Thursday 22 November 2018

''संसार के आधार हैं वो '' हरिगीतिका छंद ( SSIS SSIS S SIS SSI S )


"संसार के आधार  हैं वो"
 हरिगीतिका छंद ( SSIS SSIS S  SIS SSI S )


संसार के आधार  हैं वो , ज्ञान के भंडार हैं | 
आकाश में पाताल  में , वो शांत पारावार हैं || 
ब्रह्माण्ड में हैं व्याप्त  सारे ,वेद के वो सार हैं  | 
औतार लेके तारते हैं , मोक्ष के ही द्वार हैं || 

सारे  जहाँ में वो समाये , बात ये भी मानिये | 
पाते सुखों को ध्या रहे जो , वो सभी में जानिये || . 
जो जान के अंजान होते , नाम लेते हैं नहीं | 
वो क्लेष पाते हैं सदा ही ,बात ये मानो सही || 

ब्रह्मा विष्णू वो ही त्रिधामा , देवता ये एक हैं | 
जो भी करे हैं ध्यान पूजा , ईश सारे एक हैं || 
लेते उन्हीं का नाम सारे , जान या अंजान में | 
पाते कृपा हैं नाथ के वो , हों किसी भी स्थान में || 

प्यारे दुलारे जीव सारे ,नाथ को जो मानते | 
माता पिता के रूप जैसे ,बालकों को पालते || 
जो छोड़ के सारा जमाना  , आपको ही ध्यानते | 
इच्छा सभी की पूर्ण होती  , आप ही  हैं साधते || 



कवि मोहन श्रीवास्तव 
रचना क्रमांक ;- ( 1126 )
23 . 11 . 2018 


Monday 19 November 2018

"राम जी का नाम लेके"गीतिका छंद ( SISS SISS SISS SIS )


"राम जी का नाम लेके"
गीतिका छंद ( SISS  SISS   SISS SIS )


राम जी का नाम लेके , काम सारे कीजिये | 
जागते सोते सदा ही , नाम प्यारे लीजिये || 
राम ही  प्यारे सभी को ,राम ही हैं  तारते  | 
राम ही हैं प्राण देते ,    राम ही संहारते     || 

राम छंदातीत हैं तो ,    राम प्यारे मीत हैं  |  
राम कालातीत हैं तो ,    राम मेरे  गीत हैं || 
राम ही सारा जहाँ हैं ,  राम ही ब्रह्माण्ड हैं | 
राम ही दाता विधाता ,    वो सवेरे चाँद हैं || 

राम जी का काम ही है ,प्राणियों को तारना | 
हार के भी जीत देते ,   ये सदा ही मानना  || 
हो धनी या हो भिखारी  , रंक राजा और हो | 
राम की पाते कृपा ही  ,  या कसाई चोर हो || 

राम को जो जान लेते ,    दास हैं वो राम के  | 
काटते बाधा सभी के  ,    आसरे जो राम के  || 
राम जी संसार के हैं ,      बाप सारे जानिये   | 
ध्यान सेवा राम का हो , राम को ही मानिये ||

राम जी का नाम लेके , काम सारे कीजिये | 
जागते सोते सदा ही , नाम प्यारे लीजिये || 


कवि  मोहन श्रीवास्तव 
रचना क्रमांक :- (११२५ ) 


Wednesday 14 November 2018

''हे वीर तुम रणधीर हो'' ( मधुमालती छंद )

"हे वीर तुम रणधीर हो"
( मधुमालती छंद )

हे वीर तुम रणधीर हो | 
चलते रहो  रणवीर हो || 
माँ भारती के हीर हो  | 
रिपु के लिये यमतीर हो || 

भुज बंध पर अभिमान हो | 
बस जीत ही अरमान हो || 
हित देश बस यह प्राण हो || 
निज वतन पर बलिदान हो || 

जयचंद दल पहचान हो | 
उनकी जगह शमसान हो || 
बलवंत तुम गुणवान हो  | 
अरि वक्ष लहू लोहान हो || 

माँ भारती के लाल हो | 
तुम दुश्मनों के काल हो || 
हम सभी के तुम ढाल हो | 
रण में सदा बेताल हो || 

अरि लहू की नित प्यास हो | 
श्री विजय की बस आस हो || 
धैर्य सदा तव पास हो | 
माँ भारती के दास हो || 

जय हिन्द की ललकार हो | 
सदा वैरियों पे प्रहार हो || 
निज हाथ में औजार हो | 
दिन रात ही जयकार हो || 
हे वीर तुम रणधीर हो | 
चलते रहो  रणवीर हो || 
माँ भारती के हीर हो  | 
रिपु के लिये यमतीर हो || 


कवि  मोहन श्रीवास्तव 

रचना क्रमांक :- ( 1124 )