जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥
मुखड़ा तो चाँद सा है,
जुल्फें हैं काली घटा ।
कुदरत से लिया होगा,
मनमोहक रूप छटा ॥
मुस्कान सुबह से तो,
कोयल से लिया बोली ।
परिधान लिया होगा,
ये हरी-भरी धरती ॥
फूलों से लिया होगा,
खुशबू और गहनें।
सीना तो लिया होगा,
सागर की लहरें ॥
मदमस्त चाल देखो,
बलखाती नदियों से ।
पावों के पायल तो,
इतराते झरनों से ॥
आखें मृगनयनी से,
अलसाना लतावों से ।
घायल हो जाता मन,
गोरी की अदावों से ॥
जिसने भी बनाया है,
फुर्सत से तुम्हे यारा ।
कुदरत से लिया होगा,
जो होगा लगा प्यारा ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-07-2013,monday,3 am,
pune,maharashtra.
No comments:
Post a Comment