Wednesday 18 January 2023

"विजात छंद" (श्री हनुमान स्तुति) जय जय श्री राम

 "विजात छंद"


(श्री हनुमान स्तुति) जय जय श्री राम


लगा सिंदूर काया में, गदा को हाथ में धारे।

हृदय सियराम की मूरत,सदा श्री राम उच्चारे।।


अतुल बलवान बजरंगी,सभी वेदों के हैं ज्ञाता।

पिता श्री वायु हैं उनके, लला की अंजनी माता।।

सियापति राम के सेवक,सदा संतो को हैं तारे।

लगा सिंदूर काया में, गदा को हाथ में धारे।।१।।


परम विद्वान रिपु हंता,असुर दल मारने वाले।

मिटाते राम द्रोही को,भजन में विध्न जो डाले।।

भजे हनुमान जी को जो,सभी संकट प्रभो टारे।

लगा सिंदूर काया में, गदा को हाथ में धारे।।२।।


जहां पर राम कीर्तन हो,वहां हनुमान जी आते।

सुनें प्रभु राम चर्चा को,कथा विश्राम पर जाते।।

अमर हैं देव कलयुग के,स्वयं को राम पर वारे।

लगा सिंदूर काया में, गदा को हाथ में धारे।।३।।


लगा सिंदूर काया में, गदा को हाथ में धारे।

हृदय सियराम की मूरत,सदा श्री राम उच्चारे।।


कवि मोहन श्रीवास्तव







"शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र" भावानुवाद (भुजंगप्रयात सवैया)

 "शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र" भावानुवाद 
(महाभुजंगप्रयात सवैया)
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करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

प्रभो आप ब्रम्हांड के हो विधाता,
तुम्हें मैं महादेव माथा नवाऊंँ।
सभी रूप व्यापी तपस्वी यशस्वी,
तुम्हें वेदरूपी रिझाऊँ मनाऊंँ।।
सदा मोह से दूर दातार शंभू,
दिशावस्त्रधारी गुणातीत गाऊँ।
भजूँ आपका नाम दाता पुरारी,
महाकाल भैरौ सदा माथ नाऊँ।।१।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।


निराकार ओंकार के मूल स्वामी,
परे ज्ञान इंद्रीय वाणी प्रभो हो।।
महाकाल के काल स्वामी गुणी हो,
परे आप संसार से भी विभो हो।।२।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

लगे गात गौरीय नागेश जैसे,
करोड़ों प्रभो मीनकेतू लजाये।
गले सर्पमाला जटा शीशगंगा,
सदा माथ पे दूज चंदा सुहाये।।३।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।


हिले कान में कुंडलें दीर्घ नैना,
महादेव हो नीलकंठी दयालू।
गले मुंडमाला सभी के हितैषी,
भजूँ नित्य बाघाम्बरी हे कृपालू।।४।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

करोड़ों विवस्वान को हैं लजाते,
भजूंँ मैं सती के पती शूलधारी।
हरो व्याधि सारे महादेव भोले,
अजन्मा अखंडा प्रचण्डा पुरारी।।५।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

परे आप स्वामी कला आदि से हो,
सभी सज्जनों को सदा मान देते।
हरो मोहमाया भजे आपको जो,
लुटा हर्ष से ज्ञान सम्मान देते।।६।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

भजे आपको जो नहीं हे कपाली,
जरे ताप में वो नहीं शांति पाये ।
सभी जीव में आपका वास स्वामी,
सदा आप संतुष्ट होना सहाये।।७।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

नहीं जानता योग पूजा पिनाकी,
तुम्हें सर्वदा नाथ माथा नवाऊँ।
बुढ़ापा तथा जन्म के चक्करों के,
दुखों के महादेव मैं पार पाऊंँ।।८।। 
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।

किए प्रार्थना विप्र जो शंभु से हैं ,
महादेव संतुष्ट होके सहाए।
करे भक्त जो पाठ रुद्राष्टकम का,
सदा शंभु आशीष वो भक्त पाए।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।9।।

कवि मोहन श्रीवास्तव





#भिक्षा_यात्रा 🙏🏻


 #भिक्षा_यात्रा 🙏🏻


कृपया सभी सनातनी भाई बहन स्वामी दीपांकर जी की भिक्षा यात्रा में जुडें। 


नहीं मांगते अन्न धन्न दौलत, जगा रहे जाकर हर द्वार।

नाम है स्वामी दीपांकर जी, जोड़ रहे बिखरा परिवार।।1।।

भिक्षा मांग रहा सन्यासी, नगर डगर में लगा पुकार।

सनातनी तुम इक हो जाओ, जाति पाति की तोड़ दीवार।।2।।


देश धर्म के रक्षक बनकर आए युग ऋषि संत महान।

इनको पूर्ण समर्थन देकर ,हम सबको देना है मान।।3।।


हमको ताकत देने आए,सब मिल देना पूरा साथ।

भिक्षा यात्रा सफल बनाने,हिंदू सभी बढ़ाओ हाथ।।4।।


कवियों लिखो गायकों गाओ, स्वयंसेवियों करो प्रचार।

करो प्रकाशित भिक्षा यात्रा , पत्रकार से करूं गुहार।।5।।

कवि मोहन श्रीवास्तव


#भिक्षा_यात्रा जय हो सनातन धर्म की 🚩

पण्डित सुंदर लाल शर्मा

पण्डित सुंदर लाल शर्मा 

(सरसी छंद)


त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।

छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।


पंडित जी का महलनुमा घर, चमसुर नामक गाँव ।

धन दौलत की कमी नहीं थी, महानदी की छाँव ।।


खेत सैकड़ों एकड़ जिसमें, आम जाम के बाग ।

पंक्षी तोता मैना कोयल, मिलकर छेड़ें राग ।।


सोन अंगूठी सदा पहनते, सोना जड़ित लिबास ।

घर में रहकर किये पढ़ाई, काशी गुरु से खास ।।


छंदबद्ध कविताएं लिखते, उनका हृदय उदार ।

कई बार वे जेल गए थे, पर ना माने हार ।।


रचे दान लीला पंडित जी, जिसमें गोपी श्याम ।

प्रेम भक्ति का मिश्रण लिखकर, अमर कर गए नाम ।।


अव्वल नंबर के थे जिद्दी, जिद्द ही उनका पंथ ।

रात रात भर जाग जाग कर, लिखे अठारह ग्रंथ ।।


नये नये तकनीकों का वे, करते सदा प्रयोग ।

भब्य जलाशय बाँध बनाकर, करते थे उपयोग ।।


जौ गेहूं को पिसवाते थे, पनचक्की से आप ।

छुआछूत का भेद मिटाने, सहे बहुत संताप ।।


छत्तीसगढ़ में रोपा पद्धति, लाए थे श्रीमान ।

प्रगतिशील खेतिहर का उनको, मिला बड़ा सम्मान ।।


छुआछूत के घोर विरोधी, सब मेंं देखें राम ।

दलित प्रवेश कराए मंदिर, राजिम लोचन धाम ।।


अंग्रेजों ने जलकर थोपा, उसका किये विरोध ।

तब कंडेल गांव में जाकर, लिए उचित प्रतिशोध ।।


वस्तु स्वदेशी अपनाने को, बेचे संपत्ति खेत ।

आखिर मेंं कंगाल हो गए, राष्ट्र धर्म के हेत ।।


अंत समय मेंं दुर्दिन देखे, मगर न टूटे आप ।

हरि का सुमिरन करते करते, भोगे सब दुख ताप ।।


एक ही कुर्ता एक ही धोती, बचा हुआ था पास ।

सिल सिल कर उसे पहनते, जब निकला था श्वाँस ।।


ऋणी रहेगा भारत उनका, छत्तीसगढ़ की शान ।

करता है मोहन पग वंदन, सुंदर लाल महान ।।


त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।

छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।


मोहन श्रीवास्तव


"अष्टपदी छंद" (वर्णिक) "शिव स्तुति" भगत जपत शिव शंकर, अभयंकर हे। अजर अमर अहि हार,जय जय शंभु हरे।।१।। शशिधर विषधर सुंदर, सुख सागर हे। हरि उर बसत गिरीश,जय जय शंभु हरे।।२।। अखिल जगत शिव पूजित, भव तारत हे। हरत जगत सब व्याधि,जय जय शंभु हरे।।३।। पितु गजवदन उमापति,प्रिय लागत हे। रतिपति हति गति देत, जय जय शंभु हरे।।४।। विपत हरत दुख टारत, खल मारत हे। सिर तव चरन नवात,जय जय शंभु हरे।।५।। प्रबल गरल गर धारत, दुःख टारत हे। अहिगन कर फुफकार, जय जय शंभु हरे।।६।। दिनकर हिमकर पावक, तव नैनन हे। विनय करत तव दास, जय जय शंभु हरे।।७।। विमल धवल तव मूरत, खुबसूरत हे। भजन करत दिन रात, जय जय शंभु हरे।।८।। कवि मोहन श्रीवास्तव

"शिव स्तुति" "विजात छंद" ISSS ISSS,ISSS ISSS लगाऊँ ध्यान भोले का, सदा जो राम को ध्याते। हृदय से भावपूरित हो, सदा गुनगान को गाते।। महादानी जटाधारी, जटा में पावनी गंगा। लिए त्रिशूल हाथों में, धरें हैं रूप अड़बंगा। लपेटे कंठ में विषधर, कलाधर माथ पे सोहे। भभूती तन रमा के वो, करोड़ों काम को मोहे।। बजाते नाथ डम डमरू, जिसे सुन पाप कट जाते। लगाऊँ ध्यान भोले का, सदा जो राम को ध्याते।। पहन कटि व्याघ्र की छाला, सवारी बैल की साजे। भवानी संगिनी भी है, सुशोभित अग्र में राजे।। लगे मनमोहिनी जोड़ी, सदा नंदी खड़ा द्वारे। मची है धूम मंदिर में, लगाते भक्त जय कारे ।। करें सब कामना पूरी, भगत जो शिव शरण आते। लगाऊँ ध्यान भोले का, सदा जो राम को ध्याते।। हृदय से भावपूरित हो, सदा गुनगान को गाते।। कवि मोहन श्रीवास्तव

(घनाक्षरी) "शिव वंदना" आदि देव महादेव,जिन्हें सेवें सभी देव, ऐसे भोलेनाथ जी का रूप तो निराला है। क्षण में होते प्रसन्न,भक्तों को करे धन्य, शिव नाम तमस में करता उजाला है।। सीस सोहे चंद्र गंग,भभूति रमाए अंग, पत्नी पार्वती देवी गणपति जी लाला हैं। हरि ध्यान करें हर,जगत की पीड़ा हर, कालों का भी महाकाल वो डमरू वाला है।। कवि मोहन श्रीवास्तव