Monday, 19 February 2024

पति बिना अधुरी है पत्नी

पति बिना अधुरी है पत्नी,
जो दिन - रात बिरह मे है जलती
संसार के सब रिश्ते -नाते,
जैसे सुरज की ताप उसे लगती

पिया बिना वो रहती ऐसे,
जैसे पानी बिना नदी कोई
नींद आती है उसको,
हर - पल प्रीतम मे ही खोई

मिलने की आश लगाए वो,
हर पल- दिन घड़ी गिनती
दिन तो कैसे भी कट जाता,
पर रात कठिनता से कटती

सजना-सवंरना लगे नीक ना,
सूख गए होठों की लाली 
बाग के पौधे मुरझा हैं गए,
जैसे नही हो इनका अपना माली

पर जब घड़ी मिलन का आता है,
तो दो मुर्झाए फूल खिल जाते हैं
अब तक जो सहे जुदाई के गम,
वे याद नही रह पाते हैं

पति बिना अधुरी है पत्नी,
जो दिन -रात बिरह मे है जलती
संसार के सब रिश्ते-नाते,
जैसे सुरज की ताप उसे लगती

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक- २१--२०१३
सोमवार, प्रातः .१५ बजे
पुणे (महारास्ट्र)



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