Thursday 29 January 2015

बस याद तुम्हारी ही है हमें


जहां भी देखूँ तुम ही तुम हो,
आती जाती इन श्वाशों में । 
तुम हर पल याद आती हमें ,
तुम अपने सुनहरे वादों में ॥ 

पायल की झनक जब कभी सुनता हूँ ,
लगता है तुम  आ रही हो ।
चूड़ी की खनक जब भी  सुनता ,
मानो तुम मुझे बुला रही हो ॥ 

जब कहीं बोल सुनता हूँ ,तुम जैसा,
मेरे धड़कन हैं बढ़ जाते । 
तश्वीर तुम्हारा जब मैं देखूँ ,
नयनों में नीर हैं  आते ॥ 

ये दोनों अनमोल रत्न ,
मेरे लिए तुम्हारी दो आँखे हैं । 
दोनों ही तुम्हारी तरह हैं ये ,
और इनके मजबूत ईरादे हैं ॥ 

न आश रहा ,न चाह रहा ,
ना ही कोई तो किनारा है । 
बस यादें तुम्हारी ही हैं हमें ,
जो देती हमें सहारा हैं ॥ 
बस यादें तुम्हारी ही हैं हमें ,
जो देती हमें सहारा हैं.. . . 

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
 (912)
7AM,Tuesday,Mahaveer Nagar,
Raipur (C.G) (912)
Mob.9009791406  

Tuesday 20 January 2015

शोक संदेश ( आखिर कैन्सर से एक और जिन्दगी हार गई )

प्रिय मित्रों ,
आखिर कैन्सर से एक और जिन्दगी हार गई
मुझे अत्यंत दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है की मेरी धर्मपत्नी श्रीमती विभा श्रीवास्तवा का कैन्सर के कारण मात्र 2 माह 12 दिन की बिमारी में दिनांक 12-01-2015 को स्वर्गवाश हो गया। वे अपने पिछे एक पुत्र सौरभ (B.E Civil अंतिम वर्ष )व एक पुत्री समीक्षा( B.E , EEE प्रथम वर्ष) छोड़ गई हैं । 

''लिए थे फेरे सात थे हमने ,और किए थे कस्मे वादे।साथ जिएंगे ,साथ मरेंगे ,यही थे अपने ईरादे ॥ 
पर वो चली गई इस दुनिया से ,हम रह गए अकेले । 
बस यादें उनकी शेष हैं अब,जो लगते बड़े अलबेले ॥ 
बस यादें उनकी शेष हैं अब,जो लगते बड़े अलबेले ॥ 

मित्रों, मेरी अब तक की लिखी 900 रचनाएँ इनके लिए ही समर्पित हैं । 

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
रायपुर (छ. गढ़) 
mob-9009791406

Wednesday 7 January 2015

सपनों के तारे उनके जमीं पे हैं आ गए

सपनों के तारे उनके जमीं पे हैं आ गए,
जिनके सहारे कभी थे वे मुस्कुरा रहे ।
हर हाल मे तो बस उन्हें जीना कुबूल था,
पर आज वो तो कैंसर से देखो हैं लड रहे ॥

पल भर मे उनकी खुशियों को जैसे लग गया नजर,
फूलों से आंख मे ,गम के आंसू जो आ गए ।
कहते थे दुःख के बाद सुख आता है जरुर,
पर आज उनकी जींदगी मे अंधेरे ही छा गए ॥

सब कुछ तो लुट चुका था, लुटने को कुछ न था,
पर आज अपनी जींदगी देखो लुटा रहे ।
कभी पेंसिल से जो लिखे थे,अरमानों का कोई खत,
पर आज अपने हाथों से उसे हैं मिटा रहे ॥

गुलशन में उनकी कलियां आने लगे थे अब,
वो भी अपने मेहनत पे थे इतरा रहे ।
पर सहसा अचानक कोई तूफान आ गया,
वो तो सोच-सोच के बस आसू बहा रहे ॥

तूफान तो आये थे उनके गुलशन मे बहुत से,
पर सह लिये थे वो सब हसते हुए।
मगर ये तूफान आया है जाने किधर से,
पर वो सह रहे हैं सब कुछ सहमे हुए ॥

 सपनों के तारे उनके जमीं पे हैं आ गए,
जिनके सहारे कभी थे वे मुस्कुरा रहे ।
हर हाल मे तो बस उन्हें जीना कुबूल था,
पर आज वो तो कैंसर से देखो हैं लड रहे ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
9009791406 



३१-१२-२०१४. बुद्धवार,
कमला नेहरु कैंसर संस्थान इलाहाबाद(उ. प्र.)