शरीर के अंग सभी, महत्व पूर्ण हैं,
पर उनमे जीभ तो, बहुत महान है ।
अच्छा-बुरा, बोलती है ये,
और स्वाद की, करती पहचान है ॥
बत्तीस दातों के, बीच बसी ये,
और सबसे ये, कोमल है ।
जब भी, बोलता है प्राणी,
तो इसकी जरुरत, पल-पल है ॥
संसार मे हमारा, ये पहचान बनाती,
कि हम हैं कितने अच्छे ।
दिल हो हमारा, यदि काला,
पर ये है बनाती, हमें है सच्चे ॥
कभी-कभी तो, इसके कारण,
ईंषान बदनाम है हो जाता ।
पर कभी-कभी तो, इसके कारण,
ईंषान सम्मान है, पा जाता ॥
पर इसके पिछे, शायद ये मन,
जिससे ये सब करवाते ।
अच्छी बात पे, इतराती है ये,
पर बुरी बात पे, शर्माती ॥
यदि जीभ मिला है, हमको तो,
हम इससे, अच्छी बातें ही करें ।
भगवान नाम की चर्चा से,
इसे और पवित्र करें ॥
ये क्या करती,कैसे रहती,
कोई समझ नही पाए ।
हम सब इसके, हैं गुलाम,
ये कभी भी कुछ है करवाए ॥
हम सब इसके, हैं गुलाम,
ये कभी भी कुछ है करवाए.....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
22-07-2013,monday,10:30pm,
pune,maharashtra.
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