Monday 26 September 2011

भारत दर्शन ( "तू सारे जहां से न्यारी" )

परी हो तुम गुजरात की, रूप तेरा मद्रासी !
सुन्दरता कश्मीर  की तुममे ,सिक्किम जैसा शर्माती !!
मणीपुर तेरे माथ की बेंदी जो लगे बहुत ही प्यारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || १|| 
 
खान-पान पंजाबी जैसा, बंगाली जैसी बोली !
केरल केरल जैसे आंख तुम्हारा ,है दिल तो तुम्हारा दिल्ली !!

राम -कृष्ण ,बुद्ध जहाँ हैं जन्में और बहुत हुए अवतारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || २ || 
 
महाराष्ट्र तुम्हारा फ़ैशन है, तो गोवा नया जमाना !
खुश्बू  हो तुम कर्नाटक की ,बल तो तेरा हरियाना !!
मीरा-सूर- कबीरा-तुलसी करते तेरी मनुहारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ३ || 
 

सिधी-सादी उड़ीसा जैसी,एम.पी जैसा मुस्काना !
दुल्हन तुम राजस्थानी सी ,त्रिपुरा जैसा इठलाना !!
जंगल-पहाड़-पर्वत व् झरने तू है अद्भुत श्रृंगारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ४ || 
झारखन्ड तुम्हारा आभूषण, तो मेघालय  तुम्हारी बिन्दीया है  !
वक्ष  तुम्हारा है  यू.पी  तो ,हिमांचल तुम्हारी निन्दिया है !!
शिवा प्रताप-लक्ष्मीबाई जो रक्षा में भिड़े तुम्हारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ५ || 
 

कानों का कुन्डल छत्तीसगढ़ ,तो मिज़ोरम पांव का पायल  !
बिहार गले का हार तुम्हारा ,तो आसाम लहराता  आंचल  !!
धनवंतरी-चरक व पतंजली सब करें हैं सेवादारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ६ || 
 

नागालैन्डनागालैंड - आन्ध्र दो हाथ तुम्हारे, है  ज़ुल्फ़ तुम्हारा अरुणांचल  !
नाम तुम्हारा भारत माता पवित्रता तुम्हारा ऊत्तरांचल  !!
मांग का टीका तेलंगाना फैली जिसकी उजियारी 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ७ || 
 

सागर है परिधान तुम्हारा,तिल जैसे है दमन- द्वीव !
मोहित हो जाता है सारा जग,लगती  हो  कितनी सजीव !!
कालिदास-रामानुज-आर्यभट्ट ये ज्ञान की हैं चिंगारी |

तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ८ || 
 

अन्डमान और निकोबार द्वीप,पुष्पों का गुच्छ तेरे बालों में !
झिल-मिल,झिल-मिल से लक्षद्वीप, जो चमक रहे तेरे गालों में !!
आजाद-गुरु-सुखदेव-भगतसिंह सुभाष थे क्रन्तिकारी | 
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || ९  || 

ताज तुम्हारा हिमालय है ,तो गंगा पखारती चरण तेरे | 
कोटि कोटि भारतवासी संग स्वीकारो तुम नमन मेरे || 
तेरी रक्षा में मोहन भी तत्पर जैसे देश व सेना सारी |
तूं सारे जहाँ से न्यारी -तूं सारे जहाँ से न्यारी  || १०  || 

ताज तुम्हारा हिमालय  ,तो गंगा पखारती चरण तेरे !
कोटि-कोटि हम भारतयों का ,स्वीकारो तुम नमन मेरे  
मोहन श्रीवास्तव (कवि 
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-११-१२-२००३
स्थान-नामक्कल(तमिलनाडु)                        





1 comment:

Madan Mohan Saxena said...

मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति