रो-रो कर, कह रही है माँ,
मेरा बेटा वापस, तो लौटा दो ।
पत्थर सा हो गया है, देखो बाप,
कोई मेरे लाल से, हमको मिलवा दो ॥
एक दुखियारी, सीना पीट रही,
कि मेरा सुहाग तो, चला गया ।
वो गहनों को,
एक-एक फेंक रही,
कि मेरा श्रंगार तो, अपना चला गया ॥
बहना की आखें, थम सी गई,
कि मेरा भाई हमसे, रूठ गया ।
भइया की कलाई, का धागा,
आज ये हमारा, टूट गया ॥
इन सबके देखो, प्यारे पापा,
अब तो कभी, नही आयेंगे ।
सर पर से हमारा, छत उड़ है गया,
अब हम और, कहां तो जायेंगे ॥
भइया का बांह तो, कट है गया,
मेरा भाई अब, तो नही रहा ।
जीवन मे, सुख-दुःख को कैसे,
साथ ही साथ, हमने था सहा ॥
रो रहे हैं रिश्तेदार, व दोस्त,
और सारे देश मे, मातम है ।
अपने शहीदों की, कुर्बानी पर,
सब की आखें, तो नम हैं ॥
ऐसी ही चीख-पुकार, निकलती होगी,
जब कोई बेटा शहीद, है हो जाता ।
अपने बेटों की, कुर्बानी से,
कहीं होली व ईद, नहीं मन पाता ॥
अपने बेटों की, कुर्बानी से,
कहीं होली व ईद, नहीं मन पाता.......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
08-08-2013/tuesday/2:50am,
pune,m.h.
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