चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......
चेहरा गुलाब का या तो, पूनम का चाँद है ।
किसी शायर की है गजल, या तो प्यारा सा जाम है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......
चेहरे को जो भी देखे, वो देखता रहे ।
अच्छी किताब की जैसे, तुम्हे पढ़ता ही रहे ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......
हिरनी सी आखें हैं और, पलकें हैं रात-दिन ।
भौहें जो तुम्हारी, दुइज की चाँद है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......
फूलों सा खिलना जैसे, मुस्कान है तुम्हारा ।
गालों का रंग ऐसे जैसे, सुरज का निकलना हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-01-2000,sunday,7:45pm,
chandrapur,maharashtra.
No comments:
Post a Comment