Monday 19 February 2024

गजल (चेहरा तुम्हारा ऐसा)

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरा गुलाब का या तो, पूनम का चाँद है ।
किसी शायर की है गजल, या तो प्यारा सा जाम है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

चेहरे को जो भी देखे, वो देखता रहे ।
अच्छी किताब की जैसे, तुम्हे पढ़ता ही रहे ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

हिरनी सी आखें हैं और, पलकें हैं रात-दिन ।
भौहें जो तुम्हारी, दुइज की चाँद है ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

फूलों सा खिलना जैसे, मुस्कान है तुम्हारा ।
गालों का रंग ऐसे जैसे, सुरज का निकलना हो ॥

चेहरा तुम्हारा ऐसा,जहां मे न कोई हो ।
लिखता रहूं तुम्हे देख के, लिखना न बन्द हो ॥
चेहरा तुम्हारा ऐसा.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-01-2000,sunday,7:45pm,
chandrapur,maharashtra.


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