परी हो तुम गुजरात की, रूप तेरा मद्रासी !
सुन्दरता कश्मीर की तुममे ,सिक्किम जैसा शर्माती !!
मणीपुर तेरे माथ की बेंदी जो लगे बहुत ही प्यारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || १||
मणीपुर तेरे माथ की बेंदी जो लगे बहुत ही प्यारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || १||
खान-पान पंजाबी जैसा, बंगाली जैसी बोली !
केरल केरल जैसे आंख तुम्हारा ,है दिल तो तुम्हारा दिल्ली !!
राम -कृष्ण ,बुद्ध जहाँ हैं जन्में और बहुत हुए अवतारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || २ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || २ ||
महाराष्ट्र तुम्हारा फ़ैशन है, तो गोवा नया जमाना !
खुश्बू हो तुम कर्नाटक की ,बल तो तेरा हरियाना !!
मीरा-सूर- कबीरा-तुलसी करते तेरी मनुहारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ३ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ३ ||
सिधी-सादी उड़ीसा जैसी,एम.पी जैसा मुस्काना !
दुल्हन तुम राजस्थानी सी ,त्रिपुरा जैसा इठलाना !!
जंगल-पहाड़-पर्वत व् झरने तू है अद्भुत श्रृंगारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ४ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ४ ||
झारखन्ड तुम्हारा आभूषण, तो मेघालय तुम्हारी बिन्दीया है
!
वक्ष तुम्हारा है यू.पी तो ,हिमांचल तुम्हारी निन्दिया है !!
शिवा प्रताप-लक्ष्मीबाई जो रक्षा में भिड़े तुम्हारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ५ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ५ ||
कानों का कुन्डल छत्तीसगढ़ ,तो मिज़ोरम पांव का पायल !
बिहार गले का हार तुम्हारा ,तो आसाम लहराता आंचल !!
धनवंतरी-चरक व पतंजली सब करें हैं सेवादारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ६ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ६ ||
नागालैन्डनागालैंड - आन्ध्र दो हाथ तुम्हारे, है ज़ुल्फ़ तुम्हारा अरुणांचल !
नाम तुम्हारा भारत माता, पवित्रता तुम्हारा ऊत्तरांचल !!
मांग का टीका तेलंगाना फैली जिसकी उजियारी
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ७ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ७ ||
सागर है परिधान तुम्हारा,तिल जैसे है दमन- द्वीव !
मोहित हो जाता है सारा जग,लगती हो कितनी सजीव !!
कालिदास-रामानुज-आर्यभट्ट ये ज्ञान की हैं चिंगारी |
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ८ ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ८ ||
अन्डमान और निकोबार द्वीप,पुष्पों का गुच्छ तेरे बालों में !
झिल-मिल,झिल-मिल से लक्षद्वीप, जो चमक रहे तेरे गालों में !!
आजाद-गुरु-सुखदेव-भगतसिंह सुभाष थे क्रन्तिकारी |
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ९ ||
ताज तुम्हारा हिमालय है ,तो गंगा पखारती चरण तेरे |
कोटि कोटि भारतवासी संग स्वीकारो तुम नमन मेरे ||
तेरी रक्षा में मोहन भी तत्पर जैसे देश व सेना सारी |
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || १० ||
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || ९ ||
ताज तुम्हारा हिमालय है ,तो गंगा पखारती चरण तेरे |
कोटि कोटि भारतवासी संग स्वीकारो तुम नमन मेरे ||
तेरी रक्षा में मोहन भी तत्पर जैसे देश व सेना सारी |
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी || १० ||
ताज तुम्हारा हिमालय ,तो गंगा पखारती चरण तेरे !
कोटि-कोटि हम भारतयों का ,स्वीकारो तुम नमन मेरे
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-११-१२-२००३
स्थान-नामक्कल(तमिलनाडु)