आवो थोड़ी सैर करें हम,इस नयी सदी के जमाने की ।
मुंह मे खर्रा,आखों में चश्मा,कुल्हे मटकाते मर्दानों की ॥
वो देखो अपने अंकल जी, जो काले बाल कराये ।
ऊमर है पचपन,पर दिल है बचपन,देखो वो मुस्काये ॥
बेशर्मी का चादर ओढ़ा, देखो आज जमाना ।
पश्चिमी सभ्यता के रंग मे रंग के ,हम बनते जा रहे जनाना ॥
भारतीय पोषाक को दूर फेंक कर,अध वस्त्रों को कैसे पहनती ।
तम्बाकू,मदिरा का सेवन कर,बे-रोक-टोक ,वे बिचरती ॥
जुहू-चौपाटी का दृश्य देख-देख कर,अपनी आखें शरम से झुक जाये ।
उन बेशर्म दिवानों को देख-देख के,दिल मे नफरत भर आये ॥
अंग्रेजी बोली बोल-बोल कर, वे अपनी धाक जमाते हैं ।
अपनी बोली बोलने में वे,अपने से शर्माते हैं ॥
कदम-कदम पे अश्लील दृश्य ,और बेहयायी का जमाना है।
तेजी से बढ़ रहे बेढंगे फैशन ,जिसका सारा जमाना दिवाना है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
13-02-2000,sunday,2pm,
chandrapur,maharshtra.
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