खुबसुरत अदा की, तुम हो मल्लिका,
मेरे हर सांस में, तुम समाई हुई ।
मेरी सपनों की, तुम हो शहजादी या ,
कोई परी, गगन से आई हुई ॥
खुबसुरत अदा की......
मैने देखा जब से, मैं खो गया,
धड़कनें मेरे दिल की, बढ़ी जा रही ।
हो रहा है न जानूं, मैं क्या सथिया,
हर अदा तेरी, मुझसे पढ़ी जा रही ॥
खुबसुरत अदा की......
इस जहां,हर जगह और दीवार में,
बस तुम ही तुम तो, नजर आ रही ।
चेहरे पे हल्की, मुस्कान छाई हुई,
बिजली हमपे है, लगता गिरी जा रही ॥
खुबसुरत अदा की......
मैं तो बेचैन सा तो, हुआ जा रहा,
चैन मेरे तो दिल को, नहीं मिल रहा ।
तेरे रंग,रूप,मुस्कान, और बोली से,
मेरे मन में, गुलाब का फूल खिल रहा ॥
खुबसुरत अदा की, तुम हो मल्लिका,
मेरे हर सांस में, तुम समाई हुई ।
मेरी सपनों की, तुम हो शहजादी या ,
कोई परी, गगन से आई हुई ॥
खुबसुरत अदा की......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
20-07-2013,saturday,11pm,
pune,maharashtra.
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