर ,अनमोल समय को गवांया रे !!
भुल जा अब तु उन पापों को,जिससे तु बदनाम हुआ!
सदाचार निर्मल मन से तु,सबके भलाई का मांग दुआ !!
चार दिनो के..............

यह मिट्टी का तन है तेरा,मिट्टी मे ही मिल जायेगा !
मुट्ठी बांधे आया है तु ,हाथ पसारे जाएगा !!
संग मे ना जायेगा तेरे कोई,केवल धर्म ही जायेगा !
इसलिए जैसा कर्म करेगा,वैसा ही फ़ल पाएगा !!
चार दिनो के............

तुम जावोगे ,हम जाएंगे ,सब को वही पर जाना है !
यहां   कोई अपना है रे, सब कुछ तो बेगाना है !!
मोहन कहे तु सब कुछ छोड़ के,केवल प्रभु जी का ध्यान धरो !
जिसका हो सके तुमसे भलाई, वैसा ही तुम काम करो !!
चार दिनो के इस जीवन मे.................

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -/१२/१९९१,सोमवार,

रात-११:०० बजे,चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)  

गजल(ये मेरा दिल बहुत ही रोता है)


ये मेरा दिल बहुत ही रोता है,आखो मे आसु भी नही मेरे!
हमने जैसा भी पहले सोचा था,वो तो पुरे हुए नही मेरे!!
ये मेरा दिल..............
ये बदनसिबी का आलम,देखे कैसे और कब तक चलता ह!
मैने बोला बहुत ,मिला उनसे,पर मेरी बात कौन सुनता है!!
ये मेरा दिल................
हमसे जो भी हुआ है अपने से,मैने हर का भलाई सोचा है!
पर मुझे ईनाम मिलता दुखो का,मेरा दिल इस लिए ही रोता है!!
ये मेरा दिल................
हर जगह मै सभल के चलता हु, पर मुझे ठोकरे मिला करता!
जितना मै सबसे प्यार से बोलू, लोग सोचते कि ये डरा करता!!
ये मेरा दिल...............
इस जमाने की कडवी बोली मे, मैने कई बार बोलना चाहा!
पर मेरी आत्मा ने धिक्कारा , जब कभी मै भी बोलना चाहा!!
ये मेरा दिल बहुत ही रोता है......................
मै किसे दोष दू, कहू किसको, जिससे सारा जमाना रुठा है!
मै तो इक ऐसा पेड़ हु यारो,जो कि लगता हरा, पर सूखा है!!
ये मेरा दिल बहुत ही रोता.......................

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक- १/१२/१९९१ , रविवार, शाम ,६.२० बजे,
पार्क ,चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)

गजल(खिलती हुई सी ये कली)


खिलती हुई सी ये कली,कैसी ये दिवानी लगती है !
पर इसको जमाने का डर है,इसिलिए घबराई लगती है !!
खिलती हुई सी ये कली.........

जैसे-जैसे ये बढ़ती है,ये और नशिली लगती है !
देखो ये हरे पत्तों मे छिपी ,कैसी शर्मिली लगती है !!
खिलती हुई .............

आधी-तुफ़ान और गर्मी से सबसे बचती ये आई है !
बर्फ़िली सर्द हवावों को,सब को ये सहती आई है !!
खिलती हुई सी................

इसके खिलने के पहले ही ,भौरों की लम्बी कतारें हैं !
जिसको देखा हो न इसने कभी,इसके हम दर्दी सारे हैं !!
खिलती हुई ..............

ये खुश होती इन्ही देख-देख,जिसे चाहने वाले इतने हैं !
पर इसको पता नही है अभी कि,इसको किससे मिलने हैं !!
खिलती हुई.......................

इसके दिल मे अरमान बहुत ,और कितने सुहाने सपने हैं !
शायद इसको पता नही,ये सपने कितने अपने हैं !!
खिलती हुई सी ये कली...............

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-०१/१२/१९९१ ,रविवार शाम,५ बजे

चन्द्रपुर ,(माहाराष्ट्र)