Monday 19 February 2024

चारों ओर तामसी प्रवृत्ति का बोल-बाला है

ये सब कलियुग का ही कमाल है, कि,
चारों ओर तामसी प्रवृत्ति, का ही बोल-बाला है
बाहर से तो, मीठे बोल,
पर अन्दर तो, काला ही काला है

मद्य-मांश का, सेवन कर,
लोग दुराचरण कर रहे हैं
पाप कर्म को, करते-करते,
ये अपना, भरण-पोषण कर रह्र हैं

चोरों बेइमानों का,
अब भरपूर, साम्राज्य हो रहा है
सीधे-सादे, ईंषानों काम
दिल तो, आज रो रहा है

हर समय अनर्थ, में डुबे हुए ये,
बस परमार्थ की, बातें ही किया करते 
भ्रष्ट आचरण को करके,
और भक्ति का ढोंग, किया करते

अनेकानेक पापों, को करके,
ये जीवन में बहुत, दुःखों को झेल रहे हैं
पर इन सबसे ये, आखें मूदकर,
दिन-रात पाप, से खेल रहे हैं

इन सब के पापों, से दबी ये धरती,
आज अंदर ही अंदर रो रही है
अपने बहते, आसुओं से,
इनके पापों को, ढो रही है

ये सब कलियुग का ही कमाल है, कि,
चारों ओर तामसी प्रवृत्ति, का ही बोल-बाला है
बाहर से तो, मीठे बोल,
पर अन्दर तो, काला ही काला है


मोहन श्रीवास्तव (कवि)

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