देखा भी नही जाता, सुन के भी न रह पाता ।
बेरहम जमाने में, कोई हंस के न रह पाता ॥
देखा भी नहीं जाता.......
चारों ही तरफ देखो, जहां मौत का साया है ।
जहां भय से तड़पते लोग, और कोई न छाया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
हर जगह बेटियों की, आबरू है खतरे में ।
जहां दहेज के लिये उनको, जिन्दा ही जलाया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
पैसे वालों की ये दुनिया, कमजोर न रह पाते ।
दहशत फैला कर के, हम सब को डराया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
यहां जीवन है सुरक्षित नहीं, किसी का भी सुनों यारों ।
हर जगह लूटेरे हैं, और आतंक का साया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
लोगों का हाल बुरा, बढ़ती मंहगाई से ।
बच्चों के लिये दूध नहीं, उन्हें भूख ने सताया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
कुर्सी के लिये देखो, ये आपस मे झगड़ते हैं ।
वोटों के लिये ये हममें, नफरत फैलाया है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
बेहयाई भरे फैशन में, सब मस्त हुए जाते ।
मर्द हो रहे औरतों जैसे, औरतें बन रहीं मर्दाना है ॥
देखा भी नहीं जाता.......
खाने के लिए अन्न न हो, दारू का नशा पहले ।
बच्चों की हर अदावों में, फिल्मी धुन तो समाया है ॥
देखा भी नही जाता, सुन के भी न रह पाता ।
बेरहम जमाने में, कोई हंस के न रह पाता ॥
देखा भी नहीं जाता.......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
21-03-2000,tuesday,2:30pm,
chandrapur,maharashtra.
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