शरीर के, जितने भी अंग हैं,
पर दिल का, कोई जवाब नही ।
दिल नही होता, इस तन में तो,
रहते हम व, आप नहीं ॥
दिल को लेकर, दुनिया में,
कोई दिखता नही, मिशाल है ।
हर जगह एक ही, प्रश्न है,
दिल इतना क्युं, मालामाल है ॥
दुनिया में जितने भी, प्राणी हैं,
दिल सबके अंदर है ।
इस जहां में सबसे, प्यारा और,
सबमें दिल, अति सुंदर है ॥
दिल शिशा है, इसे न तोड़ो,
ये फिर जल्दी, जुड़ता है नही ।
जुड़ता है तो, प्यार से ये,
नफरत से कभी, जुड़ता है नही ॥
ये ऊंच-नीच का, भेद न जाने,
ना मिलता कभी, ये उधार है ।
बस प्यार से, मिलता है सबको,
ये दिल तो, बहुत महान है ॥
बस प्यार से, मिलता है सबको,
ये दिल तो, बहुत महान है........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
23-07-2013,tuesday,8pm.
pune,maharashtra.
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