Monday 19 February 2024

चन्दा की चांदनी कहूं तुम्हे

चंदा की चाँदनी, कहूं तुम्हें,
या वीणा की, रागिनी तुम्हे कहूं ।
दीपक की ज्योति, कहूं तुमको,
या मणियों की, रोशनी तुम्हे कहूं ॥

सरिता की निर्मल, धारा हो या,
फूलों की खुशबू, तुम्हे कहूं ।
कश्मिर की, सुन्दरता हो या,
चन्दन की खुशबू, तुम्हे कहूं ॥

ऋतुओं मे बसन्त, कहूं तुमको,
या गर्मी मे, ठंडी तुम्हे कहूं ।
बरसात मे रिमझिम, बारिस हो या,
रात मे तारों की, चमक तुम्हे कहूं ॥

मुस्कुराहट का, खजाना तुम्हे कहूं,
दिल को समुन्दर की, गहराई तुम्हे कहूं ।
हंसना है तो, फूलों सा हंसना,
या आमों की, अमराई तुम्हें कहूं ॥

पूनम की चाँद, जैसी हो तुम,
और वाद्यों में, शहनाई तुम्हे कहूं ।
नील गगन की, परी हो या,
हमसे शर्माई, तुम्हे कहूं ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-01-2000,monday,12.10pm
chandrapur,maharashtra.

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