छ्न्द:- राधेश्यामी
बीते इतिहास से कुछ सिखो,
आपस मे लड़ना बन्द करो ।
सब भूलो सारे बैर भाव,
मिलजुल कर सब आनन्द करो॥१।।
जब-जब आपस मे सभी लड़े,
तब-तब अरि ने हमला बोला ।
अतिथि रुप में आकर के वे,
हम सब में ढेरों बिष घोला ॥२।।
परिणाम भयंकर था इतना,
मुगलों ने अत्याचार किया।
तलवार दिखा हम हिंदू को,
मुस्लिम बनने लाचार किया।।३।।
हिन्दू बहनों का बलात्कार,
और उनके बाजार लगाते थे।
जो उनकी बात नहीं मानें,
उनपे तो कहर बरपाते थे।।४।।
अंग्रेज दुष्ट सब आकर फिर,
हम सबको खूब लड़ाये थे।
ऊंच नीच और जातीयता,
से हम सब में भेद कराये थे।।५।।
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सभी,
तन मन धन प्राण लगाए थे।
लाखों बलिदानी ने अपने,
भारत पर प्राण लुटाए थे।।६।।
कितने सुहाग बहनों के मिटे,
कितने फांसी पर झूल गए।
कितनी मांओं के लाल छिने,
जो देश हेतु सब भूल गए।।७।।
कितनी बहनें बलिदान हुईं,
जो स्वतंत्रता के लिए लड़ीं।
क्रांतिकारियों के संग संग,
बहनें बेटी थीं सदा खड़ीं।।८।।
बड़े संघर्षों के बाद हमें,
यह हमें मिली है आजादी।
अब हमें सभाले रखना है,
ना होवे फिर से बर्बादी।।९।।
अब जाति पाति को भूलभाल,
हमें देश को आज बचाना है।
हो भारत विश्वगुरू अपना,
जग में भगवा लहराना है।।१०।।
सुधार दिनांक २२.०२.२०२४, गुरुवार
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
25-12-1999,4:40pm,saturday,
chandrapur,maharashtra.
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