हो गये हैं आज धृतराष्ट्र बहुत ,
जहां दुर्योधन अत्याचार कर रहे हैं ।
हम देख के भी अंजान से हैं,
और अंदर ही अंदर डर रहे हैं ॥
चीर खींच रहे हैं दुःशासन,
द्रोपदी अपनी लाज नही है बचा पाती ।
मूंक बन गया है श्रेष्ठ समाज,
और रक्षा के लिये वो चिल्लाती ॥
यदि कृष्ण कोई है आ जाता,
तो उसका हम साथ नही देते ।
वो भी है बेचारा पछताता,
जब दुर्योधन उसपे वार हैं कर देते ॥
दुर्योधन की मंडली हर जगह पे ही,
अपराध पे अपराध कर रही है ।
सरकार हो गई है धृतराष्ट्र ,
और प्रजा आग मे जल रही है ॥
इसलिये ऐसे दुर्योधनों को,
हमे चुन-चुन कर सजा देना होगा ।
जिसे देख के और कोई गलती न करे,
और हमे धृतराष्ट्र मोह को तजना होगा ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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२३-४-२०१३.मंगलवार,प्रातः १० बजे,
पुणे,महा.
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