जहां कुदरत ने कहर बरसाया है ।
कई जानों की कुर्बानी लेकर,
जहां कई बिमारियों को फैलाया है ॥
घंटों चला वहां मौत का ताण्डव,
जिसमे घर के घर लहरों मे समाते गये ।
जो बचे खुचे थे लहरों से,
वे भुख से बेचारे मारे गये ॥
वहां के दर्द नाक दृश्य़ों को देख-देख कर,
पत्थर सा कलेजा भी कांप उठता ।
अनायास आंसू निकल जाते और,
करुणा दिल मे है भर उठता ॥
जो अपना सब कुछ लुटा कर के,
किस्मत से बच हैं गए ।
उन्हें बिमारियों को आने का भय है,
उन्हें बिमारियों को आने का भय है,
और खाने का डर है सताए हुए ॥
उनके घावों को भरने के लिये,
हमे प्यार का मरहम लगाने होंगे ।
जिस तरह से उनके दुःख कम हों,
हमे वही काम करने होंगे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
12-07-2013,friday,
pune,maharashtra.