Monday 19 February 2024

भजन श्री कृष्ण जी का (आवो नाचे झूमें गाएं)सुधारोपरांत

आवो नाचे झूमें गाएं,चलो खुशियां मनाएं,
कान्हा मेरे घर आये , ब्रजधाम से।
कर के सोलहों सिंगार, सज के बैठी हूं तैयार,
मैं तो श्याम सजन के, ही नाम से॥१।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

धेनु संग लिए आत, मुख मुरली बजात,
लोक तिनहुँ रिझात,ब्रज सांवरा।
तन पे पीत परिधान, कुण्डल रवि के समान,
वो तो बसें मेरे प्रान, मन बांवरा।।२।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

उनके सुंदर सुंदर गाल, घूंघर घूंघर काले बाल,
कंठ मणियों के माल, मन मोहते।
मेरे कबसे प्यासे नैन, करके दर्शन पाते चैन।
प्यारे प्यारे पग में छन छन, पैंजन सोहते।।३।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

केशर चन्दन तिलक भाल, नैन कमल विशाल,
संग लिए गोप ग्वाल , हरि आ गए।
भौहें जैसे हैं कमान, मारे अंखियों से बान 
मांगे प्रेम रस दान, मन भा गए।।४।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

जैसे जंगल में मोर,वैसे नाचे मन मोर , 
सखि देख चित चोर, झूम झूम के।
मेरे अलबेले श्याम, मुझे तुमसे ही काम ,
मैं तो करूं परनाम घूम घूम के।।५।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

बना शुभ संयोग, ऐसा कहते हैं लोग,
मैं बनाई छप्पन भोग, बड़े भाव से।
ऊंचे आसन बइठार, विनती कर बार बार,
मैं तो परसूंगी थार बड़े चाव से।।६।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......

जब आएंगे वो पास, संग खेलूँगी मैं रास,
पूरी होगी सब आश, घनश्याम से।
मैं ना मांगू धन धान, मांगू भक्ती वरदान,
जोड़े रखना भगवान, निज धाम से।।७।।

आवो नाचे झूमें गाएं,चलो खुशियां मनाएं,
कान्हा मेरे घर आये , ब्रजधाम से।
कर के सोलहों सिंगार, सज के बैठी हूं तैयार,
मैं तो श्याम सजन के, ही नाम से॥१।।
आवो झूमें नाचे-गाएं.......


सुधार हो गया है दिनाँक १९.०२.२०२४

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,12.10pm,
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भोज पुरी (मत देखो तिरिछी नजरिया से)

मत देखो तिरिछी नजरिया से,नजरिया से..
हम मर-मर जाए, सुरतिया पे, सुरतिया पे....
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

कहां से आई गोरी,कहां पे जावोगी....२
हम पे सितम कब तक, तुम ढहावोगी.....२
जब से देखे हम, दिवाने हुए हैं....२
तुमको हम देख के, परवाने हुए हैं.....२
चमके...२ तूं जैसे बिजुरिया सी, बिजुरिया सी....२
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

पतली कमर, बलखा के चली है.....२
लगती बनारस की, संकरी गली है....२
कानों मे झुमका, बरेली का पहनें....२
सर से पावों तक, हीरे के गहने....२
रात...२ को दिखती अजोरिया सी,..अजोरिया सी
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२


कली कश्मीर की,फूल मे गुलाब हो...२
शीशे की बोतल मे, महंगी शराब हो....२
हम हैं शायर और, तुम तो गजल हो....२
समय की गिनती मे, तुम तो इक पल हो....२
मदिरा...२ छलकाती बदनियां से,बदनिया से
हम मर-मर जाएं, सुरतिया पे....२

मत देखो तिरिछी, नजरिया से,नजरिया से..
हम मर-मर जाए, सुरतिया पे, सुरतिया पे....
मत देखो तिरिछी, नजरियासे.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,12.50pm,
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भ्रष्ट्राचार का बदबू फैला

भ्रष्ट्राचार का, बदबू फैला,
हर शहर व, हर बाजारों में ।
गांव भी अछुते, नही हैं इसमे,
दफ्तर या हो, सरकारों मे ॥

भ्रष्टाचार की, बगिया देखो,
कितनी तेजी से, बढ़ रहा है ।
नए-नए तरिके, ढूढ़-ढूढ़ कर,
सिढ़ी दर सिढ़ी, चढ़ रहा है ॥

अब बेटी की शादी, करने के पहले,
लड़के की पदवी, नही देखी जाती ।
अच्छा इनकम, करता हो बस,
उसकी तश्वीर, नही देखी जाती ॥

भ्रष्टाचार का अंकुर, पनपने लगा है,
अब स्कूलों व, कालेजों मे ।
जहां प्रवेश, कराने से पहले,
दी जाती है रिश्वत, डोनेशन मे ॥

सरकारी नौकरियों मे, बात ही क्या,
जहां लाखों मे, बातें होती हैं ।
पैसे वालों को, नौकरी मिल जाती,
पर निर्धनों की, आत्माएं रोती हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,4.40pm,
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भारत की आत्मा रोती है

भ्रष्टाचार की गर्त मे, डुबा भारत,
आज कितना, मजबुर हुआ है ।
दीमक जैसे, भ्रष्टा चारियों से,
आज कितना, कमजोर हुआ है ॥

राह-जनी तथा, लूट-पाट,
आदमी को, आदमी काट रहे ।
वोटों के लिये ये, राजनीतिक दल,
आपस मे, हमको बांट रहे ॥

विधान सभा से, संसद तक,
नित, हाथा-पाई होती है ।
सत्ता के दलालों को, देख-देख कर,
भारत की, आत्मा रोती है ॥

बे कसुरों को, सजाएं दी जाती,
अपराधी सरे आम, घुमते हैं ।
दिन-दहाड़े, बलात्कार कर के वो,
मस्ती के साथ, झुमते हैं ॥

मजहब के नाम, पर आपस मे,
इक-दूजे के, खून के प्यासे हैं ।
ईश्वर-अल्लाह से, बढ़ कर अपने को,
वे ईन्सानियत का, रहनुमा बताते हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,6.25pm,
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हाय यह कैसा जमाना आया है

हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥

पैसों की ताकत, के बल पर,
वे अपना कानून, चलाते हैं ।
शरीफों का नकाब, पहन कर के,
वे मजबुरों का, खून बहाते हैं ॥

लोगों के चेहरे, देख-देख कर,
ईनाम-पुरष्कार, दिए जाते ।
कभी औपचारिकता, बस ही,
महापुरुषों को याद, किए जाते ॥

अच्छी पढ़ाई, करने पर भी,
उन्हें नौकरी, नही मिलती ।
आरक्षण के जहर, के कारण,
उनकी तकदीर, नही खिलती ॥

महंगाई के, कफन के साए मे,
सब घुट-घुट, कर जीते रहते ।
लाचारी व गरीबी, से तंग आकर,
वे आसुवों के घूंट पिते रहते ॥

हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-12-1999,friday,7.25pm,
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हम वीर जवान हैं भारत के(राधेश्यामी)



हम भारत के हैं धीर वीर ,
पिछे मुड़ना नहीं आता है ।
मित्रता हमारा मूल मंत्र,
लड़ना भिड़ना नहीं भाता है ॥१।।

हम राम कृष्ण वंशज धनुधर,
हम चक्र सुदर्शन धारी हैं।।
हम एक अकेले रिपुओं के,
झुण्डों पर पड़ते भारी हैं।।२।।

यदि हमें चुनौती दे कोई,
हम उसको धूल चटाते हैं।
दुष्ट आचरण वालों का हम,
पल भर में मान घटाते हैं।।३।।

कोई यदि प्रेम से मांगे तो,
हम कर्ण सरीखे दानी हैं।
ललकारे यदि कोई बैरी,
तब हम उतारते पानी हैं।।४।।

प्यार से मांगे, जाने पर हम,
हर चीज निछावर कर देते ।
दान-वीर हम कर्ण के वंशज,
भिक्षुवों की झोली, भर देते ॥५।।

हम मानवता पोषक प्रहरी,
हम पाप कर्म से डरते हैं।
अपनी क्षमता से बढ़कर हम,
सत्कार अतिथि का करते हैं।।६।।

"सत्यमेव जयते" के पथ पर,
हम युग युग से चलते आए हैं ।
हम भौम सोम के तल पर भी,
भारत का ध्वज लहराए हैं।।७।।

सुधार दिनांक - २०.०२.२०२४

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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25-12-1999,saturday,10:10am,
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बीते इतिहास से तो कुछ सीखो(छंद राधेश्यामी)

छ्न्द:- राधेश्यामी

बीते इतिहास से कुछ सिखो,
आपस मे लड़ना बन्द करो ।
सब भूलो सारे बैर भाव,
मिलजुल कर सब आनन्द करो॥१।।

जब-जब आपस मे सभी लड़े,
तब-तब अरि ने हमला बोला ।
अतिथि रुप में आकर के वे,
हम सब में ढेरों बिष घोला ॥२।।

परिणाम भयंकर था इतना,
मुगलों ने अत्याचार किया।
तलवार दिखा हम हिंदू को,
मुस्लिम बनने लाचार किया।।३।।

हिन्दू बहनों का बलात्कार,
और उनके बाजार लगाते थे।
जो उनकी बात नहीं मानें,
उनपे तो कहर बरपाते थे।।४।।

अंग्रेज दुष्ट सब आकर फिर,
हम सबको खूब लड़ाये थे।
ऊंच नीच और जातीयता,
से हम सब में भेद कराये थे।।५।।

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सभी,
तन मन धन प्राण लगाए थे।
लाखों बलिदानी ने अपने,
भारत पर प्राण लुटाए थे।।६।।

कितने सुहाग बहनों के मिटे,
कितने फांसी पर झूल गए।
कितनी मांओं के लाल छिने,
जो देश हेतु सब भूल गए।।७।।

कितनी बहनें बलिदान हुईं,
जो स्वतंत्रता के लिए लड़ीं।
क्रांतिकारियों के संग संग,
बहनें बेटी थीं सदा खड़ीं।।८।।

बड़े संघर्षों के बाद हमें,
यह हमें मिली है आजादी।
अब हमें सभाले रखना है,
ना होवे फिर से बर्बादी।।९।।

अब जाति पाति को भूलभाल,
हमें देश को आज बचाना है।
हो भारत विश्वगुरू अपना,
जग में भगवा लहराना है।।१०।।

सुधार दिनांक २२.०२.२०२४, गुरुवार 

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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25-12-1999,4:40pm,saturday,
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आया मौसम प्यार का

आया मौसम, प्यार का,
मै पल-पल तुमको, निहारता,
सुरज छिपता व, निकले चाँद
झिल-मिल करता, नीला आकाश
मिलन हुआ देखो, मेरा तुम्हारा
तुम बढ़कर, मेरी जान से
आया मौसम .........२

आओ मिल कर, प्यार करें,
दिल से दिल की, बात करें 
फूलों मे तुम तो, गुलाब हो
पीने मे तुम तो, शराब हो
रस हो तुम, अंगूर का
कजरारी, आखें जाम से
आया मौसम......२

चलो दूर जहां, कोई न हो
तुम तो मेरी, परी सी हो
माथे पे तेरे, लट बिखरे
नटखटी अदा सी, तेरे नखरे
क्या मैं कह के, तुम्हे बुलाऊं
प्यारी अपनी, जबान से
आया मौसम........२

आग लगी है, तन मे मेरे
प्यास लगी है, मन मे मेरे
बर्फीले बदन से, आग बुझाओ
प्यास मिटाने, तुम आओ
इस चका चौंध मे, मस्त हुए हम
आवो खुशियां, मनाये  नाच के

आया मौसम, प्यार का,
मै पल-पल, तुमको निहारता,
सुरज छिपता व, निकले चाँद
झिल-मिल करता, नीला आकाश
मिलन हुआ देखो, मेरा तुम्हारा
तुम बढ़कर, मेरी जान से
आया मौसम .........२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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26-12-1999,1:45pm,sunday,
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अपनी संस्कृति को, भुला कर के

नये जमाने के, फैशन मे,
हम आज तेजी से, बढ़ रहे हैं ।
अपनी संस्कृति को, भुला कर के,
हम अंग्रेजों का, नकल कर रहे हैं ॥

अम्मा-बाबू जी, भूल-भाल कर,
हम उन्हें, डैडी-मम्मी कहते ।
भजन संगीत से, मुंह को फेर कर,
हम अब डिस्को-पाप, हैं सुनते ॥

दाढ़ी-मूंछें, साफ करा-कर,
हम अपनी सुन्दरता का, नजारा करते हैं ।
बेढंगे कपड़े, पहन-पहन कर,
हाय-बाय से, ईशारा करते हैं ॥

सर पे दुपट्टा, तन पे साड़ी का,
अब जाता, रहा जमाना ।
अंग प्रदर्शन वाले, कपड़े पहनतीं
और बाल कटाती मर्दाना ॥

टी.वी चैनलों की, अश्लीलता देख-देख कर,
बेहयायी, दिन-दिन बढ़ रहा है ।
गंदे चल-चित्रों के, प्रभाव से,
बच्चों का मन भी, सड़ रहा है ॥

यदि इसी राह पे, चलते रहे तो,
हम अपनी पहचान, भुला देंगे ॥
भारतीय संस्कृति पर, हम अपने से,
विदेशी फैशन का, झण्डा फहरा देंगे ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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29-12-1999,11:50am,wednsday,
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आवो प्यार से नव वर्ष मनायें

नये साल की, अनुपम बेला पर,
आवो हम सब, खुशियां मनायें ।
नफरत को जड़ से, मिटा कर के,
हम उन्हें प्यार से, गले लगायें ॥

इक्कीसवीं सदी के, जमाने मे,
व नये साल के, छावों मे ।
प्यार से खुशियां, मनाये हम,
शहर हो या हो, गावों मे ॥

इस नये साल की, प्रिय बेला मे,
दिल से शपथ, यही हम लें ।
बुरे काम को, त्याग के हम सब,
सन्मार्ग के राह, मे सदा चलें ॥

अभिमान को दिल, से मिटा कर के,
आवो खुशियों के, दीप जलायें ।
हिल-मिल कर सब, खुशियां बांटे,
और प्यार से, नव वर्ष मनायें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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29-12-1999,5:20pm,wednsday,
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देवी स्तुति (कभी हमपे भी कृपा तो करेगी)

देवी गीत (चलो मइया के दरबार, प्यारे भक्तों)

सारे जहां मे धूम मचा है,माँ के नाम का देखो ।
जय कारों से गूंज उठा है,हर एक दिशाएं देखो ॥

चलो मइया के दरबार, प्यारे भक्तों.....२

ऊंचे पहाड़ा वाली मां के, लाल ध्वजा फहराये....२
कनक-कंगूरे मां के देखो,जो अपनी छ्टा चमकाये....२
मनोकामना पुरी होती...२,जो माता के द्वारे आये...२
चलो मइया के.......२

ऊंचे-निचे,चौड़े-संकरे,मन्दिर के, रस्ते देखो....२
दूर-दूर से आते सब जन,भक्तों की भीड़ जो देखो....२
श्रद्धा और विश्वाश है जिनको....२, वे ही माता के दरश हैं पाये.....२
चलो मइया के......२

लाल चुंदरी मे माता,हंसती से नजर है आये.....२
चरणों मे उनके शीश नवाकर, वे बिन मांगे सब हैं पाये......२
हम भी दिल से मांगे तो....२, मइया झोली अपनी भर देगी....
चलो मइया के..........२

माता के द्वारे दीप जलाकर,अपने घर मे रोशनी ले लो.....२
कर्पूर आरती माँ का कर के,अपने आंगन को खुशियों से भर लो...२
प्यार से मां को भोग लगाकर..२,अपने घर मे खजाने भर लो....२

चलो मइया के दरबार प्यारे भक्तों.....२

ऊंचे पहाड़ा वाली मां के, लाल ध्वजा फहराये....२
कनक-कंगूरे मां के देखो,जो अपनी छ्टा चमकाये....२
मनोकामना पुरी होती...२,जो माता के द्वारे आये...२
चलो मइया के.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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02-01-2000,sunday,12:45pm,
chandrapur,maharashtra.

गजल (चेहरा तुम्हारा ऐसा)

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरा गुलाब का या तो, पूनम का चाँद है ।
किसी शायर की है गजल, या तो प्यारा सा जाम है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरे को जो भी देखे, वो देखता रहे ।
अच्छी किताब की जैसे, तुम्हे पढ़ता ही रहे ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

हिरनी सी आखें हैं और, पलकें हैं रात-दिन ।
भौहें जो तुम्हारी, दुइज की चाँद है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

फूलों सा खिलना जैसे, मुस्कान है तुम्हारा ।
गालों का रंग ऐसे जैसे, सुरज का निकलना हो ॥

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-01-2000,sunday,7:45pm,
chandrapur,maharashtra.


आवो हम हर दिन ईद मनायें

आज खुशियों का दिन, ईद का है,
सब के दिल, हो रहे मगन हैं ।
बच्चे भी फूलों से, खिल रहे हैं,
खुश हो रहा देख के, आज गगन है ॥

दुश्मनी को दिल, से भुलाकर,
गले मिलने से पहले, दिल मिलावो ।
ना अंधेरा हो, कोई घर में,
प्यार की ज्योति, सब मे लजावो ॥

जींदगी के सुहाने, सफर मे,
नफरत को आज, जड़ से मिटा दो ।
इस हरे-भरे, गुलशन को,
अपने खुशबू से, महका दो ॥

अब शिकवा-शिकायत, भुलाकर के,
सब को खुश होके, गले लगावो ।
अमन-शंति से, सब रहे सदा,
आवो हम हर दिन, ईद मनायें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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07-01-2000,friday,11:10am,
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मै नशे मे हो गई

बिस्तर पे लेटी थी, अकेली मै,
मेरे वो चुपके से, कब  आ गए...
अरे मुझको तो कस के, उसने पकड़ा..
मै नशे मे हो गई.........२

उसने तो हमपे, कैसा जादू किया...
मेरा चुराया, उसने जिया...
पांव नही, पड़ते हैं मेरे...
मै तो पागल सी, कैसी हो गई....
अरे मुझको, तो कस के.......२

बाहों का हार, पहनाये हमे.....
गालों को मेरे, होठों से चुमें....
उंगली से तन को, बजाये मेरे....
मै तो रंगीन सपनों, मे खो गई...
अरे मुझको, तो कस के......२

अमावश की रात, लगती थी पूर्णिमा....
तारे लगते थे, जलती शमा...
वो तो बने थे, बादल और....
मै तो बिजली सी, उन पर छा गई....
अरे मुझको, तो कस के......२

तन से पसीना, बहने लगा..
मन तो फूलों सा, खिलने लगा...
रात भर मै तो, सिसकती रही....
भोर होते ही मै, तो शरमा गई.....

बिस्तर पे लेटी थी, अकेली मै,
मेरे वो चुपके से, कब  आ गए...
अरे मुझको तो कस के, उसने पकड़ा..
मै नशे मे हो गई.........२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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10-01-2000,monday,6:30pm,
chandrapur,maharashtra.





घायल हो जाता मन

जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥

मुखड़ा तो चाँद सा है,
जुल्फें हैं काली घटा ।
कुदरत से लिया होगा,
मनमोहक रूप छटा ॥

मुस्कान सुबह से तो,
कोयल से लिया बोली ।
परिधान लिया होगा,
ये हरी-भरी धरती ॥

फूलों से लिया होगा,
खुशबू और गहनें।
सीना तो लिया होगा,
सागर की लहरें ॥

मदमस्त चाल देखो,
बलखाती नदियों से ।
पावों के पायल तो,
इतराते झरनों से ॥

आखें मृगनयनी से,
अलसाना लतावों से ।
घायल हो जाता मन,
गोरी की अदावों से ॥

जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-07-2013,monday,3 am,
pune,maharashtra.


माँ

आराधना तुम हो, तुम हो ही मेरी पूजा,
भक्ति के साथ तुम्हें, अपने दिल मे बसाया है ।
शान्त-चित्त तुम हो, मुखड़े की निराली शोभा,
कितने जन्मों के बाद, हमने तुमको पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

इस जहां से न्यारी हो, तु हम सब की दुलारी हो,
ध्यान तो मैने अपना, तेरे चरणों मे लगाया है ।
तुम करुणा की सागर, हमे देती तुम आदर,
जो पा न सका कोई, वो हमने तुमसे पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

कितना भी दुःख आये, पर तुम सब सह लेती,
दुःख मे रह कर तुम तो, सुख हमे दिलाया है ।
रोना होता है तुम्हें, तो तुम दिल मे रो लेती,
रोती रही पर तुम हमको, हंसना तो सिखाया है ॥
आराधना तुम हो.......

कितने भी बुरे हों हम, पर हमे अपना तो बना लेती,
अच्छाई का सदा तुमने, हमे पाठ पढ़ाया है ।
हम सब के लिये तुम तो, श्रृंगार न कर पाती,
दिल के सपने तुमने, हम पर तो लुटाया है ॥
आराधना तुम हो.......

आकाश से ऊंची तुम, सागर सी गहराई,
तेरा भेद तो कोई अब तक, जान न पाया है ।
हर नाम से तुम उपर, हर रिश्ते से ऊंची,
इसलिये दुनिया ने तुम्हें, माँ कह के बुलाया है ॥

आराधना तुम हो, तुम हो ही मेरी पूजा,
भक्ति के साथ तुम्हें, अपने दिल मे बसाया है ।
शान्त-चित्त तुम हो, मुखड़े की निराली शोभा,
कितने जन्मों के बाद, हमने तुमको पाया है ॥
आराधना तुम हो.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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17-07-2013,wednesday, 4 pm,
pune,maharashtra.

भगवान ने दुनिया को

भगवान ने दुनिया को, कैसा बनाया है ।
हर चीज जरुरत की, यहां पर तो बसाया ॥

रहने के लिये ये जमीन,खाने के लिये भोजन ।
पीने के लिये पानी, हर चीज बनाया है ॥

हर तरह के लोग यहां, अनगिनत जीव जो हैं ।
ये रंग-बिरंगा जीवन, पर दिल एक बनाया है ॥

सागर,नदियां,पर्वत, ये बहते हुए झरनें ।
ये हरे-भरे जंगल, जो मन को लुभाया है ॥

दिन-रात,सुबह और शाम, दुःख-सुख,रोना-हंसना ।
फूल और काटों में, हमे जीना सिखाया है ॥

दिल भरता नही किसी का, हर कोई चाह लिये ।
ये जन्म-मृत्यु के चक्कर मे, सबको उलझाया है ॥

भगवान ने दुनिया को, कैसा बनाया है ।
हर चीज जरुरत की, यहां पर तो बसाया ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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17-07-2013,wednesday,1:30pm,
pune,maharashtra.

भजन हे नाथ दया के हो सागर (प्रभु हमपे कृपा तो करो इतना) सुधार हो गया है

हे नाथ दया के हो सागर,
हम सब अति दीन भिखारी हैं ।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।

प्रभु पीताम्बर धारी तुम हो,
मस्तक चन्दन शोभा देता।
पहने शुभ माल गले में हो,
तव दृग सारा दुख हर लेता॥
प्रभु के मुख मंडल में फैली,
बिजुरी जैसी उजियारी है।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।१।।

प्रभु रूप मनोहर छवि न्यारा,
मुस्कान तुम्हारी निराली है।
कोमल कपोल हैं अति सुन्दर,
अधरन पे चमके लाली है।।
लट मुखड़े पे उलझे लटके,
जिनको लखि जग बलिहारी है।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।२।।

सब आश भरोस हैं छोड़ चुके,
दिखता नहीं नाथ सहारा है।
बस आश हमारे नटवर पर,
प्रभु हमनें तुम्हें पुकारा है।।
अब लाज बचा लो मनमोहन,
हम आए शरण तिहारी हैं।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।३।।


हे नाथ दया के हो सागर,
हम सब अति दीन भिखारी हैं ।
प्रभु स्वामी तुम हम सब सेवक,
हम अनपढ़ और गॅंवारी हैं।।

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-01-2000,saturday,6.50am,
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सुधार दिनांक ०१.०३.२०२४


प्रभु हमपे कृपा करना इतना,
मेरा जीवन, सफल तो हो जाए ।



मै तो हो गई बीमार


चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२

बदरा बरसा बड़ा जोर,पानी बहे चारों ओर,
दादुर अपनी, आवाज लगाए ।
हुआ धरा-गगन का मिलन,सबके दिल देखो मगन,
मुझे कुछ भी, पिया बिन न भाए ॥
चले पूर्वा.........२

थर-थर कांपे बदन,तन मे सुलगे अगन,
मुझे चैन से, रहा नही जाए ।
कर साज श्रृंगार, मै तो हो गई तैयार,
पर मोर पिया तो, अभी नही आए ॥
चले पूर्वा..........२

मै तो हो गई बीमार,सारी दवा हुई बेकार,
कई बैद भी, शहर से तो आए ।
वे कई बूटी पिलाए, बहुत नुस्खा बताए,
पर वे ईलाज मेरा, नही कर पाए ॥

चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-01-2000,saturday,7.30pm,
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बुझदिल न बनो हिंदुस्तानी

बुझदिल न बनो, हिंदुस्तानी,
दुश्मन कब से हमे, ललकार रहा ।
आतंक वादियों के, वेष मे घुम-घुम कर,
वह हमे मौत की, घाट उतार रहा है ॥

वह हम पे जहर, उगल रहा है,
और हम शान्ती की, बातें करते हैं ।
वह मासूमों की, जींदगी से खेल रहा,
और हम क्रान्ती, की बातें करते हैं ॥

अब बहुत सो, लिये हैं हम सब,
हमें नींद से, जागना जरुरी है ।
दुश्मन को, उसी की भाषा मे,
सबक सिखाना, जरुरी है ॥

गिदड़ नही हम, शेरे दिल हैं,
अपने देश के लिये, शीश कटा देंगे ।
बुरी नजर कोई, डाले हम पर,
हम उनकी आखें, निकाल लेते ॥

बीर शिवा जी,आजाद, भगत सिंह जैसे,
वीरों की हम सब, सन्तानें हैं ।
रानी लक्ष्मी बाई, जैसी माताएं हैं,
और हम वतन के, दीवाने हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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18-01-2000,tueesday,6.10am,
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अपराधों को बढ़ावा देकर हम

क्या हो गया है, आज हम लोगों को,
जो अपराधियों से, इतना डरते हैं ।
इन्हें जेलों से, छुड़ाने के लिये,
हम सब हड़तालें, करते हैं ॥

इस तरह से उन, अपराधियों का,
दिमाग औ,र चढ़ जाता है ।
वे फिर से, गुनाहें हैं करते,
और उनका हौसला, बढ़ जाता है ॥

इस तरह से उनके, छोड़े जाने पर,
पुलिस का मनोबल, गिर जाता है ।
फिर से अपराधियों, को पकड़ने मे,
उनका मन बहुत, घबराता है ॥

आज वे हम पर, अत्याचार किये तो,
कल तुम पर भी, जुल्म ढहायेंगे ।
अपने निजी, स्वार्थों के लिये,
तुम्हारा भी, खुन बहायेंगे ॥

अपराधों को बढ़ावा, दे कर हम,
फिर सरकार पर, दोष लगाते हैं ।
अपने आप गलतियां, हम करते,
फिर खून के, आंसू बहाते हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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19-01-2000,wednseday,4:10pm,
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चंद्रपुर का शैर

आओ बच्चों, शैर करायें,
हम तुम्हें चांदा, नगरी का ।
जहां घूम-घूम कर, दिल भरता ही नही,
जैसे नदी मे, मुंह बंद गगरी का ॥

बाबूपेठ मे, महाकाली का मंदिर,
और तुकुम का, मनोरम गुरुद्वारा ।
देखो गंज वार्ड का, प्यारा मस्जिद,
तो बल्लाशाह का, चर्च है प्यारा ॥

चांदा के ये, ऐतिहासिक दरवाजे,
और सोमनाथ तो, अनुपम है ।
भद्रावती मे महावीर, पार्श्व नाथ का  मंदिर,
जहां मिलती है, शान्ति हमे मन मे है ॥

वरोरा मे बाबा आम्टे, का आनंद वन,
जहां कुष्ठ रोगियों, की सेवाएं की जाती ।
राष्ट्रीय अभयारण्य, ताडोबा का,
जहां जानवरों की, रक्षा की जाती ॥

मनोरम रामाला उद्यान,
जिसे देख आजाद पार्क, भी शरमा जाता ।
इरई बांध का भव्य, जलाशय देखो,
और एम.इ.एल मे, इस्पात बनाया जाता ॥

एशिया प्रसिद्ध, पावर हाउस,
जो दुर्गापुर मे, आता है ।
यहां कई छोटे-बड़े, कोयला खदान,
जो जंगल मे, मंगल लाता है ॥

समय है कम,और काम है जादा,
अगली छुट्टियों मे, हम और घुमेंगे ।
चन्द्रपुर के औ,र स्थलों को,
हम देख-देख, कर झुमेंगे ॥

आओ बच्चों, शैर करायें,
हम तुम्हें चांदा, नगरी का ।
जहां घूम-घूम कर, दिल भरता ही नही,
जैसे नदी मे, मुंह बंद गगरी का ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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20-01-2000,3am,thursday,
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देवी गीत (माँ मेरी माँ)

मां मेरी मां, तू छुपी हो कहां.....२
हम कब से तुम्हें, तो बुलाते हैं ।
नयना मेरे कब, से ढूढ़ें तुझे,
हम तेरे दरश, नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां......

भक्तों की भीड़, है तेरे द्वारे |
भोली-भाली मइया, तु आ जा रे ||
रस्ता निहारे कब, से हैं तेरे |
करुणा मई अब, आ जा रे ||
हम दिल से, तुझे बुलाते हैं ....२
मां मेरी मां ........

अष्ट्भुजा धारी, मेरी माता ।
सिंह पे सवार हो, के तू आजा ॥
लाल चोला वाली, मेरी माता ।
भक्तों की खाली, झोली भरने आजा ॥
कष्ट निवारिणी, आ जा रे...
हम तेरे बिन, रह नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां.....

शरण मे आये हैं, तेरे माता ।
लाज बचा लो, मेरी माता ॥
जाये तो जाये, कहां हम माता ।
बस तेरा ही, आश हमे माता ॥
विपदा मिटाने, तू आ जा...
हम तुझे कब, से मनाते हैं .....
मां मेरी मां.....

लक्ष्मी,दुर्गा तु ही काली।
कण-कण मे समाई, हो शेरा वाली ॥
अब तो ना देर, लगावो मइया ।
आके भवंर से, बचा लो नइया ॥
आरती उतारें, सब जन तेरे...
सब जन तेरा, ध्यान लगाते हैं.....

मां मेरी मां, तू छुपी हो कहां.....२
हम कब से तुम्हें, तो बुलाते हैं ।
नयना मेरे, कब से ढूढ़ें तुझे,
हम तेरे दरश, नही पाते हैं ॥
मां मेरी मां......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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21-01-2000,friday,2.05pm,
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गणतंत्र दिवस की, अनुपम बेला मे

गणतंत्र दिवस की, अनुपम बेला मे’
आवो हम याद, करें उन सब को ।
अपने प्राणों की, आहुति देकर,
जिन्होने आजादी, दिलायी थी हमको ॥

अनगिनत बीर थे, भारत माता के,
जो आजादी के, समर मे कूदे थे ।
अंग्रेजों के छ्क्के, छुड़ा दिए,
और मरते दम तक, उनसे जूझे थे ॥

वीर शिवा जी, आजाद भगत सिंह,
नेहरु,शास्त्री,गांधी ।
झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई,
और सुभाष बोस, की क्रान्ति ॥

टीपू सुल्तान व, तात्या टोपे,
जो दुश्मनों के, खुन बहाये थे ।
फांसी के फंदे पर, झुले थे कई वीर,
और जो आजादी के, गीतों को गाये थे ॥

अश्रु पुर्ण श्रद्धांजलि, देकर हम,
उनके सपनों को, साकार करें ।
प्यारा तिरंगा, लहरा कर,
आओ हम उनका, सम्मान करें ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-01-2000,monday,11:15am,
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चन्दा की चांदनी कहूं तुम्हे

चंदा की चाँदनी, कहूं तुम्हें,
या वीणा की, रागिनी तुम्हे कहूं ।
दीपक की ज्योति, कहूं तुमको,
या मणियों की, रोशनी तुम्हे कहूं ॥

सरिता की निर्मल, धारा हो या,
फूलों की खुशबू, तुम्हे कहूं ।
कश्मिर की, सुन्दरता हो या,
चन्दन की खुशबू, तुम्हे कहूं ॥

ऋतुओं मे बसन्त, कहूं तुमको,
या गर्मी मे, ठंडी तुम्हे कहूं ।
बरसात मे रिमझिम, बारिस हो या,
रात मे तारों की, चमक तुम्हे कहूं ॥

मुस्कुराहट का, खजाना तुम्हे कहूं,
दिल को समुन्दर की, गहराई तुम्हे कहूं ।
हंसना है तो, फूलों सा हंसना,
या आमों की, अमराई तुम्हें कहूं ॥

पूनम की चाँद, जैसी हो तुम,
और वाद्यों में, शहनाई तुम्हे कहूं ।
नील गगन की, परी हो या,
हमसे शर्माई, तुम्हे कहूं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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24-01-2000,monday,12.10pm
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भजन (प्रभु चरणों की धुलि लगा ले)

प्रभु चरणों की, धुलि लगा ले,
तेरा जनम सफल, हो जायेगा ।
श्री चरणों मे, शीश झुका लो,
तेरा किस्मत, संवर तो जायेगा ॥
प्रभु चरणों की.........

तू तो माया के, बाजार मे आके,
सारी ऊमर बिताय, दिया खेल के ।
तु तो चमक-धमक, मे खो गया,
और भुख मिटा के, बस सो गया ॥
तूने महला-दुमहला बनाये ।
पर काम नही, तेरे आये ॥
प्रभु नाम से, सज और संवर ले....
तेरा बिगड़ा हुआ, बन जायेगा....२
प्रभु चरणो की......

सारी आशा को, छोड़ के प्यारे,
प्रभु चरणों मे, आश लगा ले ।
क्युं दर-दर, भटके प्राणी ।
तु तो चंद दिनों, का खिलाड़ी ॥
क्युं अभिमान, करे मेरे भाई ।
तेरी मौत के, साथ है सगाई ॥
वो जब भी आयेगी, चला जायेगा ।
तू चाह के भी, न रह पायेगा ॥
प्रभु चरणों की........

कुछ दिन-कुछ पल, है तेरे लिये,
अब प्यारे प्रभु मे, ध्यान लगा ले ।
कर ले जग मे, काम तु भलाई के,
जिससे सुन्दर, सुयश तू पा ले ॥
कर के तन-मन, धन सब अर्पण।
प्रभु ध्यान मे, रह तू हर क्षण ॥
जब दिल से, पुकारोगे उसको...
तेरे पास वो, दौड़ा चला आयेगा....२

प्रभु चरणों की, धुलि लगा ले,
तेरा जनम सफल, हो जायेगा ।
श्री चरणों मे, शीश झुका लो,
तेरा किस्मत, संवर तो जायेगा ॥
प्रभु चरणों की.........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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28-01-2000,friday,5pm,
chandrapur,maharashtra.


देवी गीत (अब तो शेरा वाली मइया का सहारा हमको)

अब तो शेरा वाली, मइया का सहारा हमको ।
अब तो जोता वाली, मइया का सहारा हमको ॥

सारी दुनिया घुम-घुम के, थक गये,पांव हमारे....२
लाख जतन करके भी, हम हैं  सभी जगह से हारे.....२
कोई अपना, नजर न आया...सारे जहां मे हमको.....
अब तो शेरा वाली.......

बीच धार मे नाव है मेरी, दे दो इसे किनारा....२
संकट से हम आज घिरे हैं, केवल आश तुम्हारा....२
दुःख निवारिणी, मइया मेरी... हम कब से पुकारें तुझको..
अब तो शेरा वाली...............

लाज जा रही है मेरी मइया, आके लाज बचा लो....२
तकदीर मेरी है रुठी मइया, मेरी तकदीर बना दो....२
पाप नाशिनी, कल्याणी मां.....दया करो मां हमपे.....
अब तो शेरा वाली.......२

दुर्गा ,दुर्गति नाशिनी, मइया, कहां छुपी हो आओ.....२
राह नही सुझे कोई, मइया, आके राह बताओ.....२
सिंह वाहिनी,त्रिशूल धारिणी माँ....आन बचा लो अपना....
अब तो शेरा वाली.......२

हम मूरख और अग्यानी हैं, तेरी महिमा समझ न पाये....२
ठोकर लगा जब हमको मइया, तब तेरी शरण मे आये....२
क्षमा करो अपराध, मेरी मां.....बस तेरा हम आश लगाये...
अब तो शेरा वाली.....२

अब तो शेरा वाली, मइया का सहारा हमको ।
अब तो जोता वाली, मइया का सहारा हमको ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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28-01-2000,friday,7.20pm,
chandrapur,maharashtra.


मरने पर भी आत्मा रोता है

आज-कल के जमाने को, देख-देख कर,
दर्द दिलों मे, होता है ।
पत्थर दिल भी, कलेजा कांप उठता,
मरने पर भी, आत्मा रोता है ॥

दुर्घटनावों मे, किसी की मौत हुई तो,
दलाल लाशों का, सौदा करते हैं ।
पोस्टमार्टम के लिये, कई डाक्टर,
पैसों की, बातें करते हैं ॥

थानें मे रपट, लिखानी हो तो,
पहले उनकी, जेबें गरम करो ।
मन्दिर मे, दर्शन पाना है तो,
पुजारियों को, दक्षिणा पहले दो ॥

सरकारी दफ्तरों, मे काम कराना है तो,
वहां पे पैसे, पहले दो ।
कोई टेंडर पास, कराना है तो,
पहले साहब की, जेबें गरम करो ॥

कोई गाड़ी पासिंग, कराना है तो,
अधिकारी को, रिश्वत पहले दो ।
ट्रेनों मे आरक्षण, कराना है तो,
पहले टी.टी.ई की, जेबें गरम करो ॥

कोर्ट-कचहरी का, हाल मत पूछो,
लड़ते-लड़ते मुकदमा, थक जावोगे ।
शुरू मे थे यदि, करोण पति,
आखिर मे, कंगाल पति बन जावोगे ॥

यह चंद तश्वीर, है रिश्वतों की,
जो कुछ लोग, लिया करते ।
पैसों से भुख, मिटा कर के अपना,
और सब  को, बदनाम किया करते ॥

आज-कल के जमाने, को देख-देख कर,
दर्द दिलों, मे होता है ।
पत्थर दिल भी कलेजा, कांप उठता,
मरने पर भी, आत्मा रोता है ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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28-01-2000,friday,9pm,
chandrapur,maharashtra.

हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नहीं

हम वीर जवान हैं, भारत के,
हमे पिछे मुड़ना, नही आता है ।
दुश्मनों के लिए, हम खुंख्वार शेर,
उन्हें कदमों मे, झुकाना आता है ॥

मातृभूमि की, रक्षा मे,
हम अपने प्राण, निछावर कर देते ।
जो हमको, आंख दिखाता है तो,
उन्हें हम अपने, कदमों तले मशल देते ॥

अलग-अलग, मजहब के हैं हम,
और बोली भाषा, अनेक है ।
पर देश पे कोई, खतरा आए तो,
उसके लिये हम, सब एक हैं ॥

प्यार से कोई, देखे हमको,
उनके लिये तो, फूल हैं हम ।
पर नफरत से, जो कोई देखेगा हमें,
उनकी आखों मे, धूल हैं हम ॥

दादागिरी करे, कोई हम पर,
यह हमको, बर्दास्त नही ॥
हम गुरू सदा से, रहते आए हैं,
हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नही है ॥
हम सुर्योदय हैं, सुर्यास्त नही है.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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09-02-2000,wednesday,5.35pm,
chandrapur,maharashtra.

अंधेरा सदा कायम रहे

इस अन्तहीन अधिकार में,
कहीं भी प्रकाश की किरण,
नजर नही आती, 
कहीं दूर कोई किरण दिखती,
मगर वो भी,
इस अन्तहीन तिमिर में,
सहमी सी समा जाती,
इस तम कुण्ड में,
चारों तरफ भयानक चीत्कार है,
लाचारों का करुण क्रन्दन,
अन्तर्मन मे उठता,
दुर्बलों की पुकार है,
इस गहन अन्धकार मे,
भुखे भेड़ियों के झुण्ड,
बैठे हैं घात लगाये,
उन कमजोरों का,
खुन पिने के लिये,
जिनके तन मे खुन की जगह,
सिर्फ पानी है,
पर ये भुखे भेड़िये,
उन पर टूट पड़ते,
उनके अस्थि पंजरों को,
अपने दानवी दातों से,
चबा जाते,
और बोल उठते वह,
अपने आप से कि,
अंधेरा सदा कायम रहे .........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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10-02-2000,thursday,9.25am,
chandrapur,maharashtra.

गजल (शक)

दर्द होता है मे,रे दिल मे तब,
जब कोई शक की, नजर से देखे हमें ।
अपनी नाकामियों, के डर से कोई,
गिरती नजरों कोई से देखे हमें ॥
दर्द होता है.....

हम तो उनके लिये जमाने से,
हर तरफ से तो दुश्मनी ली थी ।
इसके बदले मिला अंधेरा मुझे,
जिनकी राहों मे रोशनी की थी ॥
दर्द होता है.....

मैने दी थी गुलाब की खुशबू,
वो तो कांटे बिछाये राहों में ।
हमको देते रहे वो अंगारे,
हम तो उनको सुलाए छावों मे ॥
दर्द होता है.....

मैने उनसे तो दोस्ती की थी,
वो तो दुश्मन हमे समझते रहे ।
हम बहाये थे खुन उनके लिये,
वो तो घावों को और देते रहे ॥
दर्द होता है.....

ये तो तकदीर का करिश्मा है,
जो कि अपने पराए हो जाते ।
हम तो चाहेंगे सलामती उनकी,
वो तो हंसते रहें हम मुस्काएं ॥

दर्द होता है मे,रे दिल मे तब,
जब कोई शक की, नजर से देखे हमें ।
अपनी नाकामियों, के डर से कोई,
गिरती नजरों कोई से देखे हमें ॥
दर्द होता है.....

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11-02-2000,friday,5:30pm,
chandrapur,maharashtra.


नसीब का खेल

ये तो दुनिया की, रीति है ऐसी,
कोई रोता है, कोई हसता है ।
कोई उड़ते हुए, बिमानों मे,
कोई पैदल जमीन, पे चलता है ॥
ये तो दुनिया......

कोई डोली मे, बन के दुल्हन तो,
कोई अपनी, चिता सजाती है ।
कोई जलती रहे, बिरह मे तो,
कोई पिया संग मे, रास रचाती है ॥
ये तो दुनिया.........

कोई रहते हैं, ऊंचे महलों में ,
तो किसी का, झोपड़ी ही प्यारा है ।
कोई रहते अमिरी, में हरदम,
पर किसी को, फकिरी प्यारा है ॥
ये तो दुनिया......

कोई भुखा ही, पेट सो जाये,
कोई रह के भी, खा नही पाता ।
कहीं आंसू भरा है, जीवन तो,
कहीं हंसता सा, आंख मिल जाता ॥
ये तो दुनिया.......

कोई दिन-रात, थक के काम करे,
कोई आराम की, नींद में सोए ।
कहीं हंसता हुआ, सा दिल तो मिले,
कोई दिल ही दिल, मे है रोए ॥
ये तो दुनिया..........

ये तो अपने, नसीब का खेला,
जो भी बिधि ने, लिखा वही होगा ।
इसमें कोई दोष, ना किसी का है,
अपने कर्मों का, फल मिला होगा ॥

ये तो दुनिया की, रीति है ऐसी,
कोई रोता है, कोई हसता है ।
कोई उड़ते हुए, बिमानों मे,
कोई पैदल जमीन, पे चलता है ॥
ये तो दुनिया......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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11-02-2000,friday,7.05 pm,
chandrapur,maharashtra.


आवो थोड़ी सैर करें हम,इस नयी सदी के जमाने की ।

आवो थोड़ी सैर करें हम,इस नयी सदी के जमाने की ।
मुंह मे खर्रा,आखों में चश्मा,कुल्हे मटकाते मर्दानों की ॥

वो देखो अपने अंकल जी, जो काले बाल कराये ।
ऊमर है पचपन,पर दिल है बचपन,देखो वो मुस्काये ॥

बेशर्मी का चादर ओढ़ा, देखो आज जमाना ।
पश्चिमी सभ्यता के रंग मे रंग के ,हम बनते जा रहे जनाना ॥

भारतीय पोषाक को दूर फेंक कर,अध वस्त्रों को कैसे पहनती ।
तम्बाकू,मदिरा का सेवन कर,बे-रोक-टोक ,वे बिचरती ॥

जुहू-चौपाटी का दृश्य देख-देख कर,अपनी आखें शरम से झुक जाये ।
उन बेशर्म दिवानों को देख-देख के,दिल मे नफरत भर आये ॥

अंग्रेजी बोली बोल-बोल कर, वे अपनी धाक जमाते हैं ।
अपनी बोली बोलने में वे,अपने से शर्माते हैं ॥

कदम-कदम पे अश्लील दृश्य ,और बेहयायी का जमाना है।
तेजी से बढ़ रहे बेढंगे फैशन ,जिसका सारा जमाना दिवाना है ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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13-02-2000,sunday,2pm,
chandrapur,maharshtra.

गजल (नफरत)

नफरत सी हो गई है,इस दुनिया को देख के ।
डरता है दिल हमारा, लोगों को देख के ॥
नफरत सी हो.........

हमने बुलाया पा उन्हें, बिठाया था प्यार से ।
खंजर उतार दी है मेरे, पिछे के वार से ॥
नफरत सी हो.........

वो तो पिलाए जाम मगर, जहर को दे गये ।
हमने जलाये दीप मगर, वो तो बुझा गये ॥
नफरत सी हो.........

कैसे यकीन करें हम, झूठे जमाने पे ।
सच बोला उनको तो हम, हैं उनके निशाने पे ॥
नफरत सी हो.........

सच पे रहे तो आखिर,हमें दूर कर दिये ।
ईमान बेचने पे हमे, मजबूर कर दिये ॥
नफरत सी हो.........

सच्चाई की तो राह पे कैसे कोई चले ।
कांटे ही कांटे राह में, लोगों से है मिले ॥ 

नफरत सी हो गई है,इस दुनिया को देख के ।
डरता है दिल हमारा, लोगों को देख के ॥
नफरत सी हो.........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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13-02-2000,sunday,5.30pm,
chandrapur,maharshtra.

रोज-रोज किमतों मे बृद्धि कर

बजट सत्र है, आने वाला,
जिसमें सब मनमानी, मंहगाई बढ़ायेंगे ।
बे-कसुर भोली, जनता पर,
अपनी नाकामी का, बोझ चढ़ायेंगे ॥

चाहे कोई कितना, चीखे-चिल्लाए,
पर इनके कानों पर, जूं नही रेंगेगी ।
मंहगाई से घुट-घुट कर, मर जाये कोई,
पर इनकी, आत्मा नही रोएगी ॥

शरबती गिलास में, मिठा दूध,
फिर उसमें मंहगाई का, जहर मिलाते हैं ।
लम्बे-चौड़े, भाषण कर वे,
कुटिल मुस्कानों से, हमें पिलाते हैं ॥

खुद अपने खर्चों में, कटौती नही करते,
उसका भार भी, हमपे ही चढ़ाते हैं ।
डीजल-पेट्रोल, छिड़क कर के,
फिर रसोई गैस से, हमें जलाते हैं ॥

रोज-रोज किमतों, में बृद्धि कर,
जींदा ही हमें, मार रहे हैं ।
हमें मंहगाई की, भेंट चढ़ा कर,
हमारे खुन से वे, नहा रहे हैं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-02-2000,tuesday,11am,
chandrapur,maharashtra.

जाने वाले जाते रहेंगे

जाने वाले, जाते रहेंगे,
आने वाले, आयेंगे ।
हम तो रहेंगे, दिल में उनके,
ना वे हमें तो, भुलायेंगे ॥
जाने वाले.......

हम तो नही हैं, गीत हैं अपने,
ना वे जहां से, जायेंगे ।
वे तो मधुरम,सुर व ताल से,
गाकर हमें, सुनायेंगे ॥
जाने वाले.........

गीत या हो, संगीत का जादू,
मरता नहीं, दुनिया वालों ।
हम तो, आते-जाते रहेंगे,
गीत सुनाने, दुनिया वालों ॥
जाने वाले........

तुम मायुश, नही होना,
अपने दिल तो, सजा लो गीतों से ।
हम तो खड़े हैं, राहों में तेरे,
स्वागत करने, संगीत से ॥
जाने वाले..........

जाने वाले, जाते रहेंगे,
आने वाले, आयेंगे ।
हम तो रहेंगे, दिल में उनके,
ना वे हमें तो, भुलायेंगे ॥
जाने वाले.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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19-02-2000,saturday,10:10am,
chandrapur,maharashtra.

गजल (हम तो समझे थे जहर का प्याला)

हम तो समझे थे जहर का प्याला,वे तो अमृत हमें पिला के गये ।
हम तो समझे थे मौत ही उनको, हमें मरते हुए जिला वो गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

हम तो उन्हें देखते थे नफरत से, दिल मे मेरे प्यार वो जगा के गये ।
हम उन्हें जानते थे पत्थर दिल, अपने आंसू से वो, भिगा के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

वो तो रहते रहे मय-खाने में,मेरा पीना वे तो छुड़ा के गये ।
हम तो टूटा हुआ सा दिल समझे, वो तो दिल से दिल को जुड़ा के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

हम तो रहते थे दूर ही उनसे,वो तो मुझको दिवाना कर के गये ।
हम तो समझे थे उनको बेगाना, वो तो बाहों में हमको भर के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

उनका मुस्कराता हुआ सा चेहरा, गम को अपने दिल मे छिपा के गये ।
हम तो समझे थे गम दे रहे हमको, अपने गम से उसे मिलाते रहे ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

वो तो हमसे हैं आज दूर कहीं, अपनी यादें हमें दिलाते गये ।
हम तो राहों में हैं खड़े उनके, वो तो अपने को ही लुटाते गये ॥

हम तो समझे थे जहर का प्याला,वे तो अमृत हमें पिला के गये ।
हम तो समझे थे मौत ही उनको, हमें मरते हुए जिला वो गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-02-2000,saturday,11.50am,
chandrapur,maharashtra.

लानत है उन दहेज लोभियों को

लानत है उन दहेज, लोभियों को,
जो अपनी बहुओं को, जींदा जलाते हैं ।
किसी के घर की, आंगन की गुड़िया पर,
अपने जुल्मों का, कहर बरसाते हैं ॥

वे ईन्षान नही, शैतान हैं वे,
जो अपनी बहुओं पर, जुल्म ढहाते हैं ।
वे समाज के, दुश्मन हैं,
जो दहेज के लिये, उन्हें सताते हैं ॥

वो भी किसी बाप, की बेटी थी,
जो आज दुल्हन, बन कर आई ।
प्यार के बदले, उसने तुमसे,
दहेज का, दावानल पाई ॥

यदि उसकी जगह, तुम्हारी अपनी बेटी पर,
कोई इतना, अत्याचार करे ।
तब तुम्हारे दिल पर, क्या बीतेगी,
जब वह दहेज की, मौत मरे ॥

इसलिये अपनी, बहुओं को,
अपनी बेटी, जैसा ही प्यार करो ।
पति हो तो, अपनी मेहनत से पैसे कमावो,
और खुशियों से, उसकी माँग भरो ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-02-2000,thursday,11:40am,
chandrapur,maharashtra. 

दहेज के लिए मारा जाता


पत्थर दिल भी कलेजा कांप उठता,

और आंखों में आंसू आ जाता !

जब किसी बाप की बेटी को,

दहेज के लिए मारा जाता !!



उन दहेज लोभी-दरिदों के दिलों में,

इंसान का खून नही होता होगा!

उन अत्याचारियों के नश-नश में,

किसी बहसी जानवर का खून भरा होगा !!



आज हमारे कई घरों मे ,

बहुवों को सताया जाता है !

मैके से दहेज लाने के लिए उन पर,

कई तरह से दबाव बनाया जाता है !!



नर्क बन गया है , जीवन उनका,

उनके रोज-रोज के अत्याचारों से !

वेदना है उनकी नश-नश में,

उनके तीब्र प्रहारों से !!



दहेज के इन भूखे- भेड़ियों को,

कठोर सजाएं दी जाए !

जिससे उनको देख-देख कर,दहेज के लिए,

कोई अपनी बहुवों पर ज़ुल्म न ढहा पाए !!



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

दिनांक-२४/०२/२०००,वॄहस्पतिवार

दोपहर-१२.१० बजे

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

पर कुछ लोग दहेज के खातिर

किसी बाप की, बेटी है वो,

तो किसी भाई की, बहना है ।

किसी-किसी के, आंगन की गुड़िया है वो,

तो किसी माँ का, गहना है ॥



बड़े प्यार-दुलार से, पली-बढ़ी,

और बचपन से, पाई तरुणाई ।

नयी उमंगें, दिल में लेकर,

अपने साजन के, घर आई ॥



मां-बाप भी, लड़के वालों को,

अपनी औकात से, जादा दहेज दिये ।

अपनी फूल से भी, नाजुक बिटिया को,

रोते-रोते हैं, बिदा किये ॥



पर कुछ लोग, दहेज की खातिर,

जींदा ही उन्हें, जलाते हैं ।

उन मासुमों के, सपने बखराकर,

उनपे दहेज का, कफन चढ़ाते हैं ॥



अपने बेटियों के, जैसा ही,

अपनी बहुओं को, भी प्यार करो ।

उन मासुमों को, अपना बना के,

उनके सपनें, साकार करो ||

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
24-02-2000,thursday,7:10pm,
chandrapur,maharashtra.

पापा मेरे पापा

पापा मेरे पापा, मेरे प्यारे-प्यार पापा.........२



दफ्तर से तुम, जल्दी आना,

पापा अपने, परिवार में ।

मम्मी के संग, रहेंगे हम सब,

आप के, ईंतजार में ॥

पापा मेरे पापा......



कहीं घुमने चलेंगे, हम सब,

पापा सब कोई, साथ में ।

झुमेंगे-नाचेंगे, खुशियां मनायेंगे,

आज की हम, रात मे ॥

पापा मेरे पापा......



सैर सपाटा करेंगे, हम सब,

हरे-भरे, मैदानों में ।

खा-पी करके, मौज करेंगे,

इस नई सदी के, जमाने में ॥

पापा मेरे पापा......



रंग-बिरंगे, फैशन के,

मेले में हम, जायेंगे ।

उस मेले में ,घुम-घूम कर के,

ढेरों खुशिया, मनायेंगे ॥

पापा मेरे पापा......



नई जगह की, सैर करेंगे,

फिर घर में, वापस आयेंगे ।

गुड नाइट मम्मी, को बोलके,

फिर बिस्तर पे, सो जायेंगे ॥

पापा मेरे पापा......



नीद में हम, सपना देखेंगे,

अपनें देखे हुए, स्थानों की ।

सपनें में हम, सैर करेंगे,

चमकते, चाँद-सितारों की ॥

पापा मेरे पापा......



आना पापा, जल्दी दफ्तर से,

वर्ना हम, रूठ जायेंगे ।

दिल टूटेगा, मम्मी का भी,

फिर मम्मी को, आप मनायेंगे ॥

पापा मेरे पापा......



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

27-02-2000,sunday,5.45pm,

chandrapur,maharashtra.

इक पैसा दे दो भइया

इक पैसा, दे दो भइया,
तुम्हे मिले बहुत, सी रुपइया...
धन-दौलत से, खजाना भरा रहे...
और अमर रहे, तेरा संइया.....
इक पैसा दे दो......२

हम गरीब हैं, फिर क्या हुआ,
पर दिल तो, हमारा गरीब नही ।
द्वारे-द्वारे, भटक रहे,
क्या करें हमारा, नसीब यही ॥
आद-औलाद से, भरा रहे..२
तेरा घर खुशियों, से भइया....
इक पैसा दे दो......२

ऊमर हो लम्बी, नाम हो जग मे,
चमके जैसे, चाँद-सितारे ।
घर हो, महला-दस महला,
और चाँदी की, दीवारें ॥
सोने-हीरे से, भरा रहे....२
तेरे घर का, खजाना भइया...
इक पैसा दे दो.....२

यदि प्यार किया, हो तो प्यार मिले,
जींदगी मजे से, गुजरे ।
कभी गम ना सताए, किसी चीज का,
कोई तेरा काम, न बिगड़े ॥
बुरे राह से, बचो सदा....२
और रहो सत्य पर भइया...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-01-2000,saturday,10:5am,
chandrapur,maharashtra.

कहां गये आजादी के दीवाने

कहां गये आजाद, भगत सिंह,

नेहरू-शास्त्री,गांधी ।

कहां गये आजादी, के दीवाने,

और सुभाष बोष, की क्रान्ति ॥



आजादी दिलाई थी, हम सब को,

क्या-क्या सपने, देखे थे ।

सब कुछ निछावर, कर के अपना,

मुस्काते भारत का, सपना देखे थे ॥



आज के भारत को, देख-देख कर,

उनकी आत्माएं, रोती होंगी ।

भ्रष्टाचार में डूबे, भारत से,

उनके दिल में, वेदना होती होगी ॥



चारों तरफ, लूट-पाट,

अत्याचार, चरम पर है ।

नारियों की ईज्जत, लुट रही आज,

और संकट अपने, वतन पर है ॥



वोटों के विकास में, दिलचस्पी है बहुत,

पर देश के विकास मे, ध्यान है कम इनका ।

दिन-रात बढ़ रही, किमतों से,

प्रजा का हाल, बिन जीवन का ॥



दर्द से कराहते हुए, भारत को,

आकर छुटकारा, दिला जावो ।

मातॄ भूमि की, डूबती नइया को,

आकर, पार लगा जावो ॥



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

27-02-2000,sunday,8pm,

chandrapur,maharashtra.

हम वतन पे शहीद हो जाते हैं

हम आंधी नहीं तूफान हैं,

कभी नहीं, रुक सकते हैं ।

हम कमजोर नहीं, बलवान हैं,

कभी नहीं, झुक सकते हैं ॥



हमें जितना भी, जो कोई रोकेगा,

हम और भी, आगे बढ़ते जायेंगे ।

हमारे पीठ में, जो कोई खंजर घोपेगा,

हम उसे मौत की, नींद सुलायेंगे ॥



हम कायर नहीं, शेरे दिल हैं,

डरना हमको, आता है नहीं ।

हम वतन पे, शहीद हो जाते हैं,

मरना हमको, आता है नहीं ॥



दिल में आग, जल उठता है,

जो हमें बुरी नजर, से देखते हैं ।

आखों से अंगारे, निकल उठते,

जो हम पे शक, की नजर फेरते हैं ॥



इतिहास गवाह, रहा है सदा,

हम मित्रता पे, जान लुटा देते ।

पर दुश्मनी, कोई करे हमसे,

तो हम उसकी, आखें निकाल लेते ॥



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

14-03-2000,,tuesday,7:10pm,

chandrapur,maharashtra.